पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३७६

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रससिद्ध ४१३५ रसाम्लक रससिद्ध - वि० [म०] १. रसाभिव्यक्ति करने मे कुशल ग निष्णा | रसात्मकता -मज्ञा सी० [स० रसारमक+ता (प्रत्य॰)] समयता । २ रस सिद्ध करने मे कुशल [को०] । रसपूर्णता | रसयुक्त होने का भार । उ०—यदि किसी उक्ति रसस्थान-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] शिगरफ। हिंगुल । ईगुर । मे रमात्मकता और चमत्कार दोनो हो तो प्रधानता का विचार रसस्राव-सहा पु० [सं०] अम्लवेत । अमलवेद । करके मूक्ति या काव्य का निर्णय हो सकता है।-रस०, पृ०३७। रसागक - सज्ञा पुं० [स० रसाङ्गक धूप । सरल का वृक्ष । श्रीवेष्ठ । रसादार-वि० [हिं० रमा + फा० दार (प्रत्य०) ] जिसमे झोल या रसाजन-मज्ञा पुं० [म० रसाञ्जन] रसौत । रसवत । शोरवा हो । शोरवेदार । (प्राय तरकारी आदि के मवध मे रसा-वि० [फा०] पहुंचानेवाला । देनेवाला । जैसे, रोजीरसा, चिठ्ठी- बोलते हैं । ) रसां को०] । रसाधार-संज्ञा पुं॰ [म०] सूर्य । रसा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पृथ्वी। जमीन । २ रासना : ३ पाठा । रसाधिक-सज्ञा पु० [सं०] सुहागा । पाढा । शल्लकी। सलई। ५ फंगनी नाम का मोटा अन्न । रसाधिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] किशमिश । ६. दाख । द्राक्षा । अंगूर । ७ मेदा। ८ शिलारस । लोहवान । ६ प्राम। १० काकोली। ११. नदी। १२ रसातल । १३ रसाध्यक्ष-सज्ञा पुं० [म०] प्राचीन काल का एक राजकर्मचारी जो मादक द्रव्यो को जाँच पडताल और उनकी विक्री आदि की जीभ । रसना । जवान । व्यवस्था करता था। रसा-सक्षा पुं० [हिं० रस] तरकारी आदि का झोल । शोरया । रसाना-क्रि० अ० [म० रस] प्रानदयुक्त होना । आनद प्राप्त यौ० -रसेदार = जिसमे रसा या शोरबा हो। गोरवेदार । करना । रमयुक्त वा अनुकूल होना। उ०-भूते अघाने रिमाने रसा-वि० [फा०] पहुंचनेवाला । जिसकी किसी जगह पहुंच हो [को०] । रसाने हितू अहितूनि सो स्वच्छ मने हैं । -भिखारी० ग्र०, भा०२, पृ० ३५॥ रसाइन-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'रसायन' । रसाना'-क्रि० स० पानद देना । पादित करना । रसाइनी यु-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रसायन + ई (प्रत्य॰)] १ रसायन रसाना-क्रि० अ० [हिं० रसना] नवित होना । चूना । विद्या का जाननेवाला। २ रसायन बनानेवाला । कीमियागर। रसाई -सशा स्त्री॰ [फा०] पहुंचने की क्रिया या भाव । पहुँच । जैसे,- रसाना-क्रि० स० दूर करना । टपकाना। वहाना । उ०-रिस रसाइ सरसाइ रस बतिया कहत बनाइ। -भिखारी ग्र०, आपकी रसाई बहुत दूर दूर तक है । भा० १, पृ० २६ । रसाखन-सज्ञा पुं॰ [सं०] मुरगा। रसापति-सज्ञा पुं० [स०] पृथ्वीपति । राजा । रसाग्रज-सज्ञा पुं॰ [स०] रसांजन । रसौत । रसापायी-सज्ञा पु० [स० रसापायिन्] १ वह जो जीभ से पानी रसाग्रथ-सज्ञा पुं॰ [स०] १. पारा । २ रसाजन । रमीत । पीता हो । २ कुत्ता । श्वान । रसानान-सक्षा पु० [स०] भोजन करने पर भी उसके रस का अनुभव रसापुष्प-सज्ञा पुं॰ [स०] भ्रमर । अलि [को०) । न करना । जैम,-खट्टा या मीठा पदार्थ खाकर भी उसकी रसाभास-मज्ञा पु० [मं०] १ माहित्य मे किमी रस को ऐसे स्थान खटास या मिठास का अनुभव न करना । (वैद्यक) । म अवतारणा करना जो उचित या उपयुक्त न हो। किसी रस रसाढ्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अमडा । साम्रातक । का अनुचित विपय मे अथवा अनुपयुक्त स्थान पर वर्णन । रसाढथ'-वि• रसपूर्ण । रसाई । जमे,-गुरु पर किए हुए क्रोय या गुरुपत्नी से किए हुए प्रेम को लेकर यदि रौद्र या शृगार रस का वर्णन हो, तो वह विभाव, रसाढ्या-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रास्ना। अनुभाव प्रादि मामग्रियो से पूर्ण होने पर भी अनौचित्य के रसातल-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पुराणानुसार पृथ्वी के नीचे के सात लोको कारण रसाभास ही होगा। २ एक प्रकार का अलकार जिममे मे से छठा लाक। उक्त ढग का वर्णन होता है। विशेष-सज्ञा पुं० [स०] कहते हैं, इसकी भूमि पथरीली है और रसामग्न-सञ्ज्ञा पुं० [०] वोल नामक गधद्रव्य । इसमे दैत्य, दानव तथा पणि या पाणि नाम के असुर, इद्र के रसामृत-सज्ञा पुं० [स० ] वैद्यक मे एक प्रकार का रस । डर से, निवास करते हैं । विशेष दे० 'पाताल' । विशेष—यह पारे गधक, शिलाजीत, चदन, गुडुच, धनिया, मुहा०-रसातल में पहुँचाना = मटियामेट कर देना । मिट्टी मे इंद्रजी, मुलेठी आदि के प्रयोग मे बनाया जाता है और मिला देना । बरबाद कर देना । रक्तपित्त तथा वर ग्रादि मे उपकारी माना जाता है । रसात्मक - वि० [सं०] १ सरस । रमयुक्त । २ सुदर । सूबसूरत । ३ रसाम्ल-सहा पुं० [स०] १ अम्लवेतम् । अमलवेद । २ नुक या सुस्वादु । जायकेदार । ४. तरल । पानीदार । जलवाला । ५ चुक नाम पी खटाई। ३ विपाविल । वृक्षाम्न। अमृततुल्य | अमृतमय (को०) । रसाम्लक-सा पु० [ म० ] एक प्रकार की घाम । ८-४६