पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८

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मरगोल ३७६७ मरण मरगोल-सज्ञा पु० [अ० मरगोल ] गाने मे ली जानेवाली गिटकिरी। मरजादा-सज्ञा स्री० [० मर्यादा ] दे० 'मरजाद'। उ०—करति स्वर कपन । ( सगीत )। न लाज हाट घर वर की कुछ मरजादा जाति डगी सी। कि. प्र०-मरना ।-लेना। भारतेंदु प्र०, भा० १, पृ० ४६२ । मरगोलना+-क्रि० अ० [हिं० मरगोल ] मुदर स्वर मे बोलना । मरजादि-सज्ञा स्त्री० [हिं० मरजादा ] ६० 'मर्यादा'। उ०- गिटकिरी लेते हुए बोलना। उ०—सुप्रा देखा एकस के हाथ होइ सुधाता सब्द सम, समझो कवि मरजादि ।-पोद्दार मे । जो मरगोलता है वो हर बात मे ।—दक्खिनी०, अभि. ग्र०, पृ०५३१ । पृ० ७८ । मरजिया-वि० [हिं० मरना + जीना J१ मरकर जीनेवाला। मरगोला-मज्ञा पुं० [अ० मर गोला ] दे० 'मरगोल' । जो मरने से बचा हो। उ०—(क) तस राज रानी कंठ लाई । मरघट-सज्ञा पु० [हि० मर (= मृत्यु)+घाट] वह घाट या स्थान जहाँ पिय मरजिया नारि जनु पाई ।—जायसी (शब्द०)। २ मुर्दे फूंके जाते हैं। मुर्दो को जलाने की जगह । स्मशान घाट । मृतप्राय । जो मरने के समीप हो । मरणासन्न । उ०-पद्मावति ममान । उ०—(क) जा घर माधु न सेवइ पारब्रह्म पात नाहिं । जो पावा पीऊ । जनु मरजिये परा तनु जीऊ ।-जायमी ते घर मरघट मा रेखा भूत बसे ता माहिं ।—कबीर (शब्द०)। (शब्द०)। ३ जो प्राण देने पर उतारू हो। मरनेवाला । (ख) हरिश्च द्र का पुत्र राहित मर गया। उस मृतक का ले उ०—अब यह कौन पानि मैं पीया । भै तन पाँख पतंग रानी मरघट गई।-लरलू (शब्द॰) । मरजीया । —जायसी (शब्द॰) । ४. धमरा । उ०-जई अस मुहा०-मरघट का भुतना=प्रेत । परी समुंद नग दीया। तेहि किम जिया चहै मरजीया। मरघट-वि० १ बहुत ही कुरूप और विकराल प्राकृति का । कुरुप । —जायसी (शब्द॰) । २. जो सदा उदाम रहता हो । मनहूस । रोना । ३ चेष्टाहीन । मरजिया-सज्ञा पु० जा पानी मे दूबकर उसके भीतर से चीजो को निष्क्रिय । निकालता है। समुद्र मे डूबकर उसके भीतर से मोतो आदि मरचा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० ) दे० 'मिरचा'। निकालनेवाला। जिवकिया उ०—(क) जस मरजिया समुद मरचूबा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'मरचोवा' । उ०—मरचूबा मितवर से धंसि मारे हाथ पाव तब सीप । दढि लेहु जो स्वर्ग दुबारे नवबर तक वोते हैं। कृपि, पृ०२३६ । चढे सो सिंहल दोप । —जायसी (शब्द॰) । (ख) कविता चेला मरचोवा-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार की तरकारी जिसका व्यवहार विधि गुरू सीप सेवाती बुद। तेहि मानुष का पास का जो योरप मे अधिकता से होता है । मरजिया समुद ।—जायसी (शब्द०)। (ग) तन ममुद्र मन मरज-सज्ञा पु० [अ० मज] १ रोग। बीमारी। उ०—(क) मरजिया एक बार धंसि लेइ। की लाल ल नीकमे की लालच पाली कछू को कछू उपचार कर पै न पाइ सके मरज री। जिउ देइ । -कवीर (शब्द॰) । -पद्माकर (शब्द०)। (ख) नेह तरजनि विरहागि सरजनि मरजी-मशा स्त्री० [अ० मरज़ी] १ इच्छा। कामना । चाह । सुनि मान मरजनि गरजनि बदरान की। श्रीपति (शब्द॰) । उ०—(क) बरजी हमैं और मुनाइवे को कहि तोप लख्यो २ बुरी लत । खराब अादत । कुटेव । जैसे,—आपको तो सिगरी मरजी। तोप (शब्द॰) । (ख) दरजी किते तिते धन बकने का मरज है। (इस अर्थ मे इसका प्रयोग अनुचित बातो गरजी। व्योतहि पटु पट जिमि नृप मरजी ।-गोपाल के लिये होता है।) (शब्द०)। २ प्रसन्नता । खुशी । ३ प्राज्ञा। स्वीकृति । मरजाद-सज्ञा स्त्री० [सं० मर्यादा) १ सीमा । हद । उ०-गुरु उ०—(क) वा विधि साँवरे रावरे की न मिली मरजी न मजा नाम है गम्य का शिष्य सीख ले मोय । बिनु पद ई मरजाद विनु न मजाखै । —पद्माकर (शब्द॰) । (ख) इनको सबकी मरजी गुरू शिष्य नहिं होय । -कवीर (शब्द०।। (ख) सुदरता करिके अपने मन को समुझावने है। ठाकुर (शब्द॰) । (ग) मरजाद भवानी। जाइ न कोटिन बदन बखानी । —तुलसी मरजी जो उठी पिय की सुधि ले चपला चमक न रहे वरजी (शब्द०)। २ प्रनिष्ठा । प्रादर । इज्जत । महत्व । उ०—(क) -(शब्द०)। गुरू मरजाद न भक्तिपन नहिं पिय का अधिकार। कहै कवीर मरजीवा-सज्ञा पुं० [हिं० मरना+जीना] द० 'मरजिया"। उ.- व्यभिचारिणी पाठ पहर भरतार । —कबीर (शब्द०) (ख) मोती उपजे सीप मे सीप समु दर माहिं। कोइ मरजिवा काढेसो यह जो अघ बीस हू लोचन छल बल करत प्रानि मुख हेरी । जीवन की गम नाहिं । —कबीर (शब्द०)। पाइ शृगाल सिंह बलि मागत यह मरजाद जात प्रभु तेरी । —सूर (शब्द०)। मरज्यादपुर-मञ्शा स्त्री० [ म० मर्याद ] द० 'मरजाद' । उ०- क्रि० प्र०-खोना ।-जाना।-रखना। मिले राज मझ मरज्याद छुट्टी । उमा सत्त सामत की मक्ति पुट्टी ।—पृ० रा०, १२ २७८ । ३ रीति । परिपाटी। नियम । विधि । उ०—मत मभु श्रीपति अपवादा । मुनिय जहां तहँ अस मरजादा ।—तुलसी (शब्द०)। मरटgt-सञ्ज्ञा पु० [स० मरत (= मृत्यु)] मौत । मृत्यु । ३०-चार यो.-मरजादवाला = समानित व्यक्ति । महान् पुरुष । उ०- मुरै मुख ना मुरै मरट मुच्छ क्रत जोह । -पृ० रा०, २५.४४३। लाज लो उतारता है मरजादयालो की । अपरा, पृ१ । मरण-समा पं० [सं०] १, मरने का भाव । मृत्य। मौत । २, . 1