पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९

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मरणधर्मा ३७६८ मरना FO , म० वत्मनाभ। बछनाग । ३ कुडनी मे पाठवां स्थान (को०) । ४ वद हाना । रक जाना । समाप्त होना । जमे वर्षा का । मरणधर्मा-वि० [ स० मरणधर्मन् ] मरणशील । मरणस्वभाव । जो मरता हो। मरणशील वि० [ ] ८० मरणधी' । मरणशीलता -- संज्ञा स्त्री॰ [ मं० J मरणमिता । मरने का भाव । मरणात मरणातफ-वि० [ म० मरणान्त, मरणान्तक ] जिसकी ममाप्त मृत्यु हो । अत मे जिससे मृत्यु प्राप्त हो [को०] । मरणाशंसा - मज्ञा री० [ म० ] शीघ्र मरने की इच्छा। जल्दी मग्ने की कामना । (जैन)। मरणाशाच-मज्ञा पु० [ म० । णुद्धक । किसी की मृत्यु होने पर परि- वार तथा जातिब को लगनेवाला अशौच । मरणीय - वि० [ 1 मरणशील । मरणवर्मा (को॰] । मरणोन्मुख-वि० [ मं० ] जो मृत्यु के निकट हो। जिसकी मृत्यु प्रा गई हो [को०] । मरता-मज्ञा पु० [सं० १ ] मरण । मृत्यु । मौत । मरतवा-सज्ञा पु० [अ० मरतबह । १ पद । पदवी । प्रोहदा । क्रि० प्र०-पामा । वढना ।-बढ़ाना ।-मिलना। २ बार । दफा । जैसे,—मैं आपके घर कई मरतबा गया था। मरतवान-सज्ञा पु० [ म० मृद्भाण्ड ] दे० 'अमृतवान' । मरद पु-मशा पुं॰ [फा० मर्द ] दे० 'मर्द' । उ०- अर्थ धर्म काम मोक्ष बमत विनोकनि मे कामी करामात जोगी जागता मरद की।- तुलमी (गन्द०)। मरदई-नशा स्त्री॰ [हिं० मर्द + ई (प्रत्य॰)] २ मनुष्यत्व । आदमीयत । २ माहम । ३ वीरता । वहादुरी। क्रि० प्र० करना ।-दिवाना। मरदन मज्ञा पुं० मं० मर्दन] १० 'मर्दन'। मरदना क्रि० म. [ स० मर्दन ] १ मसलना । मर्दन करना । (क) अति करहि उपद्रव नाथा। मरदर्हि मोहि जानि अनाथा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) पदन मरदि मद मदन शत्रु सुर लोक पठावत ।-गोपाल (शब्द०)। २. ध्वस वरना । चूर्ण करना । उ० – अमल कमल कुल कलित ललित गत वेनि मा वलित मधु माधवी को पानिए । मृगमद मरदि कपूर घूरि नूरि पग केमार को केशव विलास पहिचानिए ।- केगव (गन्द०)। ३ माटना । गूंधना । जैसे, पाटा मरदना । मरनिया।- पुं० [हि० मर्दाना] वह पुष्टतनु भृत्य जो वडे प्रादमियो के अग मे तेल ग्रादि मला करता है। शरीर मे नेल मलनेवाला नेवक । उ०-लिए तेल मरदनिया पाए। उबटि सुगघ चुपरि अन्हवा । - लल्लू (गन्द०)। मरदान-वि० [फा० मर्दानह ] २० 'मरदाना'। उ०—जहं मगद मरदान बन्द तह जानि नाग भुप्र । मिले तक्कि तरवार झारि उम्भारि मीम दुअ। रा०, ८५८ । मदानगीना स्त्री० [फा०] १. वीरता । शूरता । शौर्य । जn- काम इहै मरदानगी को पान पर मु लिए बहने है। ठाकुर, पृ० ३१ । - माहस । क्रि० प्र०-दिखाना। मरदाना-वि॰ [फा० मरदानह ] [ वि० स्त्री० मरदानी ] १ पुरुप सवधी । पुरुषो का । जैसे, मरदानी बैठक । २ पुरुषा का मा । जैसे, मरदाना भेम, । ३ वीरोचित । जैसे, मरदाना काम। ४ वहादुर । जवामद। मरदाना-क्रि० अ० [हिं० मरद] साहस करना । वीरता दिखाना । मरदुआ-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० मई ] १ मर्द बननेवाला । झूठा या दिखावटो मर्द । तुच्छ अादमी । कायर । उ०—वाहर वाही मरदुए, कुरबान जाऊँ तेरे ईमान पर ।-रगभूमि, भा० २, पृ० ६६२ । २ अपरिचित व्यक्ति । गैर आदमी । ३. खाविंद । पति । (त्रि०)। मरदूद-वि० [अ० ] १ तिरस्कृत। २ लुच्चा। नीच । उ०- मरदूद तुझे मरना सही । काइम अकल करके कही। तुरसी श०, पृ०२४। मरद्द-सज्ञा पु० [ फा० मर्द ] है 'मर्द' । उ०-सजे मंग चद पुंडरी मरद्द ।-५० रासो०, पृ. ७५ । मरन-सञ्ज्ञा पुं० [ मै० मरण ] द० 'मरण' । उ०—(क) अब भा मरन सत्य हम जाना |--मानस, ४।२७ । (ख) मरन भएउ कछु ससय नाही । —मानस, ४।२६ । यौ०-मरनपुर = मृत्युलोक । मर्त्यलोक | उ०—हीं तो प्रहा अमरपुर जहाँ । इहाँ मरनपुर पाएउ कहाँ।—जायसी ग्र०, (गुप्त), पृ० २०१ । मरना-क्रि० प्र० [ स० मरण] १ प्राणियो या वनस्पतियो के शरीर मे ऐसा विकार होना जिससे उनकी मव शारीरिक क्रियाए बद हो जायँ । मृत्यु को प्राप्त होना । उ०—(क) माई यों मत जानियो प्रीति घट मम चित्त । मरूं तो तुम सुमिरत मरूं जीवत सुमिरो निन्न । —कबीर (शब्द०)। (स) कर गहि खग तोर वध करिही सुनि मारिच हर मान्यो। रामचद्र के हाथ मरूंगो परम पुरुष फल जान्यो । —सूर (शब्द॰) । (ग) लघु प्रानन उत्तर देत बडे लरिहैं मरिहै करिहैं कछु तुलसी (शब्द०)। (घ) मरिबे को साहस कियो बढी विरह की पीर । दौरति ह्व समुहै ससी सरसिज सुरभि समीर ।-बिहारी (शब्द०)। (ड) मरल गौ कई वार जियाया।—कबीर सा०, पृ० १५११। मुहा०—मरना जीना = गादी गमी । शुभाशुभ अवसर । सुख दु ख । मरने की छुट्टी न होना या न मिलना = विलकुल छुट्टी न मिलना । अवकाश का अभाव होना । दिन रात कार्य मे फँसा होना । मरता क्या न करता जीवन से निराश व्यक्ति का सब कुछ करने को तैयार हो जाना । पराजय या असफलता को जान लेनेवाले व्यक्ति का सव कुछ करने को तैयार होना । मरते गिरते = किसी तरह । गिरते पडते । मरते जीते = दे० 'मरते गिरते'। मरते दम तक= दे० 'मरते मरते' । मरते मरते =आखिरी दम तफ । अतिम समय तक । मरा सा%D अत्यत दुर्वल । क्षीणकाय । या मरते को मारना पीड़ित मलना। उ० - साके ।