पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८५

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TO 1 राँजना' ४१४४ राउर रॉजना-क्रि० अ० [सं० रखन ] ( आंख मे ) काजल लगाना । राइफल-स्सा नी० [ श्र० ] घोडेदार वटूक । बटी उदूना । जिना-क्रि० स० रजित करना । रंगना । राइरगा-सा पुं० [ ] दे० 'गमदाना'। रॉजना—क्रि० स० [हिं० राँगा ] फूटे हुए वरतन को राँगे से राई-सा गी० [ म० राजिका, प्रा० राईश्रा ] १ एक प्रकार की जोडना | रांगे से टॉका लगाना। बहुत छोटी मरतो। २ नहा योडी माना या पग्गिाग । रौटा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] टिटिहरी चिडिया । टिट्टिभ । उ०-झिल्ली मुहार-राई भर - बहुत योगा। गती करके = छोटी से छोटी ते रसीली जीली रटेि हू की रट लीली, स्यार ते सवाई भूत- ग्कम या तीत के हिसान | गई नोन उतारना % जर तो भावनी ते पागरी।-केशव (शब्द॰) । हुए बच्चे पर उतारा क-के राई गार नमक को बाग में जानना, राँटा-सशा पु० [हिं० रहँटा ] दे० 'रहंटा' । जिससे नजर के प्रभाव का दूर होना माना जाता है। राई ते राँटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] चोरो की साकेतिक भाषा । पर्वत करना = घोटी वात को बहुत बना देना। उ०-प्रविनि गति जानी न परं । राई ते परत करि डार राई मेर।- रॉड - वि० सी० [सं० रणदा] १ जिसका पति मर गया हो और पुनर्विवाह न हुआ हो। विधवा । बेवा। २ रडी। वेश्या । सूर (०२०) | Tई काई रग्ना - टुाण्डे टुवाडे गार डालना । कसवी । (क्क०)। राई नाई होना = टुण्डे टुडे होना । उ०---अर्जुन ने ऐने पवन वाण मारे कि बादन गई फाईदा यो उर गए, जसे रूई के क्रि० प्र०-करना ।—रखना। पहन पवन के झोक है।-लन (शन्द०)। तेरी अग्गि में राँढ- सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का चावल जो वगाल मे अधिकता राई नोन = ईश्वर करे, तेग बुरी साठ मुझे न लगे। राई से से होता है । पर्वत फरना = छोटी बात को बन रहा देना। गई लोन रॉढ़ना-क्रि० स० [ स० रुदन ] विलाप करना। रोना । उ० उतारना-२० 'गई नौ उनारना' । उ० - (क) हिरण्याक्ष कोई औगुन मन वसा चित तें धरा उतार। दादू पति बिन अरु हिनामिपु मट प्रादिव जेर महारगो। गाहि प्रेत बाधा सुदरी रांढइ घर घर वार ।-दादू (शब्द॰) । वारन हित गाई गोन उतारयो ।-- रघुगण (गन्द०) । (ख) राँघ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परान्त (= दूसरी ओर) ] १ निकट । पाम । कबहू अंग भूपण बनवानति रा लोन उतारि-सूर समीप । उ०—(क) अनु रानी हौं रहतेउ रांधा। कमे रह (शब्द॰) । (ग) यशमति माय धाय उर लीन्हो राई लोन बचा कर बाँधा । —जायसी (शब्द॰) । (ख) एहि डर रांच न उतारो।—सूर (गन्द०)। बैठो मकु साँवरि होइ जाउ।-जायसी (शब्द०)। २ पडोस । राई@R-नशा सी० [हिं० राई ] राजा होने का भाव । रागापन । पाव । वगल । राजसी। यौ०-संधपोस, राँवपड़ोसी । राई–स पुं० [स० राजा] १ राजा। २ वह जो रॉधना-क्रि० स० [स० रन्धन ] ( भोजन आदि ) पकाना। पाक सबसे श्रेष्ठ हो । उ०-सुनु मुनि राई, जग सुखदाई। कहि प्रय करना । जैसे,-दाल धिना, चावल रांधना। उ०—विविध सोई, जेहि यश होई ।-पेशव (गन्द०)। मृगन कर आमिष राधा ।—तुलसी (शब्द०)। राउड-वि० [अ० ] गोल । वर्तुल । चक्राकार । राँघपड़ोस-सा पुं० [हिं० राँध (= पास)+पडोस ] पासपास । राउड-सज्ञा पुं० १ चतुलाकर वस्तु । वृत्त । पलय । घेरा । २ चक्र । पहोस । पार्श्व का स्थान । प्रतियेश । चक्कर । दौर । फेग । बारी को०] । रॉपी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पतली खुरपी के आकार का मोचियो का एक राउड टेवुल कान्फरेस--सरा पी० [ प्र०] वह सभा या रामेलन अौजार जिससे वे चमडा तराशते, काटते भोर साफ करते जिसमे एक गोल मेज के चारो ओर राजपक्ष तथा देश के भिन हैं । रापी। भिन्न मतो और दनो के लोग विना किसी भेदभाव के एक रॉभना-क्रि० अ० [सं० रम्भण ] (गाय का) बोलना या चिल्लाना। साथ वैठफर किसी महत्त्व के विषय पर विचार करें। गोलमेज वंबाना । उ०—(क) तव पृथ्वी दुख पाय धवराय गाय रूप कान्फरेंस । बनाय भिती भिती देवलोक मे गई।-लल्लू (शब्द०)। राउ-सा पुं० [ स० राजा, प्रा० राय, राव] राजा । नरेश । (ख) तमचुर खगरोर सुनहु वोलत वनराई । भिति गा खरिकन उ०-राउ तृपित नहिं मो पहिचाना। देखि मुवेष महामुनि मे बछरा हित घाई । —सूर (शब्द॰) । जाना ।—तुलसी (शब्द०)। राआ@f-सञ्ज्ञा पु० [ मं० राजा, प्रा० राश्रादे० 'राजा' । राउत-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० राज+पुत्र प्रा० राउत ] १ राजवश का राइ-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० राजा, प्रा० राया ] छोटा राजा। राय । कोई व्यक्ति । २ क्षत्रिय । ३ वोर पुरुष। वहादुर । उ०- सरदार । उ०—(क) परिहि पउरि सिंह गढि फाढे । हरपहिं राढक राउत होत फिर के जूझे।—तुलसी (शब्द॰) । राइ देखि तिन्ह ठाढे ।-जायसी (शब्द०)। राउर सज्ञा पुं० [सं० राज+पुर प्रा० राय राम+उर ] राइता-सज्ञा पुं० [हिं० रायता ] दे० 'रायता' । राजायो के महल का शत पुर | रनवास । जनानखाना ।