पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८६

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राउर ४१४५ स० उ०—(क) जब राउर मे रघुनाथ गए । वहुया श्वलाकत शोभ ६. एक प्रकार का विवाह जिनमे कन्या के लिये युद्ध करना भए । -केशव (शब्द॰) । (ख) भयो गुलाहल अवध अति मुनि पडता है। नृप राउर सोर ।-- तुलसी (शब्द॰) । (ग) गे सुमत तव राउर यो To-राक्षम विवाह = विवाह का एक प्रकार जिसने युद्ध मे माही।--तुलसी (शब्द०)। कन्या का हरण करके विवाह करते है। जमे,-गण राउरा-वि० [हिं०] श्रीमान का । प्रापया । उ०~ (क) जो राउर रुक्मिणो और पृथ्वीराज सयोगिता का विवाह । आयसु मे पाउँ ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) सब कर हित रुख ७ ज्योतिष मे एक योग का नाम (को०)। ८ तीसवां मुहर्त राउर राधे। -तुलसी (शब्द०) । (को०)। ८ राजा नद का एक अमात्य वाहाण जो कूटनोनि उिल-सज्ञा पु० [सं० राजफुल १ राजकुल मे उत्पन्न पुरुप । का बहुत बडा ज्ञाता था। राक्षसन-सा पु० [ म. ] श्रीरामचद्र का नाम । २ राजा। राफसल -सज्ञा पुं० [ स० राइस ] [ श्री राकसिन, रासिनि ] राक्षसपति-संशा पु० [सं० राक्षस + पति ] रावण । उ०-निगरे राक्षस। उ.-राकस बस हमे हतने सव । काज कहा नरनायक, असुर विनायक राक्षगति हिय हारि गए । केशव तिनसो हमसे अव ।-केशव (शब्द॰) । (ख) राज कहा रे (शब्द०)। राकम जानि बूझि बौरासि ।-जायसी (शन्द०)। राक्षसेंद्र-सञ्ज्ञा पु० [ स० राक्षसेन्द्र ] रावण (को०] । ] लाक्षा । (अव्युत्पन प्रयोग)। राकसगद्दा-सज्ञा पुं० [हिं० सकस+गद्दा ] कदर नाम की बेल राक्षा-सशा जी० [ और उसकी जड जो पजाब, सिध, गुजरात और लका मे पाई राख-सज्ञा स्त्री० [ स० रक्षा ? या स० धार>सार (वर्णव्यत्यय जाती है । से/>राख ] किसी बिलकुल जले हुए पदार्थ का अवगेप । विशेप--इसकी जड प्रोपधि के काम मे प्राती है । इसके खाने से भस्म । साक । जैसे, कोयले की राख । दस्त और के होती है । गर्मी के रोगी को इसका रस पिलाया राखडी-सशा सी॰ [ म० ] एक प्रकार का प्रारूपण (को॰] । जाता है और गठिया के रोगी की गांठ पर इसका लेप चढाया राखनाg-क्रि० स० [ म० रक्षण ] १ रक्षा करना। पत्राना । जाता है। उ०-जाको रास माश्याँ मारि न सकिहै कोइ ।-कभीर राकसताल-सा पु० [हिं० राकस+ताल ] तिब्बत मे कलाम के (शब्द०)। २ मानना । पालन करना । पालना । उ०-जो उत्तर ओर की एक झील का नाम, जिसे रावणहद और मान- छ राखं घरम की तेहि रासं करतार ।-(शन्द०)। ३ तलाई भी कहते हैं। पेड या फसल को जानवरो या चिडियो के साने या लागा के लेने से बचाना। रखवालो करना। उ-त सरी रामे राकसपत्ता-सशा पु० [हिं० राकस (= राक्षस) + हिं० पत्ता] जगली खरी खरे उरोजन बाल -बिहारी (शब्द०)। ४ दिपाना । कुंवार जिमे कांटल और बबूर भी कहते है । कपट करना । उ०—कयु तेहि ते पुनि मै नहि राखा । राकसिन, राकसिनि।--मज्ञा स्त्री० [हिं० राकस + इन, इनि समुझइ खग खग ही की भाखा ।--तुनमी (शब्द०)। ५ (प्रत्य॰)] राक्षसी। निशाचरी। उ०-खायो हुतो तुलसी रोक रखना । जाने न देना । व्हराना। उ०-जागनिया कुरोग रांड राकरािनि, केमरीकिसोर राजे वीर बरियाई है। मुनि परम विवेकी । भरद्वाज रावे पद टेकी ।-तुलसी —तुलसी (शब्द०)। (शब्द०)। ६ प्रारोप करना । बताना । उ०-तहाँ वेद राका-सा सी० [सं० ] १ पूर्णिमा की गन । २ पूर्णमासी । अस कारन रासा। भजन प्रभाव भाति बहु भासा ।-तुनी ३ सुजली का रोग। २ वह स्त्री जिसको पहले पहल रजो- (शब्द०)। ७ दे० 'रखना। दर्शन हुआ हो। ५ चद्रमा। (डि. )। ६ खा और राखो-सहा रसी० [सं० रना] वर मगलवून जो कुद विशिष्ट मूर्पणखा को माता का नाम । ७ एक नदी (को०)। अवसरो पर, विशेषत श्रावणी पूर्णिमा के दिन ग्राह्मण या राकाचंद्र-सज्ञा पुं॰ [ स० राकाचन्द्र ] दे॰ 'राकापति' [को०] । और लोग अपने यजमानो प्रयवा यात्मीय। मेो दाहिन हाय राकापति-सशा पु० [२०] चद्रमा। उ०-राकापति पोडम का कलाई पर बांयते हैं । रक्षाबंधन का डा। रक्षा। उग्रहि तारा गन समुदाइ ।-मानस, ७७८ । राखीरा मो[हिं० राग्य +६ (प्रत्य॰)] २० 'रास । राकारमण-सा पु० [ ] दे० 'राकापति' [को०] । राग-सरा पुं० [सं०] १. पिता इण्ट वन्नु वा 77 प्रादि पो ] चद्रमा । प्रात करने को इच्छा । प्रिय या घामान पन्नुका प्रात फरनको मागलापा । प्रिय मा गुपद वस्तु की ओर भारपण राक्षस-सा पु० [सं०] [ मी० राक्षसी ] १ निशाचर । दैत्य । या प्रवृत्ति 1 मासारिक मुन्वो का चार । असुर । २ कुवेर के घनकाश के रक्षा । ३ कोई दुष्ट प्राणी । ४ साठ सवत्सरो मे से उनचासवा नवत् । ५ वैद्यक मे एक विशेप-पतजाल ने न पाच प्रकार के पोशा ने एक प्रगर रस जो पारे और गधक के योग से बनता है। का क्लेश माना है। उनके मत ने गा व्यक्ति नुर मांगता है, विशेष—यह रस पेट की यादी दूर करता और भूख बढ़ाता है। उसको प्रवृत्ति और अधिक सुन्न प्रात करने को मोर होती है, TO राकेश-संशा पु० [ HO