पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९६

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राजवैद्य ४१५५ राजसूय स० स० म० स० स० राजवैद्य-सशा पुं० [सं०] १ राजा का चिकित्सक । राज्य का राजसफर-सञ्ज्ञा पुं० [०] हिलसा मछली । प्रधान चिकित्मक । २ वह वैद्य जो चिकित्सा मे कुशल हो। राजसभा-सज्ञा स्त्री० [ १ राजा की मभा। दरवार । २ राजशक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] दे० 'राजसत्ता'। वह सभा जिसमें अनेक राजा वैठे हो। राजानो की सभा राजशण-सशा पु० [ ] पटसन । ३ राज्यसभा। राज्यपरिषद् । (० कौंसिल आफ स्टेट्स) । राजसमाज-सज्ञा पु० [सं०] १. राजानो का दरवार या समाज | राजशफर-सञ्ज्ञा पुं० [ ] हिलमा मछली। राजमडली । २ राजा लोग। उ०-राजसमाज कुसाज कोटि राजशब्दोपजीवी-सज्ञा पु० [ स० राजशब्दोपजीवी ] वह जो राजा के अधिकार और कर्तव्यो से रहित होते हुए भी राजा कहा कटु कलपत कलुप कुचाल नई है । —तुलसी (शब्द॰) । जाता हो। राजसर्प-सज्ञा पुं॰ [ म० ] एक प्रकार का वडा सांप। राजशब्दोपजीवीगण-सज्ञा पुं० [ पर्या०-भुजगभोजी। स० ] प्राचीन काल का एक प्रकार का गरण या प्रजातन। गजसर्षप-सञ्ज्ञा पुं० [ पुं० ] राई । विशष-कौटिल्य ने लिखा है कि लिच्छिवि, वज्जिक, मद्रक, राजसाक्षी-सच्चा पु० [ स० राजसाक्षिन् ] वह अपराधी जो इकबाली कुरुपाचाल श्रादि गण राजशब्दोपजीवी है। गवाह बन गया हो । (अ० एप्रूवर )। राजशाक-सशा पु० [ स० ] वास्तुक शाक । बथुआ। राजसायुज्य-सज्ञा पु० [ ] राजत्व। राजशाकनिका-सज्ञा स्त्री० [ ] राजणाक । वास्तूक । वथुप्रा । राजसारस-सज्ञा पु० [सं० ] मयूर । मोर । राजशालि-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का जडहन धान जिसे राजसिह-सज्ञा पुं॰ [ स० ] वह नरेश जो राजाप्रो मे श्रेष्ठ हो। राजभोग्य या रायभाग भी कहते है। इसका चावल बहुत श्रेष्ठ राजा (को०] । महीन और मुगाचत हाता है । राजसिहासन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] राजा के बैठने का सिंहासन । राजशिबी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० राजशिम्बी ] एक प्रकार की सेम । राजगद्दी । विशेष -यह चौडी और गूदेदार होती है तथा खाने मे स्वादिष्ट राजसिक-वि० [ सं० ] रजोगुण से उत्पन्न । राजस । होती है। इसे घीया सेम भी कहते हैं। इसकी दो जातियाँ राजसिरी@-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० राजश्री] राजश्री । राजलक्ष्मी । उ०- होती है-एक काली और दूसरो सफेद । इसमे और सामान्य केशव ये मिथिलाधिप है जग मे जिन कीरति वैलि वई है। दान सेम मे यह भेद है कि यह उससे अधिक चौडी होती है और वृपान विघानन सो सिगरी वसुधा जिन हाथ लई है। अंग लवाई मे बहुत नही बढती। छ सातक पाठक सो भव तीनहुं लोक मे सिद्ध भई है। वेद त्रयी अरु राजसिरी परिपूरणता शुभ योग भई है ।—केशव राजशुक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का तोता जो लाल रंग का होता है । इसे नरी कहते हैं। (शब्द॰) । (ख) लाल मणीन रची मुडवारी। राजसिरी जावक अनुहारी। फौल रही किरणें प्रति तासू । केशरि फूलि रही पर्या०-प्राज्ञ । शतपत्र । नृतप्रिय । सविलासू । -गुमान (शब्द॰) । राजेशुकज-सज्ञा पु० [ स० ] एक प्रकार का धान | राजसी-वि० [हिं० राजा ] राजा के योग्य, बहुमूल्य या भडकीला । राज ग-सञ्ज्ञा पु० [स० राजशृग ] राजकीय छत्र। राजछत्र । राजायो की सी शानवाला । जैसे,—उनका ठाट वाट सदा २ मद्गुर मत्स्य । मांगुर मछली [को०] । राजसी रहता है। राजश्री-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] १ राजलक्ष्मी । राजवैभव । राजा का राजसी-वि० सी० [सं० ] जिसमे रजोगुण की प्रधानता हो। ऐश्वर्य । राजा की शोभा। रजोगुणमयी । जैसे, राजसी प्रकृति । राजससद् - सज्ञा पुं॰ [ स०] १ राजसभा । २ वह धर्माधिकरण राजसी-सशा स्त्री॰ दुर्गा । जिसमें राजा स्वय उपस्थित हो। स्वय राजा का दरवार । राजसूय-सञ्ज्ञा पुं० [०] १ एक यज्ञ का नाम । राजस-वि० [ ] [स्त्री॰ राजसो ] रजोगुण से उत्पन्न। रजो- गुणोद्भव । रजोगुणी । जैसे,--राजस यज्ञ, राजस दान, राजस विशेप-इस यज्ञ के करने का अधिकार केवल ऐसे राजा को होता बुद्धि आदि । विशेप दे० 'गुण' । है, जिसने वाजपेय यज्ञ न किया हो। यह यज्ञ करने से राजा सम्राट् पद का अधिकारी होता है । यह यज्ञ बहुत दिनो तक राजस-मशा पुं० १.ावेश । क्रोध । उ०-जो चाहै चटक न घटे होता है और इसे भनेक यज्ञो और कृत्यो को समष्टि कहना ठीक मैलो होइ न मित्त । रज राजसु न छुवाइये नेक चीकनों है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार इष्टि, पशु, सोम और दार्वी होम चित्त ।--विहारी २०, दो० ३६६ | २ मद । घमड । गर्व । इसके प्रधान अग हैं । इसका प्रारभ पवित्र नामक सोमयाग से होता है और सौग्रामणो से इसकी समाप्ति होती है। इसके २ वह सत्ता जो राजसत्ता-सज्ञा स्त्री० [स०] १. राजशक्ति । किसी देश या जाति के भरण पोपण, वर्धन और रक्षण के लिये बीच मे दस सस्प, अभिपेचनीय, मरुत्वती, दिग्विजय, वृहस्पति- स्थापित की जाती है। सवन, वृहविर्धान, घ त क्रीडा प्रादि अनेक कृत्य होते हैं। इसमे