पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९५

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राजयोग्य ४१५४ राजवृक्ष म० HO - २ फलित ज्योतिष के अनुसार ग्रहो का ऐसा योग जिमके जन्म- राजवश्य-पि० । राजा के वश मे उत्पन्न । जो राजकुल म कुडली मे पडने से मनुष्य राजा या राजा के तुल्य होता है । उत्पन हुअा हो। विशेष-यवनाचार्य के मत से पापग्रहो का जन्मसमय स्वस्थान- रोजवर्चस- राजा पुं० [सं० राजवर्चम्] १ राजशावित । २ गजपद । भागी होकर सूच्च होना राजयोग है। पर जीवशर्मा का मत है गजवर्त-ज्ञा पुं० [ म० ] अनेक ग पा वपदा । वह वस्त्र जिसमें कि मगल, शनि, सूर्य और वृहस्पति में से किमी तीन ग्रहो का वई रग हो। अपने स्थान मे सूच्च पडना राजयोग है। राजवर्तक- yo [ ० ] एक प्रकार का प्रमिद्ध गोमती पन्यर । राजयोग्य' सज्ञा पुं० [सं०] १ चदन । गजवा- पुं० [सं० राजवर्मन् ] पटी और चोटी मढन । राजयोग्य-वि० राजा के योग्य वा उपयुक्त । राजमार्ग। जपर। राजरग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राजरङ्ग] चांदी । रजत । राजवलो ~म सी० [सं०] गधप्रनारिणी । गयपनार । प्रसारिणी । राजरथ-मचा पुं० [सं०] राजा का रथ । राजवल्लभ~सग पुं० [सं०] १. विग्नी। २ वटा ग्राम । ३. वटा वैर । पेउंदी बेर । ४ पियार । चिराजी (को०)। " राजराज-सशा पु० [सं०] १ राजाम्रो का राजा। अधिराज । २ कुवेर । ३ चद्रमा । एक मित्र गोपय जो शून, गुल्म, ग्रहणी, प्रवीनार प्रादि में दी जाती है। राजराजेश्वर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० राजराजेश्वरी] १ रागाग्रो गजवल्ला-सा र [ ३० } रेल का पंड । का राजा । अधराज। २ एक रमोपप का गम जिमका प्रयोग दाद, कुष्ठ आदि रोगो म होता है। गजवसति--सा पौ० राजा पा महन । राजभवन । विशेप-पारे, गधक और हरताल के माथ ताये को मिलाकर गेजवारसा पुं० [ ३० राज+ द्वार ] गजद्वार । उ-मागत भंगरया के रस में एक दिन खरन करके उसमे ग्रिफला, गुडुच, गजगार नि पाई। भीतर वेरिन्ह बात जनाई।-जायसी (शन्द०)। वकुची सम भाग मिलाकर दो दो रत्ती की गोलियां बनाई जाती है और दो तोले मधु या घी के साथ खाई जाती है। राजवागणी [-सा मी० [सं० ] एक प्रकार का मद्य । राजराजेश्वरी-सशा सी० [सं०] १ दस महाविद्यानो मे में एक फा विशेप-प्रर्यप्रकाश के भनुमार यह सोठ, पीपल, पिपलामूलक, नाम । भुवनेश्वरी । २. राजराजेश्वर की पत्नी । गहाराशी । अजवायन और पाली मिच का उनकी तीन में तिगुने भन्न- राजरीति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] मांसा । कमकुट । वर्ग और चौगुने मधुजातीय और क्षजातीय रसो में मिलाकर मीचा जाता है। राजरोग-सज्ञा पुं० [हिं० राज+रोग] १ वह रोग जो असाध्य हा । जैमे,- यक्ष्मा, श्वास इत्यादि । २ राजयदमा । क्षय रोग । राजवाह-सहा पु० सं०] घोटा। राजर्पि-ज्ञा पु० [स०] वह ऋपि जो राजवश या क्षत्रिय कुल का राजवाध-सा पुं० [० ] राजा को मवारी का हायो । हलो। हो। क्षत्रिय ऋपि । जैसे,—रापि विश्वामिन । राजवि- नया पुं० [सं० ] नीलकम् । राजविजय - ससा ० [सं०] सपूर्ण जाति का एक राग । विशेप-ऋपि सात प्रकार के कहे गए हैं-देवपि, ब्रह्मपि, महपि, परमपि, राजपि, काडपि और श्रुतपि। इनमे म अतिम राजविद्या-संग सी. स०] राजनीति । दो वेद के द्रष्टा है। पर्या-राजनय, नृपनय, राजशास, प्रादि । राजल-सबा पुं० [हिं० राजा+ ल (प्रत्य॰)] एक प्रकार गा धान जो राजविद्रोह-मश पुं० [सं० ] वगावत । राजविप्लव । विशेप दे० अगहन मे पककर काटने योग्य होता है। 'राजद्रोह' । राजलक्षण-सज्ञा पुं० [स०] सामुद्रिक के अनुसार वे चिह्न या लक्षण राजविद्रोही-सा पुं० [सं० राजविद्रोहिन् ] वह जो राजा या जिनके होने से भनुप्य राजा होता है । राज्य के प्रति विद्रोह करे । वागी। राजलक्ष्म-सज्ञा पुं॰ [ स० राजलक्ष्मन्] १ राजानो के चिह्न। राज- रोजविनोद -सा पुं० [सं०] एक ताल का नाम । (मगीत)। चिह्न । २ युधिष्ठिर । ३ वह मनुष्य जिसमे सामुद्रिक के राजवी-ना पुं० [म० राजवीजी ] दे० 'राजवीजी' । उ०- अनुसार राजामो के लक्षण हो । राजलक्षण से युक्त पुरुष । नत राजा आदर दिवट, जउ राजवियां लोग ।-ढोला०, राजलक्ष्मी-सशा सी० [सं०] १ राजश्री। राजवैभव । २ राजा पृ०३। की पाक्ति वा शोभा। राजवीजी-वि० [ से० ] राजवशी । राजवत-वि० [सं० राज+वत (प्रत्य॰)] राजकर्म से सयुक्त । उ०- राजवीथी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] राजमार्ग । राजपथ । चौडी सडक । जन राजवत, जग योगवत । तिनको उदोत, केहि भांति होत । –केशव (शब्द०)। राजवृक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ भारग्वध का वृक्ष । उरगा का पेड। अमलतास । २ पयार का पेड। ३. लका का भद्रचूड नामक राजवश-सञ्चा पुं० [सं०] राजा का कुल । राजकुल । वृक्ष । ४. श्योनाफ वृक्ष । सोनापाढ़ा ।