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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९८

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राजा स० स० राजाग्नि ४१५७ एक शासक की नियुक्ति को प्रावश्यकता पडी। पहले पहल राजाद्रि-सज्ञा पुं० [ स०] १ एक पर्वत का नाम । २ एक प्रकार यह प्रथा भरत जाति में चली थी, इसीलिये राजसूय यज्ञ का अदरक । बडा दरकाववादा। मे 'भो भारता अय व सर्वेपा राजा'। कहकर राजा को राजाधिकारी - सशा पुं० [सं० राजाधिकारिन ] १ वह जो न्यायालय राजसिंहासन पर बैठाया जाता था। पहले यह राजा प्रजामो मे बैठकर न्याय करता हो। विचारपति । २ सरकारी के द्वारा प्रतिष्ठित होता था, और प्रजा का अहित करने पर अधिकारी। लोग उसे पदच्युत भी कर देते थे। वेणु आदि राजायो का राजाविकृत--सञ्ज्ञा पु० [सं०] 20 'राजाधिकारी' (को०] । पदच्युत होना इसका उदाहरण है । जब उन शालीनो मे राजाधिदेय-वज्ञा पु० [ ] सविधानानुसार राजा या शासक को वणव्यवस्था स्थापित हो गई, तब राजा का पद पैतृक हो व्यक्तिगत खर्च के लिये सरकारी खजाने से दी जानेवाली गया और उसकी शक्ति सर्वोपरि मानी गई। मनु ने राजा निश्चित रकम । (S० 'प्रिवी पर्स') । को अग्नि, वायु, मूर्य, चद्र, यम, कुवेर, वरुण और महेद्र या इद्र की मात्रा या अश से उत्पन्न तिखा है और उसे चार वर्णो राजाधिदेव-सहा पुं० [ सं० ] सूर जाति का एक क्षत्रिय वीर । का शासक कहा है। ज्यो ज्यो प्रजात्रो की शक्ति धीमी पड़ने राजाधिदेवी-सञ्चा स्त्री० [ ] शूरसेन की एक कन्या का नाम । लगी, त्यो त्यो राजा का अधिकार सर्वोपरि होता गया और राजाधिराज-सज्ञा पुं० [सं० ] गजायो का राजा। शाहशाह । प्रत मे वह देश या राज्य का एकाधिपति स्वामी हो गया । वडा वादणाह। दूसरे वर्ग के प्रार्यो मे, जो इधर उधर जत्थे या गण बाँचकर राजाधिष्ठान-सज्ञा पुं० [ स०] १ राजधानी। २ वह नगर जहाँ चलते फिरते रहते थे और जिन्हे व्रात्य या यायानर कहते थे, राजा का प्रासाद हो। प्रजापति की प्रथा बनी रही और यही प्रजापति गणनाथ बन राजाध्वा-सज्ञा पुं० [ स० राजाध्यन् ] राजपथ । राजमार्ग। चौडी गया। ऐसे पार्यों में न तो वर्ण की ही व्यवस्था थी और न सडक। उनमे राजा का एकाधिपत्य ही हुआ। उनमे प्रजापति राजा राजानक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ छोटा राजा । सामत राजा। २ तो कहलाने लगा, पर वह सारा काम गण की समति से एक समानित उपाधि जो प्राय उच्च कोटि के अध्येताओ और करता था। ऐसे व्रात्य पार्य कोशल, मिथिला, और विहार कवियो को दी जाती थी । जैसे, राजानक रुय्यक (को॰) । आदि प्रातो से आकर बसे ये और उपनिषद् या ब्रह्मविद्या के अभ्यासी थे। मिथिला के राजा जनक इन्ही यायावर पार्यों राजान्न-सज्ञा पुं० [सं०] १ राजा का अन्न । २ एक प्रकार का मे ये और वहां के व्याध भी ब्रह्मज्ञान के उपदेष्टा थे। इनसे शालि धान जो आध्र देश मे उत्पन्न होता है। लिच्छदि लोगो मे गण की प्रथा महात्मा बुद्धदेव के काल तक पर्या-राजाह। नृपान्न । दीर्घशूकम् । राजधान्य । राजेष्ठ । प्रचलित थी, इसका पता त्रिपिटक से चलता है। दीर्घकुरक। पर्या०-नृरति । पार्थिव । भूप। महीक्षित् । भूभृत । पार्थ । राजाभियोग-सज्ञा पु० [सं०] राजा का अपनी प्रजा पर दबाव नाभि । नाराज । महींद्र। नरेंद्र । दधर । स्कंध । भूभुज् । डालकर उसकी इच्छा न रहने पर भी उसे कोई काम करने के प्रभु । अर्थपति। लिये वाध्य करना । राजा का प्रजा से जवरदस्ती कोई काम विशेप-बहुत से शब्दो के साथ समस्त होकर यह शब्द श्राकार को बडाई या श्रेष्ठता सूचित करता है। जैसे,- राजदत, राजाभिषेक-सज्ञा पु० [ ] दे॰ 'राज्याभिषेक' [को०)। राजमाष, राजशुक, राजशालि, इत्यादि । राजाम्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का आम जो सामान्य प्रामो २ अधिपति । स्वामी। मालिक । ३ एक उपाधि जिसे अंग जी से वहा होता है और जिसमे गूदा अधिक और गुठली छोटी सरकार बड़े रईसो, जमीदारो या अपने कृपापात्रो को प्रदान होती है। करती थी। जमे,-राजा राममोहन राय, राजा शिवप्रसाद | विशेप-इसके पेडो से कलम उतारी जाती है, जो छोटी होने पर ४ धनवान् वा समृद्धिशाली पुरुप । ५ प्रेमपात्र । प्रिय व्यक्ति । भी अच्छे और बडे फल देती है। इसके फल पकने पर मीठे ( बाजारू)। होते हैं और सामान्य प्रामो की अपेक्षा उनमें रेशा कम होता राजाग्नि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] राजा का कोप । हैं। बबई, लंगडा, मालदह, सफेदा यादि इसी जाति के प्राम राजाज्ञा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ राजा की आज्ञा । हैं। वैद्यक मे इसे पित्तवर्धक और पकने पर बलवीर्यप्रद राजातन-सञ्ज्ञा पु० [ स०] चिरौंजी का पेड । पयार । माना है। राजात्यवर्तक-सहा पुं० [सं० ] लाजवर्द पत्थर । राजावर्त पर्या-राजफल । स्मराम्र।घोफिलोत्सव । फालेष्टा । नृपवल्लभ । राजादन-सज्ञा पुं० [सं०] १. क्षौरिका । खिरनी। २ पयार । राजाम्ल-सज्ञा पुं० [ ] अम्लवेतस् । अमलवेद । चिरोजी । ३ टेमू। राजार्क-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] श्वेत मदार । सफेद फूल का पाक | राजादनी-सशा स्त्री० [सं० ] क्षीरिणी । खिरनी । राजाई' - तशा पु० [सं०] १. अगर | अगर । २ कपूर । क्र । कराना। to HO 1 HO