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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९९

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राजाह राजेंद्र ३ जवू वृक्ष । जामुन का पेड । ४ एक प्रकार का चावल । राजिव-सा पुं० [सं० राजीन ] कमल | उ०-गजिवनयन दे० 'राजान' (को०)। धरे धनु सायक । भगत बिपति भजन मुसदायक |- तुलमी राजाह'- वि० राजा के योग्य । (शन्द०)। राजाहण -सञ्ज्ञा पुं० [ सं०] १ सभ्रमसूचक उपहार । भारी उपहार । राजी-शा ग्पी० [ म०] १ पक्ति । श्रेणी । २ राई | ३ लाल मरसो। दे० 'राजि'। २ राजा का दान। राजालावु, राजालावू-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का लौना या राजी-वि० [अ० राजी ] १ कोई नहीं हुई बात मानने को तैयार । जो आकार मे वडा और खाने मे मीठा होता है। अनुकूल । मगत । उ० -श्रा इतगजी मन कर, मुझ नित राजालुक-सञ्ज्ञा पु० स० ] मूली। राजी रास । जब रम ज्यो चाह लियो मुरंग हिये अभिलाख । राजावत- सज्ञा पुं० [म० लाजवर्द नामक रत्न। -सनिधि (शब्द०)। वशेष-यह उपरत्न माना गया है। वैद्यक मे इसे मधुर, स्निग्य क्रि० प्र०—करना ।--यना ।-होना । और पित्तनाशक कहा है। २ नीरोग । चगा । ३ खुश। प्रपन्न । उ०-ताजी ताजी गतिन गजाश्रय-सा पुं० [सं० ] राजा का प्राश्रय । ये तर ते मीचे सैन । गाह मन राजी कर बाजी तेरे नैन । राजाश्रित-वि॰ [स०] राजाश्रय मे रहनेवाला । जैसे, राजाधित कवि । -रमनिधि (शब्द०)। राजासदी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० राजासन्दी ] काठ की चौको या पीढ़ा क्रि० प्र०-रसना। जिसपर यज्ञो मे सोम रखा जाता था । ४ मुसी। मुन्दयुक्त। राजासन- सचा पुं० [सं०] राजाश्रो के बैठने का श्रासन । सिंहासन । यौ० - राजी खुशी मही लानती । कुशल आनद । तख्त । राजी -सज्ञा ० रजामदी। प्राकूनता । ७०-हम मव प्रजा चलहि राजोहि - सज्ञा पुं० [ स०] ] दोमुंहा माप। नृप राजी। यथा मून प्रेन्ति रथ बाजी -गोपाल (शब्द॰) । रोजिदपुसमा पु० [ स० राजेन्द्र ] दे० 'राजद्र' । उ०-भीमराज राजीनामा-सज्ञा [फा० राजीनामह.] १ वह लेख जिसके द्वारा राजिद राइ राइन उच्चारन । अति अचभ वलरूप द्रुग्गपति अभियोगी और अभियुक्त, या वादी और प्रतिवादी परस्पर सेव सधारन।-पृ० रा०, १२।८। एफमत या अनुकूल होकर अभियोग या वाद को न्यायालय से राजि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ पक्ति । अवली। कतार । २ रेखा। उठा लें अथवा एक मत हो जायं और तदनुसार ही न्यायालय लकीर । ३ राई। ४ अलिजिह्वा । शु डिका (को०)। ५ को व्यवस्था देने के लिये उमसे प्रार्थना करें। २ स्वीकारपत्र। क्षेत्र । भूमि । स्थान । विषय (को०)। राजीफल-सज्ञा पुं० [म०] परवन । पटोल । राजि-सञ्ज्ञा पुं० ऐल के पौत्र और आयु के एक पुत्र का नाम । राजीव'-मज्ञा पुं० [सं०] १. रैया मछली। - एक प्रकार का मृग राजिक-वि० [अ० राजिक ] अन्नदाता । पालन पोषण करने जिसकी पाठ पर वारिया होती है । ३ हाथी। ४ सारस पक्षी वाला। उ० - दादू राजिक रिजक लिए खडा, देव हाथों की एक जाति । ५. नीलपम । तीनकमल। ६ कमल । हाथ /-दादू०, पृ० ३४० । जैस,--राजीव लोचा। रोजिको-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ केदार । क्यारी। २ राई । ३ राजीव-वि० जिसपर धारिया हो । धारीदार । राजि। पक्ति। ४ रेखा। लकीर। ५ लाल सरसो। ६ राजीवगण-सरा पुं० [सं०] एक प्रकार का मात्रिक छद जिसके मडुमा । ७ वृष्णोदुवर । कठगूलर । ककूमर । ८ एक प्रत्येक चरण मे प्रठारह मानाए होती है और नो नो मात्रामो पारमाण । ६ एक प्रकार का छुद्र रोग जिसमे सरमा के पर विराम पडता है (नौ नौ राजीवगण क्ल घा.रए।- बरावर छोटी छोटी फुसियाँ निकलती है। यह रोग प्राधक छद०, पृ०४७)। इसमे तुकात मे गुरु लघु का कोई विशेष धूप लगने और गर्मी के कारण हो जाता है । नियम नही है। इसे माली भी कहते है । राजिकाचित्र -एचा पुं० [सं० ] एक प्रकार का सांप जिसके ऊपर राजीविनी--सशा खी० [सं०] १ एक प्रकार का कमल । कमलिनी । सरसो की तरह छोटी छोटी वुदकियाँ होती हैं । २ राजीविनी का समूह (को०) । राजित-वि० [सं०] १ जो शोभा दे रहा हो। फवता हुआ। राजुफ-सज्ञा पुं० [सं०] मौर्य काल का एक राजकर्मचारी, जो एक शोभित । २ विराजा हुआ । मौजूद । उपस्थित । प्रात का प्रवध करता था। राजिफला-सचा सी० [सं० ] चीना ककडी। राजुदल-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वृक्ष । राजिमान्-सज्ञा पुं० [सं० राजिमत् | एक प्रकार का सांप । राजू' - सच्चा स्त्री० [सं० रज्जु] दे० 'रज्जु' । राजिल–मचा पुं० [सं०] एक प्रकार का सांप जिमके ऊपर सीधी राजू -मश पुं० [हि० राजा] प्रेमपान दा प्रिय व्यक्ति । रेखाएं होती हैं । (सभवत इ हुभ, डेडहा)। राजेंद्र'-सक्षा पु० [सं० राजेन्द्र] १ राजानो का राजा। वादशाह । राजिलफला-मज्ञा स्त्री॰ [स० ] एक प्रकार का खरबूजा या ककड़ी। २ राजगिरि नामक पर्दत । राजादि।