पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४०

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मरान ३७६६ मरमती को और पीडा पहुंचाना। उ०—मरे को मारे शाह मदार नासा । चारिहु लोक चार कह बाता। गुप्त लाव मन जो सो (बोल०)। राता । —जायसी (शब्द०)। ११ भस्म होना । कुश्ता होना । २. बहुत अधिक कष्ट उठाना । वहुत दुख सहना । पचना । उ०- जैसे, धातु आदि का मरना । १२ डूब जाना। प्राप्ति या (क) एक वार मरि मिल जो पाए। दूसरा वार मरं कित वसूली की प्राणा न रह जाना। जैसे, बकाया या जाए। —जायसी (शब्द०)। (ख) तुलसी भरोसो न भवेस पावना आदि। भोरानाथ को तो कोटिक कलेस करो मरो छार छानि सो। मरनि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हिं० ] दे० 'मरनी' । तुलसी (शब्द॰) । (ग) तुलमी तेहि सेवत कौन मर, रज ते मरनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० मरना ] १ मृत्यु । मौत । २ दु ख । लघु को कर मेरु से भार ।—तुलसी (शब्द०) (घ) कठिन दुई कष्ट । हैरानी । उ०—सुनि योगी की अम्मर करनी। न्योरी विधि दीप को मुन हो मीत मुजान । सब निसि बिनु देखे जर विरह विथा की मरनी । —जायसी (शब्द०)। ३ वह शोक मरं लखै मुख भान ।-रसनिधि (शब्द॰) । जो किमी के मरने पर उसके मबधियो को होता है । ४ वह मुहा०—किसी के लिये मरना = हैरान होना। कप्ट सहना । कृत्य जो किसी के मरने पर उसके सबधी लोग करते हैं। किसी पर मरना लुब्ध होना । आसक्त होना । मर पचना= यौ-मरनी करनी = मृत्यु और मृतक की अत्येष्टि क्रिया । अत्यत कष्ट सहना । मर मरकर = बहुत अधिक कष्ट उठाकर । मरबुली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० एक प्रकार का कद जो पहाडी प्रदेशो उ०-२३ मील पहाडी यात्रा थी, किंतु कल तो मर मरकर मे उत्पन्न होता है। मैं पैदल ही २१ मील चला पाया था। किन्नर०, पृ० ३४ । विशेष—इसके टुकडे गज गज भर के गड्ढे खोदकर बोए जाते क्सिी की बात पर मरना या किसी बात के लिये मरना = है। बोवाई मदा हो सकती है, पर गर्मी के दिनो मे इसमे दुख महना । मर मिटना= श्रम करते करते विनष्ट हो जाना। पानी देने की आवश्यकता होती है। यह दो प्रकार की होती उ०-सवने मर मिटने की ठान ली थी।-इन्शा (शब्द॰) । है-मीठी और तीक्ष्ण या गला काटनेवाली। दोनो से मरा जाना = (१) व्याकुल होना । व्यग्र होना । जैसे,—सूद तीखुर बनाया जाता है । इसकी जड को आलू या कद भी देते देते किमान मरे जाते हैं। (२) उत्सुक होना । उतावली कहते है । कद को वोकर उसके लच्छे बनाते हैं। फिर लच्छे करना। को दबाकर या कुचलकर रस निकालते हैं जिसे सुखाकर मत्त ३ मुरझाना । कुम्हलाना । मुखना । जैसे, पान का मरना, फल वनता है जो तीखुर कहलाता है। रस निकले हुए खोइए को का मरना। ४ मृतक के समान हो जाना। लज्जा, सकोच भी सुखा और पीसकर कोका के नाम मे बेचते हैं। इसकी या घृणा आदि के कारण मिर न उठा सकना । उ०—(क) खेती पहाडो मे अधिकता से होती है। यहि लाज मरियत ताहि तुम सो भयो नातो नाथ जू । अब और मुख निरखं न ज्यो त्यो राखिए रघुनाथ जू । केशव मरभख-सञ्ज्ञा पु० [दश०] वह जो सदैव खाने के लिये लालायित रहता है। (शब्द॰) । (ख) तव मुधि पदुमावति मन भई । संवरि विछोह मुरछि मरि गई। —जायसी (शब्द॰) । ५ किसी पदार्थ का मरभुक्खा-वि० [ हिं० मरना+ भूखा ] १ भूख का मारा हुआ। भुक्खड । २ कगाल । दरिद्र । किसी विकार के कारण काम का न रह जाना । जैसे, आग का मरना, चूने का मरना, मुहागा मरना, घूल मरना। मरभूखा-सज्ञा पु० [हिं० मरना + भूख ] भुक्खड । भुखमरा। उ०-न जाने कहाँ के मरभूखे जमा हो गए हैं ।-रगभूमि, मुहा०-पानी मरना = (१) पानी का दीवार या दीवार की नीव भा०२, पृ०४९८ । मे धंसना । (२) किसी के सिर कोई कलक आना। उ०- मरमॅनि-वि० [ स० मर्म ] मर्मवाली । दुखियारी। उ०—मरमनि, पुनि पुनि पानि वही ठाँ मर । फेर न निकसे जो तहं पर।- सोइ रे चादर ताँनि, माइलि बोले बोलने भावज वोले बोलने । जायसी (शब्द०)। —पोद्दार अभि०, ग्र०, पृ०, ६२७ । ६ खेल मे किसी गोटी या लडके का खेल के नियमानुसार किमी मरम-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मर्म ] दे० 'मर्म'। उ०—जिय को मरम तुम कारण से खेल से अलग किया जाना । जैसे, गोटी का मरना, साफ कहत किन काहे फिरत मंडराए हो।-भारतेंदु ग्र०, गोइयाँ का मरना, इत्यादि । ७ किसी वेग का शात होना । भा० १, पृ० ५४५।। दवना । जैसे, भूख का मरना, प्यास का मरना, चुल्ल का मरना, पित्त का मरना इत्यादि । उ०—मुंह मोरे मोरे ना मरति रिमि मरमती-सशा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का वृक्ष । केशवदास मारहु धो कहे कमल सनाल मो। केशव (शब्द॰) । विशेष—इस वृक्ष की लकडी कडी और बहुत टिकाऊ होती है तथा खेती के औजार और घर के संगहे आदि बनाने के काम ८ डाह करना । जलना । ६ झखना । झनखना । पछताना। रोना। १० हारना । वशीभूत होना। पराजित होना। पाती है। यह पेड छोटा होता है और भारतवर्ष के प्राय सभी भागो मे मिलता है । यह वीजो से उत्पन्न होता है। उ०-तू मन नाथ मार के स्वाँसा । जो पं मरहि आप कर ८-४