पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४१०

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रीय ४१६६ राल' उ०-पीपल रूना फूल बिन फल विन रूनी राय । एकाएकी उपाधि जो प्राय रईसो, जमीदारो और राजकर्मचारियो आदि मानुपा टप्पा दोया प्राय । -कबीर (शब्द॰) । को दी जाती थी। राय-सज्ञा स्त्री॰ [फा० ] समति । अनुमति । मत । सलाह । रायरासि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० राजराशि ] राजा का कोष । शाही क्रि० प्र०-देना ।—लेना ।-ठहराना। खजाना। उ० -भई मुदित सब ग्राम वधूटी। रंकन्ह रायरासि जनु लूटी।–तुलमी (शब्द॰) । मुहा०—राय कायम करना = किसी विषय मे मत निश्चित करना । समति स्थिर करना । निर्णय करना। रायल-वि० [अ०] १ राजकीय । शाही । २ छापने को कलो तथा रोयकरौंदा-सझा पु० [हिं० राय (= वडा) + करौदा ] बडा करीदा कागज की एक नाप जो २० इच चौडी और २६ इच लवी जिसके फल छोटे वेर के बराबर, सफेद और गुलाबी रग मिले होती है। बहुत सु दर होते हैं। रायसा-सज्ञा पुं० [ स० रहस्य या राजसूय १] १. वह काव्य रोयकवाल - सशा पुं० [ देश०] वैश्यो की एक जाति । जिसमे किसी राजा का जोवनचरित्र वरिणत हो। रासो। रायज वि० [अ० ] जिसका रवाज हो। जो व्यवहार मे आ रहा जैसे—पृथ्वीराज रायसा । २ युद्ध । लडाई । सग्राम । उ०- हो । प्रचलित | चलनसार । भयो रायसो दुहुनि को, जेहिं बिघि सो निरधारि । हम्मीर०, पृ० २। रायजादा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज, प्रा० राय + फा० जादह, ] १ राय साहब- पञ्चा पुं० [हिं० राय+फा० साहब ] एक प्रकार को राय का पुत्र । २ एक जाति । पदवी जो पहल भारत को अंगरेजो सरकार का अोर से रईसो रायजादी-सज्ञा सी० [० राज, प्रा० राम, राप + फा० जादी ] और राजकर्मचारियो आदि को दी जाती थी। राजकुमारी। राजपुत्री । उ० --रायजादी घर अगणइ छुटे पटे छछाल ।-ढोला०, दू० ५४० । रार'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रारि, प्रा० रोडि (= लडाई )] झगडा । टटा । हुज्जत । तकरार | उ०-खजन जुग माना करत लराई की रायण-संज्ञा पुं॰ [स०] १ पीडा। दर्द । २ आवाज करना। ध्वनि वुझावत रार ।-सुर ( शब्द०)। होना (को॰] । कि० प्र-करना ।-ठानना ।-मचाना । यिता-सज्ञा पुं॰ [ स० राजिकाक्त ] दही या मठ मे उबाला हुआ साग, कुम्हडा, लौना या वुदिया आ दे जिसमे नमक, मिर्च, रार- उच्चा स्रो॰ [ स० राल ] दे० 'राल' । जीरा, राई प्रादि ममाले पड़े रहते हैं। उ०—पानीरा रायता रार@---वज्ञा स्त्री॰ [ स० रराट (-5 )] नेत्र । आँख । उ.- पकौरी । डभौरी मुगछो सुठि गीरी । -~-मूर (शब्द०)। ( क ) यां मुख भूठी पाखनै पूगौ साह दवार । अरज हुवता असपतो कीचो रत्ती रार ।-रा० रू०, पृ० १०२। (ख) राय बहादुर-सज्ञा पुं० [हिं० राय+ फ़ा० = वहादुर Jएक पकार नवहत्थो मत्थो बडो रोस भटक्कै रार ।-बांकी० ग्र०, की आधि जो पहले भारत को अंगरेजी सरकार को प्रोर से भा० १, पृ० ११। रईसों, जमीदारो तया सरकारी कर्मचारियो आदि को दी जाती थी। रारि-सज्ञा ली० [हिं० रा ] लडाई। झगडा। रार। उ०- राम रावनहि परसपर होति रारि रन घोर । - तुलसी ग्र०, रोयवेल-सज्ञा स्त्री० [हिं० राय + बेल ] एक प्रकार को लता जिसमे पृ० ८६। वहुत ही सुदर और सुगधित दोहरे फूल लगते हैं। रायवेलि'-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'रायवेल' । उ०-रायवेलि राल'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [-०] १ एक प्रकार का बहुत बडा सदावहार पेड महकति सखो अति मुगध रस मेलि । क्यो न रमत तू श्याम जो दक्षिण भारत के जगलो मे होता है। सो कठ भुजा दोउ मेलि ।-भारतेंदु ग्र०, भा० २, पृ० ७८६ । विशेप-इसकी लकडी किसी काम की नही होती, पर इसका रायभाटी-सज्ञा स्त्री० [सं०] नदी की धारा । नदी का प्रवाह (को०] । निर्यास बहुत काम का होता है, जो 'राल' के नाम से बाजारा रायभोग-सबा पुं० [स० राजभोग] १ एक प्रकार का धान । मे मिलता है। यह निर्यास दो प्रकार का होता है-सफेद राजभोग । उ०-रायभोग श्री काजर रानी। झिनवा रूद और काला । जव वृक्ष प्राय दो वर्ष का होता है, तब उसके श्री दाउदखानी ।—जायसी (शब्द०)। तने मे जगह जगह काट देते हैं, जहाँ से चैत से अगहन तक रायमुनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० राय + मुनिया ] लाल नामक पक्षो की निर्यास निकला करता है। यह निर्याम प्राय दस वर्ष तक मादा । सदिया । रायमुनिया। उ०-जनु रायमुनी तमाल पर निकलता रहता है । इसका व्यवहार प्राय वार्निश श्रादि के वैठी विपुल सुख आपने ।-~-मानस, ६।१०२ । काम मे होता है, और कुछ औपधों मे भी इसका प्रयोग होता है। रायरगाल-सञ्ज्ञा पु० [सं० रायरङ्गाल । एक प्रकार का नृत्य जिसे केशव ने रापरगाल लिखा है। दे० 'रापरगाल' । २ इस वृक्ष का निर्यास । धूना । धूप । रायरायान-सञ्चा पु० [हिं० राय+राय+ फा० श्रान (प्रत्य॰)] १ यौं-रालकार्य-नाल वृक्ष । राजानी के राजा । राजाधिराज । २. मुगला के समय का एक रोल पञ्चा पु० [देश॰] एक प्रकार का कबल ।