पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४१४

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o 0 o केट ताग O o राष्ट्री ४१७३ रासमंडल -सज्ञा पुं॰ [ स० राष्ट्रीन ] १. राज्य का अधिकारी, राजा । २ रास@-वि० [ फा० रास्त (= दाहिना)] अनुकूल । ठीक । प्रधान शानका मुशाफिक । उ० कांचे वारह परा जो पांसा । पाके पैन परी राष्ट्री-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] रानी । राजपत्नी। तनु रासा । —जायसी (शब्द॰) । राष्ट्रीय'- सज्ञा पुं० [सं० प्राचीन नाटको की भापा मे राजा रासक-सक्षा पुं० [सं०] नाटक का एक भेद । का साला। विशेष-यह केवल एक अक का होता है और इसमे केवल पांच राष्ट्रीय- वि० राष्ट्र सवधी । राष्ट्र का । विशेपत अपने राष्ट्र या देश से नट या अभिनय करनवाले होते है। यह हास्यरस का होता सबध रखनेवाला । जैसे,—(क) यह अ व राष्ट्रीय भावो से पूर्ण है, और इसमे सूत्रधार नहीं होता। इसमे नायिका चतुर तथा है । (ख) पापको अपना राष्ट्रीय वेश धारण करना चाहिए । नायक मूर्ख होता है। राष्ट्रीयकरण -- सज्ञा पु० [ सं० राष्ट्रीय+करण ] १ भूमि, सपत्ति, रासचक्र - सञ्चा पु० [स० राशिचक्र] दे० 'राशिचक्र' । व्यवसाय, रेलवे प्रादि को राष्ट्रीय व्यवस्था के अतर्गत कर लेना । रासताल -सज्ञा पुं० [स०] १३ मात्रानो का एक ताल जिसमे ८ २ राष्ट्रीय वनाना। आघात 'पौर ५ खाली होते है । इसके मृदग के वोल यह है- राष्ट्रीयता - सक्षा खी॰ [ स० राष्ट्रीय+ता] १ अपने राष्ट्र के प्रति + ३ ४ प्रेम । देशभक्ति। २ किसी राष्ट्र का नागरिक होने का भाव । कता कता चा केटे खन् गदि धेने नागे ७ + रास'- सज्ञा पुं॰ [ मं०] १. कोलाहल । शोरगुल । हल्ला । २. गोपो देत तेरे केटे कडान्। था। की प्राचीन काल की एक क्रीडा जिसमे वे सब घेरा बांधकर नाचते थे। रासधारी सञ्ज्ञा पु० [सं० रासवारिन् ] वह व्यक्ति या समाज जो श्रीकृष्ण की रासक्रीडा अथवा अन्य लीलायो का अभिनय विशेप-कहते हैं, इस क्रीडा का प्रारम भगवान् श्रीकृष्ण ने करता है। एक वार कार्तिकी पूर्णिमा को आधी रात के समय किया था। तब से गोप लोग यह क्रीडा करने लगे थे। पीछे से इस क्रीडा विशेष-ये लोग एक प्रकार के व्यवसायी होते है जो घूम घूमकर के साथ कई प्रकार के पूजन आदि मिल गए और यह मोक्षप्रद इस प्रकार के अभिनय करते हैं। इनके नाटक मे गीत, वाद्य, मानी जाने लगी। इस अर्थ मे यह शब्द प्राय स्त्रीलिंग वोला नृत्य और अभिनय प्रादि सभी होते हैं । जाता है। रासन-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० रासनी] १ स्वादिष्ट । जायकेदार । यौ०-रासमडल। २ रसना सवधी । जीभ सवधी (को०) । ३ एक प्रकार का नाटक जिसमे श्रीकृष्ण की इस क्रीडा तथा दूसरी रासन:-सज्ञा पुं० १ स्वाद लेना । चखना । २, ध्वनि करना । शब्द क्रीडायो या लीलाग्रो का अभिनय होता है । करना। यौ०-रासधारी। रासनशीन-वि० [सं० राशि+ फा० नशीन] गोद बैठाया हुआ। ४ एक प्रकार का चलता गाना। ५ शृखला। जजीर। ६ दत्तक । मुतवन्ना। विलास | ७ लास्य नामक नृत्य | ८. नाचनेवालो का समाज रासना-सचा पु० [मं०] रास्ना नाम की लता जिसका व्यवहार रास-सज्ञा स्त्री० [अ०] १ घोडे को लगाम । बागडोर । प्रोपधि के रूप में होता है । विशेष दे० 'रास्ना' । मुहा०-रास कडी फरना-घोडे की लगाम अपनी ओर खींचे रासनृत्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] गति के अनुसार नृत्य का एक भेद । रहना । रास में लाना = अविकार मे लाना। वशीभूत करना। रासपूर्णिमा · सशा स्रो॰ [स०] मागशीर्ष की पूर्णिमा जिस दिन श्री- २. सिर (को०) । ३ पशुप्रो के लिये मख्यावाचक शब्द । कृष्ण ने रासक्रीडा प्रारभ की थी। रास-सक्षा स्त्री० [स० राशि] १. ढेर। समूह । २ ज्योतिष की रासभ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री॰ रासभी] १ गर्दभ । गधा । गदहा । राशि । विशेप दे० 'राशि' । ३ एक छद का नाम जिसके प्रत्येक खर । उ०—(क) विपति मोर को प्रभुहि सुनावा । पुरोडास चरण मे +६+६ के विराम मे २२ मात्राएं और प्रत में चह रासभ खावा । -तुलसी (शन्द०)। (ख) गंवर भेटि सगण होता है। प्रस्तार की रीति से यह छद नया रचा गया चढावत रासभ प्रभुता मे ट करत हिनती।- सूर (शब्द॰) । है। जैसे,-- ईस भजी जगदीश भजी यह वान धरौ। सीख २ अश्वतर । खच्चर। एक दैत्य जिसे व्रज के ताल वन में हमारी प्रति हितकारी कान धरौ।-छद०, पृ० ५१ । ४ बलदेव जी ने मारा था। यह गर्दभ के रूप मे हो रहा करता था। जोड । ५ चौपायो का मुड। ६ एक प्रकार का धान जो अगहन मे तैयार होता है। इसका चावल मैकडो वर्षों तक रखा रासभूमि सझा स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ रासक्रीडा होती हो। जा सकता है । ७. गोद । दत्तक । रास करने का स्थान । मुहा०-रास बैठाना या लेना= गोद बैठाना । दत्तक लेना। रासमडल--सहा पु० [स० रासमण्डल] १. श्रीकृष्ण के गसक्रीडा ८.सूद | व्याज। करने का स्थान । २. रामक्रीडा करनेवालो का समूह या मंडली ।