पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२२

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शब्द। रव। रिसाला ४१८१ रीमि रिसाल या राजकर ले जानेवालो का प्रधान संचालक। दरसन कह पाए। भोजन गीचा भात पकाए ।—जायसी चढनदार। (शब्द॰) । (ख) रसोई के घर मे ब्रह्मानद की भतीजी रोहिणी रीध रही थी। अयोध्या (शब्द॰) । रिसोला-सञ्ज्ञा पुं० [फा० रिसालह, ] १ घोडसवारो की सेना । अश्वारोही सेना । २ किमी विपय पर छोटी पुस्तक (को०) । री-प्रव्य० [स० रे] सखियो के लिये सबोधन । अरी । एरी । उ०- ३ नियत ममय पर मासिक, पाक्षिक, त्रैमासिक आदि रूपो में नेकु सुमुखि चित लाइ चितौ री । नख मिख सुदरता अवलोकन प्रक शित होनेवाला पत्र (को॰) । कहो न परत सुख होत जितो री। सावर रूप सुवा भरिवे कह नयन कमल कल कलम रिती री।-नुलसी (शब्द०)। रिसि-सज्ञा स्त्री० [हिं० रिस] दे० 'रिस' । रिसियाना, रिसियाना-क्रि० अ० [हिं० रिस+पाना (प्रत्य॰)] री-सज्ञा स्त्री० [स०] १ गति । २. वध । हत्या । ३ क्रुद्ध होना। कुपित होना । उ०—(क) कबहूँ रिसियाई कहें ४ क्षरण । चूना। हठि के पुनि लेत साई जेहि लागि अरे -तुलसी (शब्द०)। रीगन-मचा पु० [देश॰] एक प्रकार का धान जो भादो या कुमार में (ख) शाप दीन सुनि अति रिसियाने । कीन्हे कपट अकाज तैयार होता है। अजाने ।-विश्राम (शब्द०)। रीगना-क्रि० अ० [देश॰] चिढना। रिसियाना, रिसियाना'-क्रि० स० किसी पर क्रुद्ध होना । विगडना । रीछ-सज्ञा पु० [स० ऋच्छ] [स्त्री० रीनी] भालू । रिसिक-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रिपीक तलवार । उ०-रिमिक कुसेह यौ०--रीपतिः - जामवत । उ०-कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।- कृपान असि विशसनपा करवाल ।-नददास (शब्द०)। मानस,-४६३० । रीछराज । रिसौहाँ-वि० [हिं० रिस+ौहाँ (प्रत्य॰)] १ क्रुद्ध सा । कुछ कोप रीछिराज - सज्ञा पुं० [सं० ऋक्षराज] जामवत । उ०--रीछराज युक्त । थोडा नाराज। उ०—(क) सी करति अोठनि बसी कपिराज नील नल बोलि वालि नदन लए।-तुलसी ग्र०, करति आंग्विन रिसोंडी सी हंसी करति, भौंहनि हंसी करति ।- पृ० ३८६। देव (शब्द॰) । (ख) करी रिसीही जाहिगी सहज हंसौंही रीजेंट-सज्ञा पुं० [अ०] वह जो किसी राजा की नावालिगी, अनु. भौह । -विहारी (शब्द०)। २. क्रोध से भरा। कोपसूचक । पस्थिति या अयोग्यता की अवस्था में राज्य का प्रबध या शामन उ०-माखे लखन कुटिल भई भीहैं। रदपुट फरकत नयन करता हो । राज्यप्रतिनिधि । प्रस्थायी शासक । वली । जैसे,- रिसोहैं। -तुलसी (शब्द०)। स्वर्गीय महाराज सरदारसिंह जी फी नावालिगी मे ईहर के रिस्क-सज्ञा स्त्री॰ [अ०] झोका । जवावदेही। भार । बोफ । जैसे महाराज सर प्रतापसिंह कई वर्ष तक जोधपुर के रीजेंट रहे । रेलवे रिस्क । जैसे,-यदि तुम गांठ न उठानोगे तो वे तुम्हारी रीजेंसी-सच्चा स्त्री॰ [अं०] रोजेंट का शासन या अधिकार । जैसे,- रिस्क पर बेच दी जायंगी। जोधपुर मे कई वर्ष तक रीजेंसी रही। क्रि० प्र०-उठाना । लेना। रीज्या-सहा त्री० [सं०] १ घृणा । नफरत । २ भला बुरा कहना। रिस्टवाच-सज्ञा स्त्री० [अ०] कलाई पर वाँधने की घडी। लानत मलामत । कुत्सा। निंदा । भर्त्सना । रिहन-सञ्ज्ञा पुं० [अ० रन] दे० 'रेन' । रोझ - सज्ञा स्त्री॰ [ स० रञ्जन ] १ किमी के ऊपर रीझने की क्रिया या भाव। किसी की किमी बात पर प्रसन्नता । २ किमी के रिहननामा-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] वह लेख जिसमे किसी पदार्थ के रेहन रखे जाने और उसके सबध की शर्तों का उल्लेख हो । रूप, गुण आदि पर मो हत होना । मुग्ध होने का भाव । रिहर्सल-सचा पु० [अ०] १ नाटक के अभिनय का अभ्यास । २ रोझना-क्रि० अ० [ म० रजन ] १ किमो की किसी बात पर वह अभ्याग जो किसी कार्य को ठीक समय पर करने के पहले प्रसन्न हाना। उ०-केतिको कोऊ के रघुनाथ मैं माँवरे के रंग रीझि रजोगी। देह तजागी सदेह तजोगी पै देह तजोगी न रिहल-सक्षा स्त्री० [अ०] काठ की बनी हुई कैचीनुमा चौकी जिसपर नेह तजोगी।-रघुनाय (शब्द०)। २ मोहित होना। मुग्ध होना। रखकर लोग पुस्तक पढते है और जिसका प्राकार इस प्रकार उ०—(क) रीझहि राज कुंवरि छवि देखी। इनहिं वर हरि जानि का ४ होता है। विशेषी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) कहत नटत रीझन खिझन हिलत मिलत लजियात । भरे मौन मे करत है नैनन ही सो रिहा- वि० [फा०] १ (बधन प्रादि से) मुक्त। छूटा हुआ। २ बात ।-विहारी (शब्द०)। (किसी वाघा या साट से) छुटा हुआ। सयो० क्रि०-जाना। उ०-रूप निकाई मीत की हाँ तक लो फि० प्र०—करना ।-होता । अधिकात । जा तन हेरौ निमिप के रीमहु रोकी जात । रिहाई-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] छुटकारा । मुक्ति । छुट्टी। -रसनिधि (शब्द०)। क्रि० प्र०-देना।-पाना ।-मिलना। रीझिए-सज्ञा स्त्री० [हिं० रीझना ] प्रमग्नता आनद । उ०- रीधना-क्रि० स० [सं० रधन] तैयार करने के लिये खाद्य पदार्थ को तेरी खोझिवे की रुख रीझि मनमोहन को याते वहै माज तलना, उवालना या पकाना। रधिना । उ०-(क) जगन्नाथ सजि सजि नित आवते ।-भिन्वारी० ग्र०, पृ० १३५ । किया जाय।