पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२१

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fest ४१८० रिसालदार । -ज्ञा स्वजन। 1 को भो पालोचना रहती हो। जैसे—माडर्न रिव्यू, सैटरडे रिस-सज्ञा स्त्री॰ [ स० रुप ] क्राप | गुस्सा । काप। नाराजगी। रिव्यू । ४ किसी निर्णय या फैसले का पुनर्विचार । नजरसानी । उ०—(क) सुनि सु दान राज रिम मानी।—जायसी (शब्द॰) । जमे, -नोचे को अदालत का फसला रिव्यू के लिये हाईकोर्ट (स) महाप्रभु कृपाकरन रघुनदन रिम न गहँ पल आधु ।- भेजा गया है। सूर (शब्द॰) । (ग) जात पुकारत बाल वानी । देसि दुशामन रिश-पञ्ज्ञा पुं॰ [ न० ] शत्रु । परि [को०] | अति रिस मानी ।मबल (शब्द०)। रिशा- पज्ञा जी० [ अ.] उतरा भाद्रपद नक्षन किो०] । मुहा०-रिस माग्ना - क्रोध को रोकना । उ० -(क) धर्मज रिश्ता-मज्ञा पुं० [फा० रिश्तह ] १ नाता । सबध । २ होरा । बदन निहारि, विग्ल सपन रिस मारिसर। दीन गदा महि तागा (को०) । ३ नहारू वा नारू रोग (को०) । डारि, भीम निकल पारय प्रतिहि । -मबन (शब्द०)। (ख) राम राम पुकार हनुमान अगद पह्यो। तब रावण रिस मारि रिश्तेदार पु० [फ० रिश्तह् दार ] ममयी। नातेदार । रामचद्र मन मे परे । --हृयराम (शब्द०)। रिश्तेदारी-सञ्चा मी० [फा० रिश्तह दारी ] रिश्ता हाने का भाव । रिसना-'क्र० स० [हिं० रसना ] बहुत ही छोटे छोटे छिद्रों द्वारा छन छनकर बाहर निकल जाना । रसना । उ०-वहा की मिट्टी मवध । नाता। ऐमी दरदरी थी कि जो दीया बनाते तो जलाने के समय रिश्तेमद -मज्ञा पु० [फा० रिश्तह मद ] मवधी । नातेदार । सारी चरवी पिघलकर उसके भीतर स रिम जाती।- रिश्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] मृग। शिवप्रपाद (शन्द रिश्वत-ज्ञा सी० [अ० ] वह धन जो किमी को उसके कर्तव्य से रिसवाना-क्रि० स० [हिं० रिमाना ] दे० 'रिमाना' । उ०- विमुख करके अपना लान करने के लिये अनुचित रूप से दिया ताही समय नंद घर पाए । मुनि जसुमति को वह रिमवाए।- जाय । घूप । लाच । उत्कोच । जैसे,—उसने दो सौ रुपए विश्राम (शब्द०)। रिश्वत देकर उस मुकदमे से अपनी जान बचाई । रिसहो। - वि० [हिं० रिस+हा (प्रत्य॰)] १ वात पात पर क्रोध कि० प्र०-खाना।—देना । जैसे,—रुपया दो रुपया रिश्वत करनेवाला । गुस्सेवर । क्रोयो । उ०-सूर्य न काहू वतायो कछू देकर अपना काम निकाल लो।-पाना।मिलना ।—लेना। मन याही ते मेरो भयो रिमहा है ।- मन्नालाल (शब्द०)। रिश्वतखोर-ज्ञा पु० [अ० रिश्वत + फा० खोर । वह जो रिश्वत रिसहाया-वि० [हिं० रिसाया ] [वि॰ स्त्री० रिसहाई ] क्रुद्ध । लेता हो । घूम खानेवाला। कुपित । नाराज । उ०—(क) लाख लोनी तब चतुर नागरी ये रिश्वतखोरो-सञ्चा स्त्री॰ [अ० रिश्वन + फा० सोरो ] रिपवत खाने मो पर सब है रिसहाई । -सूर (शब्द॰) । (ख) जननी अतिहि का काम । घूम लेने का काम । भई रिसहाई । बार बार कह कुंवरि राधिका री मोतीसरि कहाँ रिपभ-सज्ञा पुं॰ [ स० ऋपम ] दे० 'ऋपभ' । गमाई। -सूर (शब्द०)। रिषि-सञ्चा पु० [सं० ] दे॰ 'ऋपि'। रिसान-सज्ञा पुं॰ [देश० ] ताने के सूतो को फैलाकर उनको साफ रिपीक'-पज्ञा पु० [सं० ] शिव । करने का काम । (जुलाहे )। रिपीक'-वि० हानि पहुंचानेवाला । रिसाना-क्रि० प्र० [हिं० रिस+याना (प्रत्य०) ] क्रुद्ध होना । रिष्ट-पज्ञा पुं॰ [ स०] १ कल्याण । मगन । सौभाग्य । २ अभाग्य । खफा होना । गुस्सा होना। उ० - (क) और की अोर तक अमगल । दुर्भाग्य । ३ अमाव । न होना । ४ नाश । ५ पाप । जब प्यो तब त्यौरी चढ़ाइ चढाइ रिमाति है । (ख) सखो मदन ६ खड्ग । ७ रीठा का वृक्ष (को०) । लाई जहं रानी । मातु ताहि ल ख बहुत रिसानो ।-विश्राम रिष्टं-वि० नष्ट । बरवाद । ( शब्द०)। रिष्ट-व० [ स० हृष्ट ] १ प्रसन्न । २ मोटा ताजा । सयो क्रि०-जाना।-उठना । यौ०-रिष्टपुष्ट = हृष्टपुष्ट । उ०—रिष्ट पुष्ट कोउ प्रति तन रिसाना–क्रि० स० किसी पर क्रुद्ध होना। विगडना । उ०-इन को खीना ।-पानस, १६३ । वात न जानति मैया मोका बारबार रिसाति। -सूर (शब्द॰) । रिटक-सज्ञा पु० [ ] रक्तशिग्रु । रीठा [को०] । रिसानि, रिसानी@-तज्ञा ली० [हिं० रिस + प्रानि (प्रत्य॰)] क्रोध । गुस्सा । नाराजगो। उ०-घोर धार भृगुनाथ रिसानी।- रिष्टि-सच्चा स्त्री० [सं०] १ खड्ग । २ अमगल । मानस, ११४१। रिष्य-सचा पुं० [सं० ] रिश्य । मृग (को०) । रिसाला-सज्ञा पुं० [अ० इरमाल ] राज्यकर जो मुफस्सल से रिष्यमूक-सा पुं० [सं० ऋष्यमूक ] दक्षिण का एक पर्वत जहाँ राजधानी को भेजा जाता है। उ०-मानो हय हाथी उमराव राम जी से सुग्रीव की मित्रता हुई थी। उ०-आगे चले बहुरि करि साथी अवरग डरि सिवा जीपं भेजत रिसाल है।- रघुराया । रिष्यमूक पर्वत नियराया।—मानस, ४१ । भूषण ( शब्द०)। रिष्व-वि० [सं० ] घातक । वधक । हवा (को॰] । रिसालदार-सज्ञा पुं० [फा०] घुडसवार सेना का अफसर । २. HO