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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२६

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रुक्मी ४१०५ रुखानी रुक्मी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मैं श्रीकृष्ण को मार न रुखदार-सञ्ज्ञा पुं० [ फा० रुख+दार (प्रत्य॰) 1 (बाजार का भाव) डालूंगा, तब तक घर न लौटुंगा। पर युद्ध मे यह श्री कृष्ण से जो घट रहा हो। परास्त हो गया था, अत लौटकर कुडिननगर नही गया और रुखसत-सज्ञा स्त्री० [अ० रुखसत ] १ आज्ञा । परवानगी । विदर्भ में ही भोजकर नामक एक दूसरा नगर वसाकर रहने (क्व०) । २. रवानगो । कूच । विदाई । प्रस्थान । ३. काम से लगा था। उ०-चल्यो रुक्मिनी वधु रुक्म रथ चढि भट छुट्टी । अवकाश । जैसे,—बडी मुश्किल से चार दिन को रुखसत रुक्मी। -गिरधर शब्द०)। मिली है । ४ मुहलत । अवकाश । फुर्सत (को०)। रुक्मी-वि० १ सोने के आभूपणा मे युक्त। २. जिमपर सोने का क्रि० प्र०-देना ।-पाना ।-मिलना । —होना । पानी चढा हुआ हो (को० । रुखसत-वि० जो कही से चल पडा हो। जिसने प्रस्थान किया हो। रुक्ष-वि० [सं० रुक्ष, रूक्ष] १ जिसमे चिकनाहट न हो। जो स्निग्ध रुखसताना-मन्ना पुं० [फा० रुखसतानह ] वह इनाम जो किसी को न हो । रूखा । २ जिसका तल चिकना न हो। ऊबड़ खाबड । रुखसत होने के समय राजा या रईस आदि के यहां से सत्का- खुदबुदा । ३ विना रस का । नीरस । ४ सूखा । शुष्क । रार्थ दिया जाया है। विदा होने के समय दिया जानेवाला रुक्ष-सचा पुं० [सं० वृक्ष] १ वृक्ष । पेड । २. नरकट नाम की घास । धन | बिदाई। रुक्षता सज्ञा स्त्री॰ [स० रूक्षता] रुखाई । रूखापन । क्रि० प्र०-देना ।-पाना ।-मिलना । रुख-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० रुख १ कपोल । गाल । २ मुख । मुह । रुखसती' - वि० [अ० रुखसत + ई (प्रत्य०) ] जिसे छुट्टी मिली हो । चेहरा । ३ चेहरे का भाव । प्राकृति । चेष्टा । उ०—(क) रुख रुखसती.~-सज्ञा स्त्री० [अ० रुखसती ] १ विदाई, विशेषत दुलहिन रूखे भौहे सतर नहिं सोहे ठहरात । मान हितू हारे बात तें की विदाई। विदाई के समय दिया जानेवाला धन । विदाई । धूमजात ली जात ।-स० सप्तक पृ० २६७ । (ख) पुनि रुखसदी। -~सज्ञा स्त्री० [हिं० रुखसती ] दे॰ 'रुखसतो'। उ० - - मुनिवर शकर (ख)प चीन्हो । चरण गुहा ते बाहर कीन्हो । - मुखिया को काफा चिरौरी करना पडो थो तब कही काता के स्वामी रामकृष्ण (शब्द०)। (ग) सकर रुख अवलोकि भवानी । ससुराल वाले रुखसदो के लिये राजी हुए थे।-नई०, प्रभु मोहिं तजेउ हृदय अकुलानी |--तुलसी (शब्द०)। पृ० १३६ । मुहा०-रुख मिलाना = मुंह सामने करना। रुखसार-सचा पुं० [फा० रुखसार] कपोल | गाल । ४ मन को इच्छा जो मुख का प्राकृति से प्रकट हो। चेष्टा से प्रकट रुखाई --सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रूखा + आई (प्रत्य॰)] १ रूखे होने की इच्छा या मरजी। उ० -राम रुख निरपि हरपी हिये हनुमान क्रिया या भाव । रूखापन । रुखावट । २ शुष्कता । खुश्की । मानो खेलवार खोली सीस ताज वाज की।-तुलमी (शब्द॰) । ३ व्यवहार की कठोरता । शील का त्याग । वेमुरोवती । मुहा-रुख देना = प्रवृत होना । ध्यान देना। रुख फेरना या क्रि० प्र०—करना ।-दिखलाना। बदलना = (१) ध्यान किसी दूसरी ओर कर लेना। प्रवृत्त न रुखान-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रुखानी] दे० 'रुखानी' । उ०-सुजन होना । (२) अवकृपा करना । नाराज हाना । सुतरु बन ऊख सम खल टकिका रुखान । - तुलसी ग्र०, ५ कृपादृष्टि । मेहरवानो का नजर । ६ सामने या आगे का भाग। जैम,—(क) वह मकान दाक्खन रुख का है। (ख) पृ० १३१ । कुरसी का रुख इवर कर दा। ७ शतरज का एक मोहरा जा रुखानल थे-सज्ञा पु० [ स० रोपानल ] क्रोधाग्नि । (डिं०) । ठाक सामन, पीछ, दाहिने या बार चलता है, तिरछा नही रु खानाल-क्रि० अ० [हिं० रूखा+पाना (प्रत्य॰)] १ रूखा चलता । इसे रथ, किश्ती और हाथी भा कहते है। होना । चिकना न रह जाना । २ नीरस होना। सूखना । ३. रुख-क्रि० वि० १ तरफ। ओर । पार्श्व । उ०-मनहुं मघा जल किमी से रुक्ष या रुष्ट होना। उमगि उदधि रुख चले नदी नद नार । -तुलनी (शब्द०) । २. रुखानी-नचा स्त्री० [सं० रोक (= छेद) + खनित्र(= खोदने की सामने । उ०—निज निज रुख रामहिं सब देखा । काउ न जान चोज) ] १ बढइयो का लोहे का एक औजार जो प्राय एक कछु मरम विशेपा ।-तुलसा (शब्द॰) । वालिश्त लवा होता है। रुख-सज्ञा पुं० [सं० रुत्] १ दे० 'ख' । २. एक प्रकार की घास विशेप-इसका अगला सिरा धारदार होता है, और पोधे की जिसे वरक तृण कहते हैं। पार लकडी का दस्ता होता है जिसपर हथौडी या बसूले रुख-वि० [हिं० रूखा] द० 'रूखा' । आदि से चोट लगाकर लकडा छाला या काटी जाती है, अथवा रुखचढ़वा-सझा पुं० हिं० रूख+ पदना१. बदर । २ पेड पर उसमे वडा छेद किया जाता है। रहनेवाला, भूत । २. सगतराशो को वह टांकी जिसका व्यवहार प्राय. मोटे कामो मे रुखड़ा-वि० [हिं० रूखा+ठा (प्रत्य॰)] [ वि० सो रुखड़ी ] होता है। ३ लाहे का प्राय एक वालिश लवा एक प्रौजार दे० खुरदुरा । 'हवा' । उ०-~-रेशम स रुखड़ा चीज न कोई जिसमे काठ का दस्ता लगा होता है और जिसकी सहायता से सरती है। दिल्ली, पृ० १६ । तेली मपनी पानी चलाते हैं ।