पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२७

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रुखावट ४१८६ संचिकारक रुखावट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रूखा+ प्रावट (प्रत्य॰)] दे० 'साई'। रुखाहट-सम्मा स्री० [हिं० रूखा + अाहट ( प्रत्य०) ] स्वापन । रुखाई। रुखिता-सशा स्त्री० [सं० एपिता] वह नायिका जो रोप या मोर कर रही हो। मानवती नायिका । उ०--फलतरिता काइ विप्रल-धा कोइ रुखिता।--विधाम (शब्द॰) । रुखिया-गक्षा स्त्री० [हिं० रूसा + इया (प्रत्य०) ] पेडा ने छाई हुई भूमि । रुखुरी। -सक्षा स्त्री० [हिं० रुस्खा ] भूना हुप्रा चना प्रादि । नचना । रुखुरी-सशा खी० [हिं० रुख ] बहुत छोटा पौधा । रुखौहा-वि० [हिं० रखा+श्रीहा (प्रत्य॰)] [वि० ग्नी० सपाही ] रुखाई लिए हुए। रूसा सा। उ०-रख रूपे मिग रोप मुस्य कहति रखोह बैन । रूखे कैसे होत ये नेह चीन वैन । - विहारी (शब्द०)। रुगटना-क्रि० अ० [हिं० रोना ] येइमानी करना । हार के कारण खोझकर मुकर जाना । उ०—ीरी ही मिनाय क देत रुग.ट करि दाव । गहि ठोढी प्यारी है झूठे भूठ भाव । -ग्रज० ग्र०, पृ०६६ । रुगर्दया-सशा जी० [ रोना+देया (= देया दया कर रोते हुए वेईमानी) ? ] वेईमानी । अन्याय । रोगदैया । रोगदई। रुगना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रोग ] पशुओ का टपका नामक रोग । रुगिया ---वि० [हिं० रोगी ] दे० 'रोगी' । रगौना -सशा पुं० [दश०] धनुग्रा । पाल । रुग् --सज्ञा पुं॰ [सं० रुज ] दे० रुज'। यो०--रुग्दाह (मन्निपात ज्वर)। रग्भय = रोग का हर । रुग्भेपज = रोग की चिकित्सा । रुग्ण-वि० [सं०] १ घायल । चोट साया हुआ। २ दे० 'रग्न' [को०] । रुग्दाहसन्निपात ज्वर-सझा पु० [सं० ] एक प्रकार का ज्वर | विशेष-यह ज्वर वीस दिनो तक रहता है। इसमे रोगी व्याकुल होता और बकता है, उसके शरीर मे जलन होतो है, पेट मे दर्द होता है, और उसे विशेप प्यास लगती है। यह बहुत कष्टसाध्य माना जाता है रुग्न-वि० [सं० रुग्ण ] १ जिसे कोई रोग हुआ हो। रोगग्रस्त । रोगी । बीमार । २ (रोगादि से) झुका हुआ। नमिन । टेढ़ा। ३ टूटा हुआ | ४ विगहा हुआ। ५ दे० 'रुग्ण' । रुग्नता-मशा स्त्री॰ [सं० बरुग्णता] रोगी होन का भाव । बीमारी। रुग्मी-सज्ञा पुं० [सं० ] जैन हरिवश के अनुसार जवू द्वीप के एक पर्वत का नाम । रुच -सज्ञा स्त्री० [हिं० रुचि ] दे० 'रुचि' । यौ०-रुचदान। रुचक-संशा पुं० [सं०] १. वास्तुविद्या के अनुसार ऐसा पर जिगके चारो और ये लिंद (चवनरा या परिग्रमा ) में ने पूर्व और पश्चिम का सर्वश्रा नष्ट हो गया हो और दक्षिण का ममूचा ज्यो का त्यो हो । इगमा उत्तर का द्वार प्रशुभ और शेप द्वार शुभ माने गए है। २ वह ग्यमा जो गात्र न हो, बल्कि चौकोर हो। ३ मजीसार । ४ पोटो पा गहना या गाज।५ माना। ६ गला नमक। ७ मागन्यम्य । ८ गना। ६ वायगि। १० नमक। " बीजारक। पिजीरा नीबू । १२ प्राचीन यार का गाने का निष्क तामा मिका । १३ पात । १४ कानुनर । १५ पुरागानुगार गुमर पर्वत मे पाग एक पर्वत का नाम । १६ जन हरिवग के अनुगार हरिवर्ण के पर्वत वा नाम । १७. दक्षिण दिगा। रुचक-वि० स्वादिष्ट । जायोदार । २ म्ननेपाना। पार (को०)। रुचदाना-वि० [म० रचि+दन] भला लगन याग्य। जो अन्या लग मोरवनयाला। रचना-मि० भ० [म० र + हि TI (अन्य ] गचि । गनुन होना। अच्छा गान पना। मनालगना। बिर लगना। पगद माना। मुद्रा०--रन न% रहुन रचि मे । यदी यह मन लगाकर । उ०--सबरी के बेर मुसमा के तटल चि रचि भोग लगाए । -भजन (शब्द०)। रुचा--सका पी० [सं०] १ दीप्ति । प्रकाश । २ भोग । ३, रच्या ख्वाहिश । ४ मैना, जुलपुर, तोत मादि पक्षिया का योजना । रुचि'-T पुं० [सं०] एक प्रजापति जो रोच्च मनु के पिता थे। रुचि'-तरा मौ० १. प्रवृत्ति । तत्रीयत । जने,-जिन काम मे मापको रुचि हो, वही कोजिए। २ अनुराग । प्रेम । चाह । ३ किरण । ४ छवि । शोभ । गुदरना । उ० -त्यो पाकर प्रानन म रचि कानन भी नमान लगी हैं।-पाकर (शब्द०)। ५ खाने की इच्छा । भूस। ६ स्वाद ! जायका । उ०-तव तव कहि नवरी के फनन को रुचि माधुरी न पाई। --तुलसी (शब्द०)। ७ गोरोचन । ८ कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का मालिंगन जिसमे नायिका नायफ के सामने उसके घुटन पर बैठकर उसे गले से लगाती है । ६ एक अप्सरा का नाम । उ०--देसी न जाति विसेखो वयू कियो हेम वरेसी रमा रुचि रभौ । - मन्नालाल (शब्द॰) । रुचि'-वि० शोभा के अनुकूल । फरता हुमा। योग्य । मुनासिन । उ०-झीपी सादी कचुकी कुच रुचि दोसी भाज। जनु विधि सीसी मेत में केसरि पासी राज ।-० सप्तक, पृ० २३५ । रुचिकर-वि० [सं०] रुचि उत्पन्न करनवाला । अच्या लगनेवाला। दिलपसद । जसे, इसके सेवन से तुम्हे भोजन रुचिकर लगेगा। रुचि:--सया पुं० केशव के एक पुत्र का नाम । रुचिकारक-वि० [सं०] १. रुचि उत्पन्न करनेवाला । रुचिकारक । २. अच्छे स्वादवाला। बढ़िया स्वादवाला। स्वादिष्ठ। ३. मच्छा लगनेवाला । मनोहर ।