रुझना ४१०८ Frid पनी' । O म० न्द्-राजा मी। । मोर झुकी या लगी हो। प्रवृत्त । उ०—(क) प्रेम नगर की मीफ जो टूटी, रति नामन यी।-पोदार अभि० प्र० रीत कछु बैनन कहत वन न । रुजू रहत चित चार सौ नहिन पृ०६४३ । के मन नैन ।-रसानाध (शब्द॰) । (ख) अमरया कूमत मदतिका माग [ मं० र फिर काइल सब जताई। अमल भयो ऋतुराज का रजू हो? रुदता-गजारी [707 ती] एक प्रकार जटा नुप जिसे सब प्राइ ।- स० सप्तक, पृ० २३० । २ जा ध्यान दिए हा। गजीवनी या महामारपी'। रुझना-क्रि० अ० [म. रत, प्रा० रउफ Jघाव घादि का रुदतो-पि० मा २ जाती । विT करती हुई। उ०- भरना या पूजना । उ०-मर्मवेया बात का नासूर किमी उमग्दी दिगिी न म कलेगम, यो पावर ताप तरह नही रझता ।-श्रीनिवामदाम (शन्द०) । उगक प्रिय पिरत विक्षा-मामत, पृ० २० । रुझना पुज-क्रि० अ० [हिं० ] 'अराकना' या 'उलझना। J१ रन । २ दिना । पीटा। ३ रुझनी-सा स्त्री० [श० ] एक प्रकार की घाटी चि.टया जिसकी बीमागे । ४ अनि । राजावान। पीठ काली, छाता सफेद और चाच लवी हाती है। र६-Ji K० [सं०] 10 पन्द्र'। 30-निका ग्रह पाय रुझान-मज्ञा सी० [अ० रज्हान ] आकपण। झुकाव । २ रदया। यनिय पर तान निर। -मा०, पृ० ३। पक्षपात । एकतरफा हान का भाव। स्दथ-सक्षा पु० [सं०] १ पुजा । बाटा । ३ मृगा (०) । रुट, रुड्-सशा स्त्री॰ [ H० रुम् । रोप (फो०] । रुदन- पुं० [सं० २ दन, रोदन] गन की पिया। अदा। रुठ-सज्ञा पु० [ स० रुट, प्रा० र ] प्रोध । यमर्प। गुम्गा। रोना। विलाप करना । उ०-(7) हरि दिन वो पुरव मरा उ०-कामानुज पामर्ण रुठ क्राप मन्यु प्रघ होय । क्षाभ भरा स्मारय । मुदहि धुनत गोश पर भारत रदन करत नृप तिय को निरखि पिडकी सहचारे मोय ।-नददास (शब्द०)। पाग्य । -पूर (२०) । (२) पन्न गुरतो पूरा दिन प्रति रुठना-'क्र० अ० [हिं० स्ठना ] दे० 'रूठना' । ग्दति पुर दिश घाय।-गर (२०) । (ग) पावा निकट रुठाना-क्र० स० [हिं० रूठना का प्रेर० स्प] किसी का रूठन में हहिं प्रभु भाजत न कराहि । जाउं समीप गहे पद फिर प्रवृत्त करना । नाराज करना। उ०—मनु न मनावन का फिरिचितइ परारि। गुनगी (मद०)। कर देत रठाइ रुठाइ । कौतुक लाग्यो प्यो प्रिया खिमहू रदराजो-सा पु० [सं० रद्राक्ष ] २० 'दाग'। रिझवति प्राय ।-बहारी (शब्द॰) । रुदित' -वि० [ स०] जो रो रहा हा। रोता या । उ० -(F) रुड़ना-क्रि० प्र० [सं० रणन | वजना । ध्वनित हाना । रुदित दक्ष को नाार गिरत 'म वग गुंहले बल।-चालनुद उ०-रणतूर नफेरय भेर रई। गहरे स्वर ताम दमाम गुप्त (गन्द०)। (1) हित मुदित माहित देत घाव गुडं।-रा० रू., पृ० ३३ । कहत पवि पनु जाग को 1-तुगी (शद )। रुढ़ाना-क्रि० प्र० [हिं० रूह + पाना (प्रत्य॰)] १ फल, तरकारी दित'- '-संश पु० रापन निया । रोना । दा (फा०] । आदि का कडा पड जाना । २ जवान होना। रुदुवा-सा पुं० [ २० ] एस् प्रकार मा धान जा गहन क महीने रुणा-सञ्ज्ञा स्त्री० [०] सरस्वती नदी को एक शाखा जिसका म तैयार हानाहार चिसफा चावल सालाना रह सकता है। उल्लेख महाभारत मे है। रुद्व-वि० [सं०] १ जा पिगी ने मेरार राका गया हो । घेरा रुणित-वि० [ ] शब्द करता हुआ झनकारता हुमा । बजता दुपा । राका मा । २ वाटत । पावृत । उ०—(क) ताम हुआ । उ०-चरण रुणित नूपुर ध्वनि माना सर विहरत हैं साह यमुना को पारा। गग प्रवाह रद्ध परिपारा।--स्वामी वाल मराल |—सूर (शब्द०)। रामगृष्ण (श-३०) । (म) रुस सर्प ने झुत हि मागध विद्ध रुत-सचा स्त्री॰ [ स० ऋतु ] दे० 'ऋतु' । करि |--गिरथर (शब्द०)। ३ जिसमे काई चोज अस या फंस रुत-सज्ञा पुं० [ स०] १ पक्षियो का शब्द । बालरव । उ०- 16—(F) गई हो । मुंदा हुप्रा । बद । ४ जिमकी गति रोक ली गई हो। सुनि घार अधीरन के रुत को। चकि के हग फे.र किए उतको । यो०-रस = जिगका गता रंप गया हो। जो प्रेम आदि -गुमान (शब्द॰) । (स) पल्लव अधर मधु मघुपनि पोवत ही मनोवेगों के कारण बोलने में असमर्थ हो । रुपमूत्र । रवा % सूचित साचर पिक रुत सुख लागरो।-कशव (शब्द॰) । २ ढके हुए मुखवाला । जिसने मुंह तोप रखा हो। शब्द । ध्वनि। रुद्धक-सा पुं० [ सं० ] नमक । रुतबा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० रुतवह ] १ दरजा । मर्तवा। मोहदा । पद । २ इज्जत । प्रतिष्ठा । बड़ाई । ३ बुजुर्गी । श्रेष्ठता (को०) । रुद्धमूत्र-सहा पु० [सं० ] मूत्राच्छ्र नामक रोग। रुद्र'-सशा पुं० [सं० ] एक प्रकार का गणदेवता । क्रि० प्र०-घटाना।पाना ।-बढ़ाना ।—मिलना। विशेष-उनको उसत्ति तप्ट के प्रारभ मे ब्रह्मा को भौहो से रुति-सझा स्त्री॰ [ स० ऋतु ] दे० 'ऋतु'। उ०-अंगना बुहारत हुई थो। ये काप रूम माने जाते ई और भूत, प्रेत, पिशाच do
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२९
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