पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३०

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४१८५ रुद्रतेज से ग्यारह co आदि इन्ही के उत्पन्न कहे जाते हैं। ये कुल मिलाकर ग्यारह रुद्रकवल-सहा पुं० [स० रुद्र+कमल ] रुद्राक्ष । उ-पहुंची हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-प्रज, एकपाद, अहिवन, रुद्र क्वल के गटा। ससि माथे श्री सुरसरि जटा ।-जायसी पिनाकी, अपराजित, व्यवक, महेश्वर, वृपाकपि, शभु, हरण (शब्द०)। और ईश्वर । गरुड पुराण मे इनके नाम इस प्रकार हैं-प्रजक रुद्रकाली-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] शक्ति या दुर्गा की एक मूर्ति का नाम । पाद अविघ्न, त्वष्टा, विश्वरुपहर, बहुरूप, त्र्यवक, उपरा- रुदकुड-मज्ञा पुं० [ स० रुद्रकुण्ड ] व्रज के एक तीर्थ का नाम । जित, वृषाकपि, शभु, कपर्दी और रक्त । कूर्म पुराण में लिखा रुद्रकोटि-सज्ञा पुं० [स० एक प्राचीन तीर्थ का नाम । है कि जब भारभ मे बहुत कुछ तपस्या करने पर भी ब्रह्मा सृष्टि न उत्पन्न कर सके, तब उन्हें बहुत क्रोध हुया और रुद्रगण-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] पुराणानुसार शिव के पारिपट् जिनकी १,००,००,००० और किसी किसी के मत से ३६,००,००,००० उनकी अाँखा से आंसू निकलने लगे। उन्ही प्रामुग्रो स भूतो और प्रेतो आदि की सृष्टि हुई, और तब उनके मुख विशेष-कहते हैं, ये सब जटा धारण किए रहते हैं, इनके रुद्र उत्पन्न हुए। ये उत्पन्न होते ही जार जोर से रोने लगे थे, इसलिये इनका नाम रुद्र पडा था। इसी प्रकार और भी अनेक मस्तक पर अर्ध चद्र रहता है, ये बहुत बलवान होते हैं, और योगियो के योगसाधन मे पडनेवाले विघ्न दूर करते हैं । पुराणो मे इसी प्रकार की कथाएं हैं। वैदिक साहित्य मे अग्नि को ही रुद्र कहा गया है और यह माना गया है कि यज्ञ का रुद्गर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] अग्नि । प्राग । अनुष्ठान करने के लिये रुद्र ही यज्ञ मे प्रवेश करते हैं । वहाँ रुद्रज - सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] पारा । को अनिरूपी वृष्टि करनेवाला, गरजनेवाला देवता कहा गया रुद्रजटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] १ इसरोल । ईमरमूल । २ सौंफ । है, जिससे बज्र का भी अभिप्राय निकलता है। इसके अतिरिक्त ३ तीन चार हाथ ऊंचा एक प्रकार का क्षुप जिसके पत्ते कही कही 'रुद्र' शब्द से इद्र, मिन, वरुण, पूपण और सोम मयूरशिखा के पत्तो के समान होते हैं । श्रादि अनेक देवतायो का भी बोध होता है । एक जगह रुद्र को विशप-इसके पत्त पहले तो वडे होते हैं, पर ज्यो ज्यो खुप मरुद्गण का पिता और दूसरी जगह अविका का भाई भी कहा बढता है, त्यो त्यो वे छोटे होते जाते है। इसमे लाल रंग के गया है। इनके तीन नेन बतलाए गए हैं और ये सब लोको का बहुत सु दर फल लगते हैं, जिनका आकार प्राय जटा के समान नियत्रण करनेवाले तथा सों का ध्वस करनेवाले कहे गए है। हुआ करता है । इसके वीज मरसा के बीजो के समान काले और २ ग्यारह की सख्या । उ०—नेहि मधि कुश करि विटप सुहावा । चमकीले होते हैं। वैद्यक मे रुद्रजटा कटु और श्वास, कास, हृदय- रुद्र सहस योजन कर गावा ।—विश्राम (शब्द०)। ३ शिव रोग तथा भूत प्रेत की वाधा दूर करनेवाली मानी गई है। का एक स्प । उ०—(क) रुद्रहिं देखि मदन भय माना । पर्या-रौद्री । जटा । रुद्रा। सोम्या । सुगधा । घना । ईश्वरी । दुराधर्ष दुर्गम भगवाना । —तुलसी (शब्द०)। (ख) केशव रुद्रलता । सुपना । सुगधपत्रा । सुरमि । शिवाह्ना । पत्रवल्ली । वरणहुँ युद्ध मे योगिनि गण युत रुद्र ।-केशव (शब्द॰) । जटावल्ली। रुद्राणी । नेत्रपुष्करा । महाजठा । जटरुद्रा। (ग) रुद्र के चित्त समुद्र वस नित ब्रह्महूं पं वरणी जो न जाई । रुद्रट-सज्ञा पुं० [स० ] साहित्य के एक प्रसिद्ध प्राचार्य जिनका बनाया केशव (शब्द०)। (घ) दशरथ मुत द्वपी रुद्र ब्रह्मा न भास । हुआ 'काव्यालकार' ग्रथ बहुत प्रसिद्ध है । ये रुद्रभट्ट और शतानद निशिचर वपुरा भू क्यो नस्यो मूल नास । -केशव (शब्द॰) । भी कहलाते थे। इनके पिता का नाम भट्ट वामुक था। विशेप-कहा गया है कि इसी रूप में इन्होने कामदेव को रुद्रतनय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] जैन हरिवश के अनुसार तीसरे श्रीकृष्ण भस्म किया था, उमा और गगा आदि के साथ विवाह का एक नाम। किया था, प्रादि। रुद्रता-सक्षा सी० [सं० रुद्र + ता (प्रत्य॰)] ३० 'रुद्रत्व' । ४ विश्वकर्मा के एक पुत्र का नाम । ५ प्राचीन काल का एक रुद्रताल-सज्ञा पुं० स० ] मृदग का एक ताल जी सोलह मायामो प्रकार का बाजा। ६ मदार का पेड । ग्राफ । ७ रौद्र रस । का होता है। इसमे ११ आघात और ५ खाली होते हैं। उ०-प्रथम शृगार सुहास्य रस करुणा रुद्र सुवीर । भय वीभरस बखानिए अद्भुत शात सुधीर । - केशव (शब्द०)। २ इसका बोल इस प्रकार है-घा चिन धा दित घेत्ता देना रुद्र-वि० भयकर । डरावना। भयावना । भयानक । उ०-हम ३ १ वूडत हैं विपदा समुद्र । इन राखि लियो सगाम रुद्र । केशव खुनखुन धा धा केटे ताग् देन्ता कहान् घाम्या ता देत ताग (शब्द०)। २ कदन करनेवाला । ३ o + रद्रक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रुद्राक्ष ] रुद्राक्ष । उ०-मेखल ब्रह्म देत ताक कडपान् तेरे केटे ताग खून धा । कपालनि की यह नूपुर रुद्रक माल रचे जू ।-केशव (शब्द॰) । रुद्रतेज -मज्ञा पुं० [सं० रुद्रतेजम् ] स्वामि कात्तिक । कात्तिकेय । रुद्रकमल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रुद्र + कमल ] रुद्राक्ष । उ०-अग्नि के फेंके हुए रुद्रतेज को गगाजी ने, लोकपालो रुद्रफलस-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कलश जिसका उपयोग के बडे प्रतापो से भरे हुए गर्भ को रानी ने राजा के कुल की ग्रहों आदि की शांति के समय होता है। प्रतिष्ठा के निमित्त धारण किया। लक्ष्मण (शब्द०)। + o o ar २ o O १ २ ४