मरुश्रा ३८०४ मस्थल 1 म मरुया दो प्रकार का होता है, काला और सफेद । काले कश्यप और दिति का पुत्र निसा गया है जिसे उसके वैमानिक मरुप का प्रयोग प्रोपधि रूप मे नही होता और केवल फूल भाई इद्र ने गर्भ काटकर एक से उनचाम टुकडे कर डाले थे, आदि के साथ देवताभो पर चढाने के काम माता है । मफेद जो उनचास ममद् हुए। वेदो मे मरुद्गण का स्थान अतरिक्ष मरुया भोपधियो मे काम प्राता है। वंद्यक मे यह चरपरा, लिखा है, उनके घोडे का नाम 'पृशित' बतलाया है तथा उन्हें कडा, रूखा और रुचिकर तथा तीखा, गरम, हलका, इद्र का मखा लिखा है। पुराणो मे इन्हें वायुकोण का पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विप, कृमि और कुष्ठ रोग दिक्पाल माना गया है। नाशक माना गया है। २ वायु । वात । हवा । ३ प्राण । ४ हिरण्य । मोना । ५ पर्या०-मरुवक । मरुत्तक । फणिज्जक । प्रस्थपुष्प । समीरण । एक माध्य का नाम । ६ मांदर्य । ७ वृहद्रय राजा का एक कुलसौरभ । गधपत्र । खटपत्र । नाम । = मरुमा । ६ ऋत्विक् । १० गाठपन । ११ अमवर्ग । १२ दे० 'मरत्त'। मरुआ-सज्ञा पुं० [सं० मण्ड या मेरु या श्रनु० ] १ मकान की छाजन में सब स ऊपर की बल्ली जिसपर छाजन का ऊपरी मरुतजण -सज्ञा पुं॰ [ म० मरत् + जन ] राक्षम । उ०-कत सिरा रहता है। बँडेर । २ जुलाहो के करघे मे लकडी का कमला कलह रटक पारणा करे, घाव वारणा कर कटक घाया, वह टुकडा जो डेढ वालिश्त लबा और पाठ अगुल मोटा होता मरुतजण मोह मू ।-रघु० ६०, पृ० १३१ । है और छत की कडी मे जहा होता है। ३ हिंडोले मे वह ऊपर मस्तवानी - मचा पुं० [ म० मरुत्वत् ] १० 'मान्यान्'। की लकडी जिममे हिंडोला लटकाया जाता है या हिंडोले का लटकाने की लकडी जडी या लगाई जाती है। उ०- ममत्कर-वधा पुं० [सं० ] राजमाप । उडद । कचन के सभ मयारि मरुमा डाठी सचित हीरा वीच लाल मन्त्त-सशा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक चक्रवर्ती गजा जो प्रवाल। रेसम बनाई नवरतन लाई पालनो लटकन बहुत च द्रयणी महाराज करधर के पुत्र प्रवीक्षित का पुत्र था। पिरोजा लाल । —सूर (शब्द०)। विशेप-इमने अनेक बार बडे बडे यज्ञ किए थे जिनमे समस्त यज्ञपात्र सोने के वनवाए थे। उसके प्रभावती, सौवीरा, मरु'-मज्ञा पुं० [हिं० मॉड़ ] माँड । मुकेशी, केकयी, मेरधी, वसुमती मौर मुशोभना नाम की मात मरुक--सझा पु० [ स० ] १ मोर । २ एक प्रकार का मृग । रानियां थी, जिनसे मठारह लडके उत्पन्न हुए थे। भागवत मे मरुकच्छ-सबा पुं० [स०] बृहत्महिता के अनुसार एक प्रदेश का नाम । इसे यदुवशी पौर करधर का पुत्र लिखा है । विशेप-यह दाक्षण दिशा मे है भौर हस्त, चित्रा और स्वाती नक्षत्रो के अधिकार में माना गया है। मरुत्तक-सचा पुं० [सं० मरुमा नामक पौधा। मरुत्तनय -मशा पुं० [सं०] १ हनूमान् । २ भीमसेन (को०] । मरुकातार-सञ्ज्ञा पु० [ स० मरकान्तार ] वालू या रेत का मैदान । रेगिस्तान । मरुभूमि। गरुत्पट-सशा पुं० [सं० ] पाल (को०] । मरुत्पति-सज्ञा पु० [ स० ] इद्र । मरुकुच्च - सशा पुं० [ म० मरुकुत्स, प्रा० मरकुच्च ] दे० 'मरुकुत्स' । मरुत्पथ-सज्ञा पु० [सं० ] आकाश । मरुकुत्स-सज्ञा पुं० [सं० ] वाराही महिता के अनुसार एक देश का नाम जो कूर्म विभा- स० ] इद्र। अनुसार पश्चिमोत्तर दिशा मे है मरुत्पाल-सञ्ज्ञा पु० [ और जो उत्तरापाढ, श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्रो के अधिकार मरुत्प्लव-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] सिंह । शेर । में है। मरुत्फल-सचा पु० [ ] भोला । मरुचीपट्टन-सशा पु० । स०] वृहत्सहिता के अनुसार दक्षिण दिशा मरुत्वती–सना मी० [सं० मरुत्वती ] धर्म को पत्नी का नाम । यह के एक देश का नाम जो हस्त, चित्रा और स्वाती के अधिकार प्रजापति की कन्या थी। मरुत्वम-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मरुत्वर्मन् ] अाकाश (को०] । मरुज-सज्ञा पुं० [सं०] १ नख नामक मुगाधेत द्रव्य । २ बांस मरुत्वान्-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मरुत्वत् ] १ इद्र। २ महाभारत के का कल्ला। अनुसार देवतामो के एक गण का नाम जो धर्म के पुत्र माने मरुजा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] इद्रायण की जाति की एक लता जो जाते हैं। २ हनूमान् । मरुस्थल मे होती है। मरुत्सख-सना पु० [ स०] ] १ इद्र । २ अग्नि। मरुजाता-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] कपिकच्छु । केाँच । कौछ । मरुत्सहाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] अग्नि । मरुटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] वह स्त्री जिसका ललाट ऊंचा हो। मरुत्सुत-सज्ञा पुं० [ ] १ हनुमान । २ भीम। मरुत्-सचा पु० [सं०] १ एक देवगण का नाम । मरुत्सूनु-मज्ञा पुं॰ [सं०] १ हनुमान । २ भोम [को०] । विशप-वेदों मे इन्ह रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा है और भरुत्स्तोम-सशा पुं० [सं०] एक प्रकार का एकाह यज्ञ । इनकी संख्या ६० की तिगुनी मानी गई है, पर पुराणो मे इन्हें मरुयल-सज्ञा पुं॰ [ सं० मरुस्थल ] दे० 'मरुस्थल' । उ०-सूख गए AO HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५
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