रेशम सा। HO रेशमी ४२१० रैतुवा पालनेवाले निकलने के पहले ही कोयो को गरम पानी मे डालकर रेहन- सज्ञा पुं० [अ० रह न ] रुपया देनेवाले के पास कुछ माल कीडो को मार डालते हैं और तब ऊपर का रेशम निकालते हैं। जायदाद इस शर्त पर रहना कि जब वह रुपया पा जाय, तब पर्या०—कौशेय । पाट कोशा । माल या जायदाद वापस कर दे। वधक । गिरवी। २ रेशम का सूत रेशा वा बुना हुआ वस्त्र । क्रि० प्र०—करना ।—रखना । —होना । यौ०--रेशन की या रेशमी गांठ = वह ग्रथि, उलझन वा समस्या यौ०-रेहनदार । रेहननामा। जो जल्दी सुलझ न सके । कोई कठिन काम । रेशमी लच्छा = रेहनदार समा पुं० [फा०] वह जिसने कोई जायदाद रेहन रखी हो । एक मिठान। रेहननामा-लज्ञा पु० [फा०] वह कागज जिसपर रेहन की शर्ते रेशमी-वि० [ फा०] १ रेशम का बना हुया । २ रेशम के समान । लिखी हों। रेहल- -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० रिह ल ] पुम्नक रखने की पेंचदार तरुनी । रेशा-सहा पु० [फा० रेशह] १ ततु या महीन सूत जो पौधो की छालो विशेप दे० 'रिहल' । प्रादि से निकलता है या कुछ फलो के भीतर पाया जाता है। रेहाल-मझा स्त्री० [सं० रेखा, प्रा० रेहा ] दे० 'रेखा' । यौ०-रेशेदार । सिरिहि मिलिल देहा, न कुचे चान रेहा। घामे न पिठल रेप-मज्ञा पुं० [ स०] १ क्षति । हानि । २ हिंसा । सुगवा ।-विद्यापति, पृ. ६४ । रेपर- सञ्चा स्त्री० [हिं० रेख ] दे० 'रेख' । रेहुा-वि० [हिं० रेह ] जिसमे रेह बहुत हो । रेपण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ घोडो का हिनहिनाना । २ बाघ का रेहू-सशा पुं० [ हिं० रोहू ] दे० 'रोहू' । गरजना, या गुर्राना। रेंगना-क्रिअ० [हिं० रेंगना] दे० 'रेंगना' । उ० --जानु पानि रेपा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ डोलनि जगमगे। मनिमय प्रांगन रंगन लगे।-नद००, ] १ घोड़े की हिनहिनाहट । २ बाघ की गुर्राहट या दहाड। पृ०२४५ । रेस-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ बाजी वदकर दौडना। दौड मे प्रति- रैंगलर-सच्या पुं० [अ० ] इगलैड मे प्रचलित सर्वोच्च गणित परीक्षा योगिता करना । २ घुडदौड । मे उत्तीर्ण व्यक्ति । यौ० रेसकोर्स । रेम ग्राउढ । रैनीg - वि० [सं० रमणी या रञ्जित (={गी हुई = पगी हुई)] रेसकोर्स-सज्ञा पुं० [ अ० ] दौड या घुडदौड का रास्ता या मैदान । १ दे० 'रमण'। भाप्लुत। सराबोर । रंगो या पगी हुई। उ०—अति प्रगल्भ बनी रस रैनी। सो प्रौढा प्रीतम सुख दैनी। रेसमाउड-सज्ञा पुं० [अ०] दौड या घुडदौड का मैदान । -नद० ग्र०, पृ० १४७ । रेसम-सज्ञा पुं० [हिं० रेशम ] दे० 'रेशम' । उ०-मुखमडल पं फल कुतल को, कहि रेसम के सम दूमत हैं। -प्रेमघन०भा. १, रै- सञ्चा पुं० [सं०] १ घन दौलत । सपत्ति । २ सोना। स्वर्ण । ३ आवाज । शब्द । ध्वनि [को०] | पृ० २१०। रेसमान-सज्ञा पुं० [ फा० रीसमान (= रस्सी)] सुतरी। डोरी। रैप्रति-मज्ञा स्त्री० [हिं० रैयत ] दे० 'रयत' । रस्सी । (लशकरी)। रैक-सज्ञा पुं० [अ० ] लकडो या लोहे का खुला हुषा ढाँचा जिसमे रेसमी-वि० [फा० रेशमी ] दे० 'रेशमी' । उ० - रेसमी रेसना पुस्तकें आदि रखने के लिये दर या खाने बने रहते हैं । रीति भल्ली । सिरी सीस सिंदूर सोभा सु मिल्ली । -पृ. रा०, विशेष-यह मालमारी के ढग का होता है, पर भेद इतना ही ६१।१३७५। होता है कि प्रालमारी के चारो ओर तरुले जड़े होते हैं और रेस्टोरेंट-सज्ञा पुं॰ [ फरा० रेस्तोरा ] दे० 'रेस्तरों'। यह कम से कम आगे से खुला रहता है । रेस्तरॉ-सञ्ज्ञा पुं० [ फरा० रेस्तोरा ] जलपानगृह । भोजनालय । रैकेट -सञ्ज्ञा पुं० [अ०] टेनिस के खेल मे गेंद मारने का डहा जिसका रेह-सक्षा स्त्री॰ [ स० रेचक (= एक प्रकार की मिट्टी या भूमि)] अग्र भाग प्राय. वर्तुलाकार और तान से बुना हुमा होता है। खार मिली हुई वह मिट्टी जो ऊमर मैदानो मे पाई जाती है। रैट-क्रि० वि० [अ० 'राइट' का ग्राम्य रूप] ठीक । दुरुस्त । तयार । 3०-(क) जावत खेह रेह दुनियाई । मेघ वूद प्रो गगन उ०-पात दिनो मे ही मव काम रेट हो जायगा।-मैला०, तराई । —जायसी (शब्द॰) । (ख) जंह जंह भूमि जरी भइ पृ० १३ । रेहू । बिरह के वाह भई जनु खेहू । -जायमी (शब्द॰) । रैति-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रैप्रति ] दे० 'रयत' । उ०-और काहू २-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० रेख, प्रा० रेह। दे० 'रेखा' । उ०—नव जल रैति के स्वरूप होइ सोभनीक ताहू की ती देषि करि निकट घर तर चमकए रे जनि वीजुरि रेह । -विद्यापति, पृ० ५। बुलाइए।-सुदर० ग्र०, भा॰ २, पृ०४६७ । रेहकला-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रहँकना ] दे० 'रहकला' । उ०-क्या रेतिक-वि० [सं० ] पीतल सबंधी । पीतल का । बुर्ज रेहकला तोप किला क्या शीशा दारू और गोला । रैतुवा -सक्षा पुं० [हिं० रायता ] दे० 'रायता'। उ०-रुचिर स्वाद राम० धर्म०, पृ० ६१ । बहु रतुवा घृत के विविव विधान । -रघुराज (शब्द॰) ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५१
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