पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२११ रोका o चमार था लोम। रन, रैनिg- 1 1 श्रमहर। रैत्य-सज्ञा पु० [सं० ] पीतल का वना वर्तन । रैहर-सज्ञा पु० [सं० रेप (=हिंसा ) ] झगडा । लडाई । रैत्य-वि० दे० 'रैतिक' [को०] । रैहाँ-सञ्ज्ञा पु० [ ] १ एक प्रकार की वनस्पति । रंदाप-सज्ञा पुं० [ हिं. रवि दाम ] १ प्रसिद्ध भक्त जो जाति का यौ०-गुलेरैहाँ । तुख्मरैहो । यह रामानद का शिष्य और कबीर, पीपा आदि २ सतति । अौलाद (को०)। ३ वनोका। गुजारा (को०)। ४. का समकालीन था । २ चमार। कृपा । मेहरवानी। दया (को०) । रैदासी 1-सञ्चा पु० [हिं० रैदास + ई (प्रत्य॰)] १ एक प्रकार मोटा राँग-संज्ञा पुं० [ म० रोमक, प्रा० रोक ] शरीर पर का वाल । जडहन धान । २ रैदास भक्त के सप्रदाय का । -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रजनी ] रात्रि । उ०-प्रोही छाँह राँगटा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० रोमक, प्रा० नोग्रक,+ हिं० गा+टा रैनि होइ पावै ।-जायसी (शब्द०)। (प्रत्य०)मनुष्य के सिर को छोडकर और सारे शरीर के बाल। यो-नपति = चद्रमा । रैनमसि = अधकार । निचर । मुहा०—रोंगटे खडा होना = किसी भयानक या क्रूर काड को रेनिचर-सज्ञा पुं० [हिं० रैन+चर ] निशाचर । राक्षम । उ०- देखकर शरीर मे क्षोभ उत्पन्न होना । जी दहलना । रोमाच हेम मृग होहिं नाह रोनचर जानिया । केशव (शब्द॰) । होना। रैनी-सक्षा सी० [हिं० रेना ] चाँदी या सोने की वह गुत्ली जो तार रोंगटी-सज्ञा स्त्री० [हिं० रोन' + टी (प्रत्य॰)] खेल मे बुरा मानना खींचने के लिये बनाई जाती है। या बेईमानी करना। उ०-रोगटि करत तुम खेलत ही मे रैमय--पञ्चा पुं० [स० ] सोना । सुवर्ण [को०] । परी कहा यह बानि ।—सूर (शब्द॰) । रैमुनिया'- 1-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० राजमुद्ग (= मोठ) ] १ एक प्रकार की घिट --सज्ञा स्त्री॰ [?] धूल । मिट्टी । रज कण । अरहर । रौठा-सज्ञा पुं० [ देश० ] कच्चे श्राम की सुखाई हुई फांक । प्रामकली। विशेष-यह काले छिलके की और अपेक्षाकृत छोटी होती है । यह जल्द पकती है और खाने मे स्वादिष्ट होती है। राँत-सज्ञा स्त्री० [हिं० रावत + ई ] ठकुराई। रावपन । रौताई । रैमुनिया'- 1-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रायमुनी ] १. लाल पक्षी को मादा। रोवल -सशा ० स० रोम ] शरीर के वाल। रोमां। लोम । रायमुनी। उ०—(क) जानि पछारि जो भा वनवासी। रोव रोव परे रैयत--सचा स्त्री० [अ० ] प्रजा। रिमाया । फद नगवासी।—जायसी (शब्द॰) । (ख) रोव रोव मानुस तन रैया-मझा पु० [सं० राजा ] नरेश । राजा । जमे, जदुरैया । ठाढ़े । सूतहि सुन वेघ अस गाढे । —जायसी (शब्द॰) । रैयाराव-सज्ञा पुं० [हिं० राजा + राव] १ छोटा राजा। २. एक राँसा- -सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] लोविया की फलो । वोडे पदवी जो प्राचीन समय मे राजा लोग अपने सरदारो को देते रोप्रा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रोयाँ | दे० 'रोयो । थे। उ०-रेयाराव चपति को चढ़ो छत्रसाल सिंह, भूपन भनत रोआई - -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रुजाई ] दे० 'रुलाई'। गजराज जोम जमके ।-भूपण न०, पृ० १०५ । रैवता सञ्ज्ञा पुं० [ स० रय् (= गमन करना) + हिं० वत (प्रत्य॰)] रोआबां-सशा पुं० [अ० रोश्रव ] रोवदाव । प्रभाव । प्रातक । रोइसा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] रूसा पास जिसको जह से सुगधित तेल निकलता है। विशेष दे० 'रूसा'। रैवत-सच्चा पुं० [सं०] १ एक साम मत्र । २ गुजरात का एक पर्वत जिसपर से अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया था। ३ रोइयों-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रोनाँ ] रोम । लोम । शंकर । शिव । ४ एक दैत्य जो बालग्रहो मे से है। अनर्त रोइया-सज्ञा पुं॰ [देश॰] जमीन मे गडा हुया काठ का कुदा जिसपर देश का एक राजा । वर्तमान कल्प के पांचवें मनु जो रेवती के रखकर गन्ने के टुकडे काटते हैं गर्भ से उत्पन्न कहे गए है । ७ मेघ । बादल । रोउँल-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रोव ] दे० 'रोब' । रैवत'-वि० १. धनी । सपत्तिशाली । २ परिपूर्ण । पर्याप्त । प्रचुर । रोक-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० रोधक ] १ ऐसी स्थिति जिससे चल या बढ ३ श्रेष्ठ । भव्य । सुदर (को०। न सकें। गति मे वावा । अटकाव । छेक । अवरोव । जैसे,- रैवतक'-सच पुं० [सं०] १ गुजरात का एक पर्वत । इसी बगीचे से होकर गाएं जाती हैं, उनकी रोक के लिये दीवार विशेष-यह आधुनिक जूनागढ के पास है और गिरनार कहलाता उठानी चाहिए । २. मनाही । निपेध । मुमानियत । है। इसी पर्वत पर अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया था। यौ०-रोक टोक। रैवतक-वि० सामयिक । समयानुसार मगत [को०) । ३ किसी कार्य मे प्रतिबंध । काम में बाधा । ४ वह वस्तु जिससे रैवत्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का साम । २. धन । सपत्ति । आगे बढना या चलना रुक जाय । रोकनेवालो काई वस्तु । रैसा-सचा पुं० [सं० रेप् (= हिंसा) तुल० हिं० रायसा, रासा] जैसे,—ऐसी कोई रोक खडी करो जिससे वे इघर न पान पावें । झगड़ा। कलह । युद्ध। ५. दहेज । तिलक । उ०-एक ठोर व्याह ठोक भी हुमा है, वो फली। घोडा (डि०)। -