पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५५

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लिट। रोजनामचा ४२१४ रोटी रोजनामचा-सज्ञा पुं॰ [फा० रोजनामचह, ] १ वह किताव या वही रोझ-सञ्ज्ञा स्त्री० [ देश० अथवा स० ऋश्य, प्रा०, रोज्म, रोह ] नील जिस पर रोज का किया हुया काम लिखा जाता है। दिनचर्या गाय । गवय। उ०- को पुस्तक । २ प्रति देन का जमा खर्च लिखने की वही । कच्चा रोट-सज्ञा पुं० [हिं० रोटो ] १. गेहूं के प्राटे की वहृत मोटी रोटी। चिट्ठा। खाता। ३ दैनिक विवरण लिखने की पुस्तिका । डायरी । दैनदिनी । जैसे,-सौर रोजनामचा । विशेप-ऐसी रोटी गरीव लोग खाते है या हाथियो को रातिव रोजमर्रा-अव्य [ फा०] प्रतिदिन । हर रोज । नित्य । मे दी जाती है। रोजमर्रा-संज्ञा पुं० नित्य के व्यवहार में आनेवाली भाषा । बोलचाल । २ मीठी मोटी रोटी या पूना जो हनुमान प्रादि देवतानो को चलतो वोली। चढाया जाता है। रोजा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ फा० रोज़द् ] १ व्रत । उपवास । २ वह व्रत जो रोटफा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] वाजरा । मुसलमान रमजान के महीने से ३० दिन तक रहते हैं और रोटा-वि० [हिं० रोटी ] पिसी हुई। पिसा हुआ। चूर किया जिसका प्रत होने पर ईद होती है । हुप्रा । उ०—श्री जी छुटहिं वन कर गोटा। विसरहि भुगुति कि० प्र०—रखना। होइ मब रोटा । —जायसी (शब्द॰) । मुहा०-रोजा टूटना = व्रत खडित होना । व्रत का निर्वाह न हो रोटिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [ सं० ] छोटो रोटी । फुलकी । पाना । रोजा तोड़ना=वत खडित कर । व्रत पूरा न करना। रोटिहा -सज्ञा पुं० [हिं० रोटी + हा (प्रत्य॰)] रोटियों पर रहने रोजा खोलना = दिन भर भूखे रहकर शाम को पहले पहल वाला नौकर । केवल भोजन पर रहनेवाला चाकर । उ०- कुछ खाना। कहिही वलि रोटिहा रावरो बिनु मोलहि विकाउंगो।- रोजाना-क्रि० वि० [फा० रोज़ानह, ] प्रति दिन । हर रोज । नित्य । (शब्द०)। रोजी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० रोज़ी ] १ रोज का खाना । नित्य का रोटिहान -रज्ञा पुं॰ [स० रोटिफ+ स्थान, हिं० रोटी+हान] चूल्हे भोजन । के पास का वह मिट्टी का छोटा चबूतरा जिसपर रोटियां पकाकर रखी जाती हैं। क्रि० प्र०—देना ।-मिलना। रोटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] १ गुंघे हुए आटे को आंच पर सेंकी हुई यौ०-रोजी रोजगार । लोई या टिकिया जो नित्य के खाने के काम मे पाती है। मुहा०—रोजी चलना = भोजन वस्त्र मिलता जाना। रोजी चपाती । फुलका। चलाना = भोजन वस्त्र आदि का ठिकाना करना। क्रि० प्र०—पकाना ।—बनाना। सेंकना । २ वह जिसके सहारे किसी को भोजन वस्र प्राप्त हो । काम घधा मुहा--रोटी पोना = (१) रोटी पकाना । (२) चकले पर वेलकर जिससे गुजर हो। जीवननिर्वाह का अवलब । जीविका । रोज- गुथे हुए आटे की पतनी टिकिया बनाना। गार । जैसे,—किसी की रोजी लेना अच्छी बात नहीं। ३ एक २. भोजन । रसोई । खाना । जैसे,—तुम्हारे यहाँ कब रोटी तैयार प्रकार का पुराना कर या महसुल जिसके अनुसार व्यापारियो होती है। के चौपायो को एक एक दिन राज्य का काम करना पडता था। यौ-रोटी दाल । रोजी-सज्ञा स्त्री॰ [ दश० ] गुजरात मे होनेवाली एक प्रकार की मुहा०-~ोटी कपड़ा = भोजन वस्त्र । खाना कपडा । जीवन- कपास जिसके फूल पीले होते हैं । निर्वाह की सामग्री । जैसे,—उस औरत ने रोटी कपडे का रोजीदार-सचा पु० [ फा० रोजीदार ] वह जिसको रोजाना खर्च के दावा किया है। रोटी कमाना = जीविका उपार्जन करना । लिये कुछ मिलता हो। रोटी को रोना = भूखो मरना । अन्नकष्ट भोगना। किसी बात रोजीना-वि० [ फा० रोज़ीन ] रोज का । नित्य का । का रोटी खाना = किमी बात से जीविका कमाना। जैसे,- वह इसी की तो रोटी खाता है। रोटियों मारा%= भूस्खा। रोजीना-सज्ञा पुं० १ प्रतिदिन को मजदूरी। वेतन या वृत्ति प्रादि । जैसे,—उसको २) रोजीना मिलता है। २ पेंशन । गुजारा अन्न विना दुखी। किसी के यहाँ रोटियां तोडना=किसी के (को०) | ३ रोज मिलनेवाली खुराक । घर पडा रहकर पेट पालना । बैठे बैठे किसी का दिया खाना । किसी को रोटियाँ लगना = किसी को खाना पूरा मिलने से रोजीविगाड़-सञ्ज्ञा पुं० [ फा• रोजो+हिं० विगाडना ] लगी हुई मोटाई मूझना । भरपेट भोजन पाने से मोटाई सुझना। भरपेट रोजी को विगाडनेवाला। जमकर कोई काम धवा न करने- भोजन पाने से इतराना । दाल रोटी से खुरा = जिसे खाने पीने वाला । निखटू । निकम्मा । का अच्छा सुबीता हो। रोटी दाल चलना = जीवन निर्वाह रोजुल -सशा पु० [सं० रुघते, प्रा० रुज्जइ, रोजई ] रोना। रोदन । होना । शेटा का पेट = रोटी का वह पार्श्व या तल जो पहले रुदन । उ०—बरजा पित हंसी और रोजू । —जायसी ग्र०, गरम तावे पर डाला जाता है। शेटोपी पीठ रोटी का वह पार्श्व जो उलटने पर सेंका जाता है।