पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५४

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२ HO म० रोगहा ४२१३ रोजगारी रोगहा-सज्ञा पुं० [ मं० रोगहन् ] वैद्य । चिकित्सक । हकीम [को०]। रोचनक-मज्ञा पुं॰ [सं०] • जवीरी नीवू । २ वशलोचन । रोगहा-वि० [हिं० मेग+ हा (प्रत्य॰)] रोगयुक्त । कारण । रोगी। रोचनफल-सा पुं० [ म० ] विजोग नीवू । रोगहारी-राका पुं० [ मै० गहारिन् ] १ वह जो रोग का हरण रोचना-सा सी० [सं०] १ रक्त कमल । २ गोरोचन ३ श्रेष्ठ करे । व्याधि दर करनेवाला । २ वैद्य । चिकिल्लक (को०) । सी। ४ वसुदेव की कमी । ५ दीप्त अाकाश । ६ काला सेमर । रोगाकात वि० स० रोगाकान्त ] रोग ने घिरा हुया । व्याधि मे ७ वशलोचन । ८ हरिद्रा। पीडित। रोचनी-सश ती सं०] १ शामलको। आँवला। • गोरोचन । रोगातुर-वि० [स० ] रोग से घबराया हुया । व्याधि से पीड़ित । ३ मन शिला। मन मिल । ४ श्वेत त्रिवृता। सफेद निसोथ। रोगात-वि० [सं०] रोग से दुखी । ५ कमीता। ६. दती । ७ तारका । तारा । रोगाव-सशा पुं० [ से० ] मुलापथ । कुट । रोचमान-वि० [स० ] चमकना हुया । शोभित होता हुग्रा । रोगिणी-वि० रत्री० [सं०] २० 'रोगी'। रोचमान-सगा पु० १ घाडे को गर्दन पर को एक भंवरी। २ स्कंद के एक अनुचर का नाम । रोगित'-वि० [ ] पीरित । रोगमुक्त । रोचि 1-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० रोचिस् ] १ प्रभा । दीप्ति । २ प्रकट होती रोगित- सज्ञा पुं० फुत्त का पागलपन । हुई शोभा। उ०—-साहम के उर मध्य धर्यो कर, जागति, रोगितरु- पुं० [ ] अशोक वृक्ष । रोम की रोचि जनाई।-केशव (शब्द०)। ३ किरण। रश्मि । रोगिया-सरा पुं० [हिं० रोग+इया (प्रत्य॰)] रोगी। बीमार | रोचित-वि• [ स० रो-न ] शोभित । उ०तन रोचित रोचन लहै, उ०-रोगिया को नो पात्र वदहिं जहाँ उपास |-जायगी रचन कचन गातु ।-केशन (शब्द०)। (शब्द०)। गेगिवल्लभा पु० [ म० ] श्रीपय । दया। चिकित्मा को०] । रोचिष्णु-वि० [सं० १ चमकदार । २ श्राभूपणो प्रादि से जग- रोगो-वि॰ [ सं० रोगिन् ] [ वि० सी० रोगिणी, गेगिनी ] जो स्वस्थ मगाता हु।। ३ रुचि उत्पन्न करनेवाला । बुभुक्षा (भूख) न हो। जिमको तदुरुस्ती ठीक न हो । रोगयुक्त । व्याधिनस्त । वढानेवाला। बीमार मांदा। रोचिस्-सज्ञा -सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] दीप्ति । प्रभा । चमक । रोच-सज्ञा स्त्री० [हिं० रचि ] दे० 'गचि' । उ०-ना काहू से रोची-सभा सी० [ स०] हिलमोचिका । दुपता, ना काहू से रोच ।-पलटू०, पृ० १५ । रोज-सज्ञा पु० [सं० रोदन ] १ रोना धोना । रुदन। २. रोना रोचक'- [मं०] १ रुचिकारक । रुचनेगाला । अच्छा लगनेवाला । पीटना । विलाप । स्यापा । उ०—(क) रोज सरोजनि के पर प्रिय । २ जिसमे मन लगे। मनोरजक | दिलचस्प । जैसे, हमी ससी की होय । - बिहारी (शब्द०)। (ख) जहाँ गरव तह पीग, जहाँ हमी तहं रोज । —जायसी । (शब्द॰) । रोचक' '-सज्ञा पुं० १ क्षुधा। भूस । २ कदली। केला। ३ राज रोज-पचा पुं० [फा० रोज ] दिन । दिवम | जमे,—उसे गए चार पलाडु। ४ एक प्रकार की प्रचिपणी जिते नेपाल मे 'भडेउर' रोज हो गए। कहते हैं । ५ कांच की कुप्पी या शीशी बनानेवाला । रोज-अव्य० प्रतिदिन । नित्य । जैसे,—वह हमारे यहां रोज पाता है। रोचकतामा सी० [म० ] रोचक होने का भाव । मनोहरता । रोजगार-सशा पु० [फा० रोज़गार ] १ जीविका या चनसचय मनोरजकता । दिलचस्पी। करने के लिये हाथ मे लिया हुआ काम जिसमे कोई बरावर रोचकद्वय-सहा पुं० [म०] विट लवण और गधव लवण । (वंद्यक) । लगा रहे । व्यवसाय । धधा। उद्योग । उद्यम । पेशा । कारवार । रोचन'---वि० [सं०] १ अच्छा लगनेवाला । रुचनेवाला। रोचक । २ दीप्तिमान् । गोमा देनवाला । ३ प्रिय लगनेवाला । । मुहा०-रोजगार चमकना = व्यवसाय मे खूब लाभ होना। रोज- गार घटना = जीविका न रहना । रोजगार चल ना - कारबार लाल। उ०-बारि भरित भए वारिद रोचन ।-केणव में लाभ होना। व्यवसाय जारी रहना । रोजगार लगना = (शब्द०)। रोचन-सा पुं० १ फूट शाल्मनि । काला सेमर । २ कापिल्ल । जीविका का प्रबंध होना । गुजर के लिये काम मिलना । रोजगार लगना = जीविका का प्रवध करना । कोई काम देना । निर्वाह कमीला । ३ श्वेत णिगु । मफेद सहिजन । ४ पलाडु । प्याज । के लिये कोई मार्ग बताना। रोजगार से होना - निर्वाह के ५ पारस्वध। अमनतास । ६ करज । करजुवा । कजा । ७ लिये किसी काम में लगना। अकोट । ढेरा। ८ दाडिम । अनार | ६ हरिवश पुराण के अनुमार रागो के अधिष्ठाता एक प्रकार के देवता । १०. २ क्रय विक्रय आदि वा प्रायोजन । व्यापार । तिजारत । जैसे,- स्वाराचिप् मन्वतर के इद्र । ११ मार्कडेय पुराण मे वरिणत वहाँ गल्ले का रोजगार खूब है। एक पर्वत का नाम । १२ कामदेव के पांच वाणा में से एक । रोजगारी-सज्ञा पुं० [फा० रोज़गारी] रोजगार करनेवाला। १३. रोली । रोचना । १४. गोरोचन । व्यापारी । सौदागर । वणिक् । रोचक वृत्तात ।