पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६४

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लंगर' ४२२५ लाजका क्रि० प्र०-करना।-दालना।-तोड़ना-भरना । लगेतग-मि० वि० [फा० नगराग ] मायनही चिाने । १३ वह उभडी हुई रेखा जो अउकोश के नीच के भाग ने प्रारम तमे करके। येन केन प्रकारण । उ०-लगे तगे पाच महीने होकर गुदा तक जाती है। सीयन । गीवन । १४ वह पा कट जायंग-गोदान, पृ० १०७ । हुआ भोजन जो प्राय नित्य किसी निश्चित समय पर दीना और लघक-वि० [सं० लदुरू] १ लाँपनवाला। प्रतिकमा करोगा। दरिद्रो श्रादि को बांटा जाता है । २ नियम का भग करनेवाला । कायदा तोऽनेनाना। क्रि० प्र०-देना।-बांटना ।- लगाना । लघन-सज्ञा पुं० [स० लद्धन ] १. उपनाम । अनाहान । पाता। यो०-लगरसाना। कुछ न खाना । उ० (क) जिन नंनन को 2 मही मोट्न प १५ वह स्थान जहां दीनो और दरिद्रो ग्रादि को बांटने के लिये ग्रहार । तिनमो बंद बतावही लपन को उपचार | -सनिधि भोजन पकाया जाता हो । १६ वह स्थान जहा बहुत से लोगो (शब्द०) (स) धाम धाम मांग भीस लघा गुनाई है। - का भोजन एक माय पकता हो। रघुराज (गब्द०)। २ लापन की क्रिया। डॉना। ३ अति- लंगर-वि०१ जिसमे अधिक बोझ हो । भारी । वजनः । २ शरीर । क्रमण । ४ घोडे की एक चाल जिसमे वह वहत तेज चलता नटखट । दौठ । उ०—(क) लरिका लवे के |मसन लगर मो है। ५ वह उपाय जिमने किसी काम मे तापव या नु माता ढिग प्राय । गयो अचानक आंगुरी छाती छैल छुवाच । हो। ६ सभाग । मप्रयोग (को॰) । विहारी (शब्द०)। (ख ) सूर श्याम दिन दिन लगर भयो लघनक-सा पु० [ म० लद्धनक ] १ यह जिसके द्वारा लांघा दूरि करी लंगरया । —सूर ( शब्द०)। जाय । मेतु । पुल । मुहा०-लगर करना= शरारत या ढिठाई करना। उ-चोलि लंघना'- क्रि० स० [म. रत्नान या लट्यााघो की लियो बलरामहिं यशमति । प्रावटु लाल सुनहु हारे के गुण क्रिया ] किमी वरतु के कार म हाकर इन पोर । उम प्रार कालिहि ते लंगर्यो करत अति ।- सूर (शब्द॰) । जाना । लाधना । नांधना । डाकना । लगर-वि० [हिं० लँगडा ] दे० 'लंगडा' । लघना-सज्ञा री० [सं० लइना ] १, अपमानना। उपेक्षा । लगरखाना-सज्ञा पुं० [फा० लगरखानह ] वह स्थान जा मे दरिद्रो लापरवाही । २ लघन । उपवास । डाका। को बना बनाया भोजन बांटा जाता हो । लघनापुर-वि० जो लघन या उपनास किए हुए हो । युभृनित । लंगरगाह-सचा पुं० [फा०] किनारे पर का वह स्थान जहाँ नगर भूसा । उ०-पतिवरता पनि पा भज, और न पान गुताय । डालकर जहाज ठहराए जाते है । सिंघ बचा जो लघना, तो भी धाम न साय।- वचार मा. लगल-सजा पुं० [म० लङ्गल ] हल [को०) । स०, पृ० ३०। लगा-वि० [सं० नग्न ] १ नगा। वस्ररहित । नग्न । उ०—पय लंघनीय-वि० [ पीवहिं फल करहिं अहारा । लगा फिर तन रहे उघारा-गत. उघन लडनीय ] नापने के योय। २ करने के योग्य । दरिया, पृ०५६ । २ युद्ध क लिये नवा सन्नद्ध । जिमका स्वभान लडाई करने का हो। लव्य -वि॰ [सं० लाध्य दे० 'लघनीय' [को०) । लगिमा-सा पुं० [सं० लङ्गिमन् ] १ मौदर्य । शोभा । मुदरता । लधित-वि० [ १० लाट्यत ] १ डाँका हुप्रा । लांघा हुा । ६ २ मेल । सगम । ममागम (को०) । उल्लाघन । ३ तिरस्त । उक्षत । ८ ग्राम मत को०)। लगुरा -सका सी० [सं० लद्गुरा] एक प्रकार का अन । प्रिय (को०] । लच-सा • [अ० ] दापरर का नाश्ता । अपामार ०। लगूर-सज्ञा पुं० [सं० लागूली ] १. ३दर । २ पंच। दुम । (बदर लचा-सा [सं० लजा ] धूम । उता। सित To1 को)। ३. एक विशेष प्रकार का बदर । लकण'-ग पु० [सं० लाञ्छन | कनर । दार । २० 'ला' विशेष-लंगूर माधारण वदर से वन होता है और इनकी पूंछ उ०-नारद युवर, मूउउ पर, नातागो ना नोद- बहुत अधिक लबी होती है। इसके सारे शरीर पर सफेर रग के ढाना०,दू०५०२। रोएं होते हैं और मुंह, हाथ की हथेलियो तथा पर तो मोर उंगलियां मादि काली होती है। लछन पु-ससा पु० [ मं० लान्छन, प्रा. वाहन निमानी। नायन । 30-रभाTI मलदास नकवार- लगूरफल-राश पुं० [हिं० लगूर + सं० पास] नारियल । उ--- हारय ।-१००,१०३ । वानरगुस लगूरफन नारिक लि शुभ नाम । ये तरनी गो नायिर ता फह करत प्रनाम ।-नंददास (शन्द०)। लज- पु० [१० लज १ र ।। २ मा ३१५। तुम। पटना ।५ बात । माता। लगूरी - सी० [हिं० लगूर+ई (२०)] १ घोडे को एक पाल जिममे वह उपन उपनकर चलता है। २ वर इनाम जा लज'- पी० उनी। पोरो को उस समय दिया जाता है, जब वे चारो गर हुए लजा-nati [ F० ला] १. बारात'। २ ५.नी मवेशियो का पता लगा दें। है! गुना। ३.१।। ४ । मगूल-सा पं० [सं० लर,गूल ] लागूत । पूछ । दुम । लाजका-काकी [ मलजका सा रत। HO