पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६५

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लेठ ४२२६ लवा लठ-वि० [हिं० लठ्ठ ] मूर्स । उजड्ड । लड'–सञ्चा ३० [ स० लण्ड ] पुरीप । विष्टा । गू। लड'-सज्ञा पुं० [ स० लङ्ग, तुल० फा० लग = शिशु ] पुरुष को मूत्रद्रिय । लतरानी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] व्यर्थ को बडी वडी बातें । शखी। क्रि० प्र०—करना ।-हाँकना । लदराज-सज्ञा पुं० [अ० लांग क्लाथ ] वस्त्र जो आकार मे लबा चौडा और माटा हो । एक प्रकार की मोटी चादर । लप-सञ्ज्ञा पुं० [अ० लम्प ] दीपक । चिराग। लपक-सञ्ज्ञा पुं० [ पु० नम्पक ] जैनियो का एक सप्रदाय । लपट-वि० [ सं० कम्पट ] व्यभिचारी । विषयो । कामा । कामुक । स्वेच्छाचारी। स्वरी। उ.-लोभी लपट लोलुप चारा । जो ताहिं पर धन पर दारा ।—तुलसी (शब्द०)। लपट-सञ्ज्ञा स० स्त्री का उपपति । यार । लपटता-सञ्चा स्त्री॰ [ मं० लम्पटता] १ लपट होने का भाव । दुराचार । कुकम । २ लोभ । लालच को० । लपाक-सज्ञा पुं० [मं० लम्पाक १ लपट । दुराचारो। २ पुराणा- नुसार एक देश का नाम जिसे मुरड भी कहते थे । यह देश भारत के उत्तरपश्चिम मे था। लपारह-सञ्ज्ञा पु० [सं० लम्पापटह ] पटह वाद्य । नगाडा (को०] । लफ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लम्फ ] उछाल । कूद । फलोग को०] । लफन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लम्फन ] उछलकूद [को॰] । लब'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ मै० लम्घ ] १ वह रेखा जो किसी दूसरी रेखा पर इस भांति गिरे कि उसके साथ समकाण बनावे । क्रि० प्र०-गिराना ।-डालना। २ एक राक्षस जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था । इसी को प्रलबासुर भी कहते हैं। ३ शुद्ध राग का एक भेद । ४ वह जो नाचता हो। नाचनेवाला। ५ अग। ६. पति । ७ एक दैत्य का नाम । ८ एक मुनि का नाम । ६ ज्योतिष मे एक प्रकार की रेखा जो विपुव रेखा के ममानातर होती है । १० ज्योतिप मे ग्रहो की एक प्रकार की गति । ११ उत्कोच । भेंट | लवकर्ण '-सा स० [ स० लम्बकर्ण ] १ बकरा । २ हाथी। ३ अकोट वृक्ष। ४ राक्षस । ५ बाज पक्षो। ६ गदहा । खर। ७ खरगोश । लबकर्ण-वि० जिमके कान लबे हो । लबकेश'-सज्ञा पुं॰ [ मं० लम्यकेश } कुश का आसन । कुश का विष्टर जा विवाह मे वर के बैठने के लिये दिया जाता है। लवकेश'- वि० लवै बालोवाला [को०)। लवग्रीव - सज्ञा पुं॰ [ सं० लम्बग्रीव ] ऊँट । लवजठर-वि० [सं० लम्बजठर ] तुदिन । तोदवाला। लवतडग-वि० [ स० लम्ब+ हिं० ताड+ अग] ताड के समान लबा। बहुत लवा। लवदता-सज्ञा स्त्री० [सं० लम्बदन्ता ] सिंहन देश की पिप्पली । लवन-सज्ञा पुं॰ [ स० रूम्बन ] १ गले का वह हार जो नाभि तक लटकता हो। २ भूलने की क्रिया । ३ प्रबलब । पाश्रय । महारा । ४ कफ । ५ शिव का नाम (को०)। लघपयोधरी-मशा स्त्री॰ [ स० लम्बपयोधरा ] १ कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । २ लपस्तनी स्त्री। लबबीजा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० लम्बवीजा ] दे॰ 'लबदता' [को०] । लवमोन-वि० [ सं० लम्बमान ] लटकता हुा । दूर तक गया हुआ। फैला हुआ । लवावमान (को०] । लबर-सञ्ज्ञा पुं० [अं० नम्बर ] दे० 'नबर' । लबर'-सज्ञा पुं० [ म० लम्बर ] एक प्रकार का ढोल या पटह [को०] । लवरदार-सञ्ज्ञा पु० [अ० नवर+ फा० दार (प्रत्य॰)] २० 'नवरदार' । लवरा-सा स्त्री० [सं० लम्बरा ] को टल्य अर्थशास्त्र मे निर्दिष्ट एक प्रकार का कवल । ऊर्णायु [को०] । लबरतनी-सज्ञा स्त्री॰ [ मं० लम्बस्तनी लवे स्तनोवाली नारी (को॰] । लवा'- वि० [सं० लम्ब] [वि० लवा ] १ जिसके दोनो छोर एक दूसरे से बहुत अधिक दूरी पर हो। जिसका विस्तार, प्रायतन की अपेक्षा, बहुत अधिक हो। जो किसी एक ही दिशा मे बहुत दूर तक चला गया हो । 'चौडा' का उलटा । जैसे,-लबा वाल, लवा बाँस, लवा सफर । मुहा०-लवा करना = (१) (आदमी को) रवाना करना । चलता करना । (२) जमीन पर पटक या लेटा देना । चित करना । उ०-खर नास्यो इन समर अनल खर नासै जैसे । कियो भूमि पर लब नासि परलबहि तसे । - गि० दाम (शब्द॰) । लवा बनना या होना = चल देना। रवाना होना । प्रस्थान करना । घता होना । (व्यग्य और परिहास में)। उ०-थाने- दार साहब तहकीकत करके लवे हुए।—फिसाना०, भा० ३, पृ० ३७२। यौ०-लबा चौडा = जिसका प्रायतन और विस्तार दोनो बहुत अधिक हो । जैसे,-लवा चौडा मैदान । २. जिसकी ऊंचाई अधिक हो। ऊपर की ओर दूर तक उठा हुआ। रिश्वत (को०)। लब'- सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'विलव' । लव-वि० [सं०] १ लबा। उ०—(क) युक अवलब लब भुज चारी।-रघुनाथ (शब्द॰) । (ख) अस कहि लब फरस विघ- वायो।-रघुराज (शब्द०)। २ वड़ा (को०)। ३ लटकता हुभा । अवलवित । सलग्न । लगा हुआ (को०)। ५ विस्तृत । फलावदार । प्रशस्त (को०)। लवक-सञ्ज्ञा पु० [ स० लम्बक ] १ किसी पुस्तक का एक अध्याय । २ लवरेखा (को०)। ३ एक प्रकार का विशिष्ट उपकरण या पात्र (को०) । ४ मुख का एक रोग। ५ ज्योतिष मे एक प्रकार के योग जो सख्या मे पद्रह होते हैं।