पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४७०

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लक्षित ४२३१ लक्ष्मी 9 जिसपर रामचद्र जी ने बहुत अधिक विलाप किया था। पर हनुमान द्वारा प्रोपधि लाए जाने पर उसके सेवन से शीघ्र ही इनकी मूर्छा दूर हो गई थी और ये फिर उठकर लडने लगे थे। जिस समय सीता जी अपने मतीत्व का प्रमाण देने के लिये अग्निप्रवेश करने को प्रस्तुत हुई थी, उस समय रामचन्द्र की श्राज्ञा से इन्ही ने सीता के लिये चिता तैयार की थी। रामचद्र के वनवास के कारण ये अपने पिता राजा दशरथ और भाई भरत से बहुत अपसन्न हो गए थे, पर पीछे मे भरत की ओर से इनका मन साफ हो गया था और इन्होने समझ लिया था कि इसमे भरत का कोई दोष नही है। ये बहुत ही तेजस्त्री, वीर और शुद्ध चरित्र के थे। उमिला से इन्हे अगद और चद्रकेतु नाम के दो पुत्र थे । पुराणानुसार ये शेषनाग के अवतार माने उडाय के लक्षन लक्षि करी अरिहा ममरत्थहि । -केशव (शब्द० । लक्षित'-वि० [ ] १ बतलाया हुप्रा। निर्दिष्ट । २ देखा हुआ। ३ अनुमान ने समझा या जाना हुअा। ४ जिसपर कोई लक्षण या चिह्न बना हो। लक्षि'-सञ्ज्ञा पु० वह अर्थ जो शब्द को लक्षणा शक्ति के द्वारा ज्ञात होता है। लक्षित लक्षणा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक प्रकार की लक्षणा । लक्षितव्य-वि० [सं०] १ परिभाषा या व्याख्या करने योग्य । २ चिहिन करने योग्य (को०] । लक्षिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] वह परकीया नायिका जिसका गुप्त प्रेम उपकी सखियो को मालूम हो जाय । वह स्त्री जिमका पर-पुरुप- प्रेम दूसरों को ज्ञात हो। लक्षितार्थ -सज्ञा पुं० [सं०] अर्थ जो शब्द की अभिधा शक्ति द्वारा प्राप्त न हो । लक्षणा शक्ति द्वारा प्राप्त अर्थ [को॰] । लक्षी-सज्ञा स्त्री० [सं० ] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे पाठ रगण होते हैं। इसे गगोदक, गगाधर और खजन भी कहते हैं। उ०-कोटि वाधा कट पाप सार घटै शभु शभू रटै नाथ जो मान के ।-जगन्नाथप्रसाद (शब्द०)। लदी-वि० [ स० लक्षिन् ] [वि० सी० लक्षिणी] शुभ लक्षणोवाला । शुभ चिह्नो से युक्त। लक्ष्म-सज्ञा पु० [सं० लक्ष्मन् ] १ चिह्न । निशान । २. घव्वा । दाग। लाछन । ३ प्रधान । मुख्य । ४ परिभापा। ५. मुक्ता । जाते है। मोती [को०। लक्ष्मण'-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ रघुव शी राजा दशरथ के चार पुत्रो में मे से दूसरे पुत्र, जो सुमित्रा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। विशेप जब मिथिता मे रामचद्र जी ने धनुप तोडा था, तब परशुराम के विगहने पर इन्होंने उनमे वादविवाद किया था। उमी अवसर पर उर्मिला के माथ इनका विवाह हुआ था। यद्यपि इनका प्रभाव बहुत ही उग्र और तीन था, तथापि ये अपने बड़े भाई रामचद्र के बहुत बडे भक्त थे, और सदा उनके अनुगामी रहते थे। जब रामचन्द्र जी वन वो जाने लगे थे, तव ये भी अयोध्या का सारा मुख छोडकर केवल भक्ति और प्रेम- वश उनके नाय हो लिए थे। वन मे ये सदा सब प्रकार से उनकी मेवा किया करते थे। रावण की बहन शूर्पनखा को नाक इन्ही ने काटी थी। जिम समय मारीच सोने के मृग का रूप धरकर पाया था और रामचद्र उसे मारने निकले थे, उस ममय सीता की रक्षा के लिये यही कुटी मे थे। पर पाछे से सीता के बहुत आग्रह करने पर ये रामचद्र का पता लगाने के लिये जगल मे गए। राम-रावण-युद्ध के समय ये बहुत वीरता- पूर्वक लडे थे और मेघनाद का वध इन्होने किया था। उस युद्ध मे ये एक बार शक्ति बाण लगने के कारण मूछित हो गए थे, २ दुर्योधन के पुत्र का नाम । ३ चिह्न । लक्षण । ४ नाग । ५. आख्या । नाम (को०)। ६ सारम । लक्ष्मण-वि० १. चिह्न वा लक्षणो से युक्त । २ जो श्री से युक्त हो । भाग्यशाली। जिसमे शोभा और काति हो। लक्ष्मणा-सशा स्त्री० [सं०] १. मद्र देश के राजा बृहत्सेन की कन्या जो श्रीकृष्ण जी को व्याही थी और उनकी आठ पटरानियो मे से एक थी । २ दुर्योधन की बेटी का नाम । यह कृष्ण के पुम साव की स्त्री थी । ३. एक जडी। विशेष-यह पुत्रदा मानी जाती है। यह जडी पर्वतो पर मिलती है। इसके पत्ते चौडे होते हैं और उनपर लाल चदन की सी बूंदें होती है। इसका वंद सफेद होता है और वही प्रोपवि के काम मे आता है। पर्या-पुत्रकदा। पुत्रका । नागपत्री। जननी। नागिनी । नागाह्वा । मनिका । तुलिनी । ४ श्वेत कटकारी । सफेद भटकटैया (को०)। ५ सारस की मादा वा हसी। लक्ष्मा-सज्ञा पुं० [सं० लक्ष्मन् ] १ दे० 'लक्ष्म' । २. हस या सारस पक्षी । ३ लक्ष्मण [को०] | लक्ष्मी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ हिंदुनो को एक प्रसिद्ध देवी जो विष्णु की पत्नी और धन को अधिष्ठात्री मानी जाती है। विशेष -भिन्न भिन्न पुराणो मे इनके सबंध मे अनेक कथाएं मिलती हैं। इनकी उत्पत्ति के सबध मे प्रसिद्ध है कि देवताओ और दानवो के समुद्र मथने से जो चौदह रल निकले थे, उन्ही में से एक यह भी थीं । इनका वर्ण श्वेन च पक या कवन के समान, कमर बहुत पतली, नितब बहुत विशाल और चार भुजाएं मानी जाती है। यह भी कहा गया है कि ये अत्यत मुंदरी है। और सदा युवती रहती है। ये महालक्ष्मी भी कही जाती हैं और इनकी पूजा अनेक अवमरो पर, विगेपत बनतेरस और दोवाली की रात को होती है। मूर्तियो में ये या तो अकेली बैठी हुई और या क्षारमागर मे साते हुए विष्णु भगवान् के चरण दवाती हुई दिखलाई जाती हैं।