पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लगो ४२४० लग्नसमय लगो-वि० [अ० लगो ] निरर्थक । अर्थहीन | बेकार । असगत । लग का विचार प्राय वालक की जन्मपत्री बनाने, किसी बेतुका [को॰] । प्रकार या गृहर्त निकालने अथवा प्रश्न का नत्तर देने में लगौहाँ-वि० [हिं० लगना+ग्रीहाँ (प्रत्य॰) ] जिमे लगन लगाने होता है। की कामना हो। लगने का प्राकाक्षी। रिझवार । उ० २ ज्योतिष के अनुसार कोई शुभ कार्य करने का मुहूर्त । ३ (क) लगौहीं चितवनि औरहि होति । दुरति न लाख दुराश्रो विवाह का नगर । उ०-कह लग्न गवहि कर परेउ, कोऊ प्रेम झलक की जोति ।-हरिश्च द्र (शब्द०)। (स) पत एक मुहर्न दियाहे ।-मूर (गद०)। ४ विवाह । शादी। सकुचत निधरक फिरी रतियो खोरि तुम्हें न । कहा करो जो , निपान दिन । महानग। ६ वह जो गजानो को जाहिं ये लगें लगौहँ नैन ।-विहारी (शब्द॰) । ग्तुति फरता हो। बंदीजन । मूत। ७ मत्त द्विप | मस्त लग्गता-सशा श्री० दे० 'लागत' । हाथी (को०)। ८ बारह की मन्या क्या या लग्न बारह हात है। शिन | शुभ । भद्र (को०) । लग्गा-सशा पुं० [सं० लगुड ] १ लवा बाँस । २. वृक्षो से फल आदि तोडने का वह लंबा वांस जिसके आगे एफ अकुसी लगी लग्न'-वि० १ लगा हुअा। मिला हुआ । २ लज्जित । परमिंदा । रहती है । लकसी । ३ वह लबा बांस जिसके महारे से पिछले ३ श्रामक। पानी में नाव चलाते हैं। लग्गी । ४ घास या कीचड मादि लग्न-राश पुं० [फा० नगन ] दे० 'लगन' । हटाने का एक प्रकार का फरसा जिसमें दस्ते को जगह एक लग्न - ० [हिं० लगना ] दे० 'लगन'। लवा बांस लगा रहता है। लग्नककरण-सा पं० [सं० लग्नकः मग ] वह ककरण या मगलसूत्र लग्गारे-सचा पुं० [हिं० लगना ] १ कार्य प्रारभ करना । काम मे जो विवाह के पूर्व वर और कन्या के हाथ मे बांधा जाता है। हाथ लगाना । २ मुख्य खिलाडियो की रजामंदी पर अन्य लग्नक-या पुं० [सं०] १ वह जो जमानत करे । प्रतिभू । जामिन । दर्शको द्वारा जूए का दांव लगाना जिनकी हार जीत मुख्य २ एक राग जो हनुमत् के मत से मेघ राग का पुत्र माना खिलासी को हार जीत पर निर्भर करती है । जाताहै। क्रि० प्र.-लगाना। लग्नकाल–राशा पुं० [ म० ] शुभ समय । शुभ पढी। कोई शुभ विशेष—इस पर्थ में इस शब्द का प्रयोग केवल 'लगना' और कार्य, विवाह, यज्ञ आदि करने के लिये निर्धारित शुभ 'लगाना' क्रियामों के साथ ही होता है। लग्गी-सपा खी० [सं० लगुर ] लंगा वास । ८० 'लग्गा'। लग्नकुटली-मशा ग्लो० [सं० लग्नकुण्डली ] फलित ज्योतिष में क्रि० प्र०-मारना ।—लगाना । वह चक्र या कुडली जिसने यह पता चलता है कि किसी लग्गू-वि० [हिं० लगना (= सभोग करना ) ] १ सभोग फरने. के जन्म के समय कौन कौन मे ग्रह किस किस राशि में थे। पाला । २ उपपति । जार । यार । ( बाजार ) । जन्मकुली। यौ० ०-लग्गूबभy जो लगा मझा हो। पिछलग्गू । लग्नग्रह-वि० [सं०] किमी बात पर दृढतापूर्वक भडनेवाला । लग्घड़-सक्षा पुं॰ [देश॰] १ (बडा) बाज । सचान । २ एक प्रकार प्राग्रही (को०] । का चीता जो सामान्य चीते से बड़ा होता है। लग्नदड-सण पुं० [ स० लग्नदण्ड ] गाने या वजाने के ममय स्वर विशेष-इसे शिकार करना सिखाया जाता है । यह प्राय छह के मुख्य अशा या श्रुतियो को आपस मे एक दूसरे से अलग न फुट लबा होता है। इसकी मांखो पर एक जजोर से पट्टियाँ होने देना और सुंदरता से उनका सयोग करना। लाग डोट । वघो रहती हैं। इसी को 'लकड़बग्घा' भी कहते हैं। (मगीत)। लग्घा-सज्ञा पुं० [हिं० लग्गा ] दे० 'लग्गा' । लग्नदिन-मज्ञा पुं० [सं०] १ विवाह के लिये निश्चित दिन । २ लग्घो-सशा स्त्री॰ [हिं० लग्गी ] दे० 'लग्गी' । किसी शुभ कार्य को करने के लिये चुना गया दिन । लग्न'-सज्ञा पु० [ मं० ] १ ज्योतिष मे दिन का उतना अश, जितने लग्नदिवस-सज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'लग्नदिन' (को॰] । मे किसी एक राशि का उदय रहता है। लग्नपत्र-सज्ञा पुं० [ मं० ] वह पतिका जिसमें विवाह भौर उससे विशेष-पृथ्वी दिन रात में एक बार अपनी धुरी पर घूमती है, सबंध रखनेवाले दूसरे कृत्यो का लग्न स्थिर करके व्योरेवार लिखा जाता है। और इस बीच में वह एक बार मेप आदि बारह राशियो को पार करती है। जितने समय तक वह एक राशि में रहती लग्नपत्रिका-सशा स्त्री० [ सं० ] दे० 'लग्नपत्र' । है, उतने समय तक उस राशि का लग्न कहलाता है। लग्नमुहूर्त, लग्नवासर-सझा पुं० [सं०] लग्नदिन । लग्नकाल । शुभ किसो राशि मे उसे कुछ कम समय लगता है और किसी समय (को॰] । मे अधिक । जैसे,—मीन राशि में प्राय पौने चार दड, पन्या लग्नवेला-सशा स्त्री॰ [ स० ] दे० 'लग्नकाल' (को॰] । में प्राय साढ़े पांच दड, और वृश्चिक में प्राय पौने छह, दड । लग्नसमय-सज्ञा पुं० [ सं० ] दे० 'लग्नकाल' (को०)। समय।