पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४८४

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लजना ४२४५ लज्जका गौति बम पिय गुनन दुहिनि दुगुन हुलाम । लवी ससी तन पर्या०-सज्जानतोला । पाहता। रत्तपादी। शमीपत्रा। दीठि करि सगरच सन ज स हाग । --बिहारी (शब्द॰) । म्पृक्का । सदिपश्रिया । सनाचनी । समगी। नमस्कारी। पगारिणी । ममपगा। उदरी। गमालिका । विशेप -'तजा' शद का 'ज' ₹ए समस्त पदो मे ही पाया लज्जिन । पर्णाज्जा । घसरा.बनी। रक्तमूना। ताग्रमूना । जाता है। जो,-ल जवती नारी । स्वगुप्ता । महाभोता । शनी । नौपाच । लजना-- क्रि० अ० [ मे०/लज्ज्] नपाना । गरमाना । लत्रित होना। लजनी@-सग स्त्री० [हिं० नजाना ] १ उजालू का पीवा । २ लजावना-मि० स० [ म० रामा* 'लजावना' या 'लजाना। शरमानेवाली सी। लजानेवाली वा शरमीली ती। उ०- विशेप-ममम्त पद मे किसी शब्द के पागे पाने । इसका अर्थ मन तजि मान मेरी बारी में निहारी नेकु, पीतम बुलावै मग हाता है 'लज्जित करनवाना'। जैस,-मोगा कोटि मनाज लजायन । लीजिए अवाम को। लजनी बनी है अजी रजनी रही न पाधी, सजनी प्रकास गयो रजनी प्रकास की।-नट०, पृ० ८६ । लजावनहार-सज्ञा पुं० [हिं० जाना या लजावन+झर (प्रत्य॰)] लज्जित करनेवाला । शमिता करनेवाला। उ०-काटि मनाज लजवाना-क्रि० स० [हिं० ल जाना ] दूसरे को लजित करना । लजावनहारे ।—तुलसी (शब्द॰) । लजाधुर-वि० [ स० लजाधर ] जो बहुत लजा करे । लजावान् । शर्मीला। लजावना-फ्रि० स० [हिं० लजवाना ] ६० लज राना' । लजियाना@-क्रि० प्र० [हिं० लजाना ] दे० 'नजाना' । लजाधुर' -संज्ञा पुं० लजालू नाम का पौधा । (लबावती)। लजियाना-क्रि० स० दे० 'लजवाना'। लजाना-क्रि० अ० [सं०/लजा ] अपने किसी बुरे या भद्दे व्यव- हार का ध्यान करके दृत्तियो के सकोच का अनुभम होना । शर्म लजीज-वि० [अ० लजीज ] १ रज्जतदार । बा दाट । मुम्वादु । मे पडना । उ०प किसोरी दरस ते सरे लजाने लाल ।- (खाद्य पदार्थ) । २ प्यारा । प्रिय । विहारी (शब्द०)। लजीला-वि० [हिं० लाज+ईला (प्रत्य॰)] [वि० सी० लजोली ] संयो०क्रि०-जाना। जिसमे लजा हो। लजायुक्त । लजाशील । जैसे,—लजीला लजाना-क्रि० स० लजित करना। लजवाना। लजीली । मनुष्य, लजारू-सझा पुं० [सं० लजालू ] लजाघुर । लजालू पौधा । उ०- लजुरी- म० रज्जु, माग० लज्जु ] कुएं से पानी भरने की डोरी । रस्मी। सिर नाइ के ।-तुलसी (शब्द०)। बहुत जल्दी लजिन हो। उ० -- विदित न सनमुख ह मर्क लजालू-सशा पुं० [म० लजालु ] हाथ डेढ हाथ ऊंचा एक कांटेदार छोटा पौधा जिसकी पत्तियां छूने से सुकडकर वद हो जाती है, अंखिया वडी लजो।-रसनिधि (नन्द०)। और फिर थोटी देर मे धीरे धीरे फैलती है। लजोहा-वि० [ स० लजावह] [ वि० सी० लजोही ] जिममे लजा विशेप-इसके उठल का हो, या जिगसे तजा गचित होती हो। लजीना । शाला । रग लाल होता है और महीन महीन पत्तियां शमी या बवून की पनियों के समान एक सीके उ०-गुज भवन गधा मनमोहन । रति पिलाम करि मगन भए शति निरखत नैन लजोहन —सूर (गन्द०)। के दोनो पोर पक्ति मे होती हैं। हाथ लगते ही दोनो योर की पत्तियां समुचित होकर परस्पर मिल जाती है, इसी से इस पौधे लजोना Y 1-वि० [सं० लजानत् ] १ लजावान् । शर्मीला । उ०- फा नाम लजालू पला । इसके फूल गुनावी रग पी गोल गोल लोइन नौने लानत लजीन चलि चलि हंगत ह काननि घुडियो की तरह के होते हैं, जिनके भट जाने पर छोटे छोटे कौन ।- नद० २०, पृ० १२६ । २ प्रागे पोडे मे पटा हुग्रा । चिपटे वीज परते हैं। भारत के गरम भागा मे यह सवय होता हिचकिचाहटवाना। है, जैसे, वगात के दक्षिण भाग मे कही कही बहुत दूर तक लजोहा-वि॰ [ म० लजावह ] [ वि० सी० लजोती ] जिममे लजा रास्ते के दोनो ओर यह लगा मिलता है। हो या जिमोजा मुचित होती हो। जाशीन । लजीला । वैद्यक मे यह य टु, शीतल, पपाय तथा रक्तपित्त, प्रतितार, दाह, शर्मीला । जंगे,- सजाही स्त्री, लजोही प्रास। उ०-में श्रम, एमारा, अण, कुष्ठ कफ तथा योनिरोग को दूर करनेवाला लनचोह मुख फेरि ये जोर, लची चाद चसनि चित मो माना जाता है। गाही फ्ही पथरी को पीगग शात करने जती गई।-गति०1०, पृ० ३२६ । के लिये तथा भगदर अच्छा परने के लिये दमको जउ और टठन लज्ज-नशा को [ मना, तुल० प० जानी] राजा दिनका का काढा घौर पत्तियों का चूर्ण सेवन करते है । रामायनिक भूपण है, प्रिया । प्रियतमा। उ०-(ग) नद बल पिताज परीक्षा से पता चला है जिस पोरे गे सो मे दा माग पाय रिन ना लट्टिय ५६-१० -To, ३० । (ग) नई धातु (टेनीन) होती है। मा. उटन के चूर्ग पा हीरा फलीम परततरही वैन त नृप पार ।-पृ० १०, २०७१। के साथ मिलाने ते बटी अन्धी रवाही बनती है। लनका-सा ग्० [सं०] दनापारा । -सा स्त्री० [ जनक वचन छुए विरवा लजाब के से, वीर रहे सजल सकुचि लजोर-वि० [हिं० लाज + प्रावर (प्रत्य॰) ] लजाशील । जो