पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४८५

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लज्जत ४२४६ लटक' स उ०- लज्जत-मज्ञा सी० [अ० लज्जत ] स्वाद | जायका। मजा। (खाने लज्जावह-वि० [ मै० ] दे० 'लजाप्रद' [को०] । पीने की वस्तुओं के लिये)। लज्जावान्- वि० [सं० लजायत् ] [ वि० सी० लजावती ] लजाशील । लज्जतदार-वि० [अ० लज्ज़त +फा० दार ] स्वादिष्ट । मजेदार । जिममें लजा हो । शर्मदार । हयादार । जायकेदार। लज्जाशील-वि० [ म० ] जिममे लजा हो । जो वात वात मे शरमाता लज्जरी-सञ्ज्ञा सी० [ ] लजालू लता। लजावती। हो । लजीला। लज्जा-सज्ञा ली. [ सं० ] [ वि० लजित ] १ अत करण की वह लज्जाशन्य--वि० [म. ] जिने लजा न हो। जिसे कोई अनुचित या अवस्था जिसमे स्वभावत अथवा अपने किसी भद्दे या बुरे भद्दी बात करते कुछ सकोच या हिचक न हो । बेह्या । आचरण की भावना के कारण त्सरो के सामने वृत्तियां मकुचित लज्जास्पद-वि० [स० ] लजाजनक । उ०—कांग्रस की ऐसी लजा हो जाती हैं, चेष्टा मद पड ज ती है, मुंह से, शब्द नही निकलता स्पद दुर्दशा होगी।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३२५ । मिर नीचा हो जाता है और सामने ताका नही जाता । लाज। लज्जाहीन-वि॰ [ मं• ] लबाशून्य । वेहया। शर्म । हया। लज्जित-वि० [सं०] लजा के वशीभूत । शर्म मे पडा हुआ। पर्या०-ह्री। अपा । व्रीडा | मदास्य । शर्माया हुआ। क्रि० प्र०-करना । —होना । लज्जिनी, लज्जिरी--सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] लजारू । लजालू (को०] । मुहा०-(किसी बात की) लजा करना = किसी बात की वडाई लज्जी-राज्ञा स्त्री० [ सं० लज्जा ] प्रिया । लज्जाशील प्रियतमा । की रक्षा का ध्यान करना । मर्यादा का विचार करना । इजत (क) फिरि वुल्ली लज्जी मुनहि हो मडन तन वीर ।- का ख्याल करना । जैस,-अपने कुल की लजा करो। पृ० रा०, २५१७३२ । (ख)तू लज्जी मो मथ्य है दान खग्ग अरु २ मान मर्यादा । पत । इनत । जैसे,-भगवान् लजा रखे । रूप ।-पृ० रा०, २५१७३४ । (ग) सुन रे 4 लज्जी चवै हूँ क्रि० प्र०-रखना। मंडन नर लोइ ।-पृ० रा०, २५६७३५ । ३ लज्जालु लता । लजाधुर का पौधा (को॰) । लज्या-सा सी० [ स०] दे० 'लज्जा'। उ०-भृग संग्या करि लन्नाकर-वि० [सं०] [ वि० सी० लजाकरा, लजाकरी] दे० 'लजा कहत सकल कुल लज्या लोपी। नद० प्र०, पृ० १८६ । प्रद' [को०] । लटग-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का बांस जो वरमा मे होता है। लज्जाकुल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० लजा+प्राकुल ] लजा से व्याकुल । लट-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० लट्वा (= घुघराले केश) ] १ मिर के वालो लजाभिभूत । शर्म मे गहा । उ०-खुलने स्तवको की लजाकुल, का समूह जो नीचे तक लटके । वालो का गिरा हुआ गुज्छा । नत वदना मधुमाधवी अतुल ।-अपरा, पृ० १४८ । के पाश । अलक । केशलता । लज्जाकृति-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] कृत्रिम मान मर्यादा या लजा । दिखा मुहा०-लट छिटकाना - सिर के बालो को खोलकर इधर उधर वटी लजा [को०)। बिखराना। लज्जान्वित-वि० [सं०] हयादार । सकोची स्वभाव का । शर्मदार [को॰] । २ एक मे उलझे हुए वाली का गुच्चा । परम्पर चिमटे हुए वाल । लज्जापयिता-वि० [ स० ] दे० 'लञाप्रद' [को०] । मुहा०-लट पडना = बालो का परस्पर उलझ या चिरट जाना । लज्जाप्रद-वि० [सं०] जिसमे लजा उत्पन्न हो । लजाजनक । ३ एक प्रकार का बेंत जो प्रामाम को पार बहुत होता है। ४ लन्नाप्राया सचा सी.] स० ] केशव के अनुसार मुग्धा नायिका के एक प्रकार के सूत के से महीन कोडे जो मनुष्य की प्रांतो मे चार भेदों में से एक। पड जाते हैं और मल के साथ निकलते है । चनूना । लज्जारहित-वि० [ सं० ] निर्लज । लज्जाशून्य (को॰] । लट'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लपट लपट । लो । अग्निशिखा । ज्वाला। लज्जारुण-वि० [ स० तना+ अरुण] लज्जा मे अभिभूत । शर्म के मारे उ०—(क) झाट झपटत लपट, पटकि फूल फूटत, फल चकि लट लटलि द्रुम नवायो।-सूर ( शब्द०)। (ग्व) चट पट सुर्ख । उ०-प्रणय सुग हो, हृदय भरा हो, लजारुण मुख हो प्रतिबिवित । पी अधरामृत हो मृत जीवित, प्रीति सुरा भर, बोलहिं वास बहु सिख लट लागि प्रकास । -गोपाल (शब्द०)। प्रीति सुरा नित ।-मधुज्वाल, पृ० ३ । लट २-सा पुं० [ म० ] १ मूर्ख। बुद्धिहीन । २. दोप। गलती। ऐव । ३ डाकू । बटमार (को०] । लज्जालु-सचा पृ० [ सं० ] लजालू का पौधा । लाजवती। लटक'-सचा स्त्री० [हिं० लटकना] १ लटकने की क्रिया या भाव । लज्जावत'- वि० [सं० लजावत् ] गर्मीला । लबायुक्त । लजीला । नीचे की ओर गिरता सा रहने का भाव । २ मुकाव । लचक । लज्जावत'-सज्ञा पुं० लजालू का पौवा । लाजवती। ३ अगो की मनोहर गति या चेप्टा । लुभावनी चाल । अग- लन्नावती'-वि० स्त्री० [सं० ] लजाशील। शर्मीला । उ०-सुसयत भगो। उ०—प्राणनाथ सो प्राणपियारी प्राण लटक सो लोन्ह । सकुसुम केशपाश मुशीला लजावती ।-वर्ण०, पृ०६। -सूर (शब्द०)। लन्नावती-सशा स्त्री० लजालू का पौधा । ०-लटक चाल।