पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४८७

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। उ०- लटा ४२४८ लटकू झूमता हुा । बल खाता हुप्रा । लचकदार | जमे,--टीली धौत ना नगि पजन, चरत लटपटी पार ।-गुर (गन्द०)। चाल। २ जोठीचा T "न के सारण होता होवर नीचे की लटकू--सज्ञा पुं० [ देश ] एक प्रकार का पेड जिपको घारमा आ ग्रो ग--71711 डोनाहाना । जा तुम्न और दान नने से रग निकलता है। 7 "i! T971 friTL 11171 TTI Jo लटपटा पानी निाग - 17 गमगात ।-पुर लटकौआ, लटकौवा-वि० [हिं० लटकना ] लटकनेवाला। जो लटकता हो। (7.)। (7) T-पटी पाग पर गायन या STITI - यौ-लटकौवा मालखभ = वह मालसम जिसको लकडी गडा न हर (२०)। ३ (प्रादि) जा पाट या ठण नागना। हवा पाटा। उ० - ज्या ज्या वनाति रहकर ऊपर से लटकाई रहती है। वन-पटे - माता। व्यास (पद०)। जाऊक लटजारा--सञ्ज्ञा पुं० [सं० लट् = लट ? )+ हिं० जीरा ] १ प्रा1 नायिा। अपर पटगर।" यार अपामार्ग । चिचडा। २ एक प्रकार का जदहन धान जा गि "पा। गया। प्रा। 217। उ०-तेरे मुंह अगहन मे तैयार होता है और जिसका चावन बहुत दिनो तक के. मायानमार नटे लटपटेन साकौन परिगहगो।- रहता है। मी (ग२०)। लटना'-क्रि० अ० [ स० लड (= हिलना डोलना) 1 १ थाकर गिर लटपटा - १ मानी तर गाटा हा। जोन पानी पी जाना । लहखडाना। उ-मर्कट विकट भट जुटन ग्टन, न नगर पना गावात अधिक गादा । तुटपुटा । जगे,-- लटत तन जर्जर भए । —तुलसी (शब्द॰) । नस्पती तमा।। - मोजा पा । गिजा प्रा। मतादना संयो॰ क्रि०—जाना। उ०-लटे तन जात किते छत जात । पा। जावर उप प्रा हो, साफ या वराव न -सूदन (शब्द०)। राजाम मिान या निट पटा हो। ( फारसा उपादि)। २ श्रम, रोग प्रादि से शिथिल होना । अशक्त होना । दुरता 30-गि साटन ट टारा गारी चोट चटपटा और कमजोर होना । जैसे,—आजकल वे बीमारी से बहुत अटपटी या अटो।--- (गः०) । लट गए - (क) श्री रघुबीर, निवारिए पीर रही लटपटान- । [f-० तटपटाना ] १ नटपटान को क्रिया या दरवार परो लटि लूलो। तुलसी (शब्द०)। (ब) तेरे भाय । लाहट।२ मनाहर गति या चाल । उटर । लचक । मुह फेरे मोने कायर कपूत कूर लटे लटपटेनि को फोन परि- लटपटाना'-'प्र० २० [म. न (=हिला गेलना ) + पत् गहैगो ।—तुलसी (शब्द०)। (ग) कटो फटीली काति ५, (= गिना) ] १. ती ग न कर निर्धनता या मद लटी लटी अति जाय |-रामसहाय (शब्द०)। ३ ढोला श्रादि के लारगर उघर मा भुक परना। गिरना पन्ना । पडना। मद पडना। शक्ति और उत्साह से रहित होना। नसाना। उ०-करत पिचार चल्यो मम्मुस ब्रज । उ०-देखि भीरु लट लगे, मन मन घट लगे, पाथे पग हट लटर पग परनि परत गज । -गूर (गन्द०)। लगे, क्रम क्रम नट लगे ।-गोपाल (शब्द०)। ५ श्रम ते सयो० क्रि०--जाना। निकम्मा हो जाना । अधिक काम करने के योग्य न रह जाना। २ स्थिर न रहना। जमा न रहना । डिगना। विचलित होना । शिथिल होना। थक जाना। उ०-रटत रटत रसना लटी ३ ठीक तरह से न चलना । गुत होना । चूक जाना । जैसे,- तृषा सूसिगे अग।- तुलसी (शब्द०)। ५ व्याकुल होना । पर नटपटाना, जीम सटाना। उ.-फटे फन फनि के भो लटे दिगदती दोह, घटे बल लटपटाना-क्रि० प्र० [ सं० ला, 15 (= लुभाना)] १. लुभाना । कूरम विकलता का पाई है। -रघुनाथ (शब्द०)। माहित होना। उc-श्री दरदा के स्वापो स्पामा कुज- लटना- क्रि० अ० [ स० लल, लह (= ललचाना)] १ ललचाना । विहारी लटपटाइ रहे गान गर्व सुप चन ।-हरिदास लेने के लिये लपकना। चाह करना। लुभाना । उ०-परिहरि (शद )। २ जीन होना । लिप्त होना । अनुरक होना । सुरमनि सुनाम गुंजा लखि लटत ।-तुलसी (शब्द०)। २ लटपटानि-सा पी० [हिं. टाटाना] १ २० 'लट पटान' । २ लिप्त होना। अनुरक्त होना । प्रेमपूर्वफ तत्पर होना। लीन मनोहर गति या चार चक । स्टक । उ०-श्री हरिदाम के होना । उ०-(क) उलटि तहाँ पग धारिए जामो मन मान्यो। स्यामी त्यामा फुज वटारी ने रात रग लटपटानि के भेद न्यारे छपद कज ताज वेलि सो लटि लटि प्रेम न जान्यो।-पूर न्यारे जरो पानी में नो नरीच । हरिदाम (शब्द॰) । (शब्द॰) । (ख) किन विमोह लटा फटो गगन मगन सियत। लटपर्ण-सज्ञा पुं० [सं०] दारगिता । यो दारचोनी [को॰] । -तुलसी (शब्द०)। लटभ-वि० [ मं० ] मुE [0] | लटपट- वि० [हिं० लट+ (अनुकणात्मकभिन्यव्यजन द्वित्व पट ] दे० लटह-वि० [ से०, प्रा० ] सुरगुरग्रत [को०] । 'लटपटा'। लेटा। -० [सं० लट्ट ] [ वि० सी० लटो ] १ लोलुप । तरट । लटपटा'-वि० [हि० लटपटाना ] [ वि० सी० लटपटी । १ गिरता २ नुन्या। ३ तुन्च। हीन । ४ गिरा हुग्रा। पडता। लडखडाता हुआ। निर्बलता या मद श्रादि के कारण पतित। ५ बुग। स्राव। उ०—जग मे करो जो न त इधर उधरं झुकता हुा । 1 से, लटपटी चाल । उ०-घूरि मान । नीको फरी, लटो उर माने ।-नाल (शब्द॰) । नचा