पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४८८

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लह गॅवार (शब्द०।। ल- लेटापटी लटापटी-सज्ञा स्त्री० [हिं० लट पटाना ] १ लटपटाने की क्रिया विशेष- इसकी पत्तियाँ गोल गोल और फल वेर के से होते हैं । या भाव । २ लडाई झगडा । भिडन । उ०-नटापटी होवन यह वसत मे पत्तियां झाडता है और भारतवर्ष में प्राय. सर्वत्र लगी मोहि जुदा करि देहु ।-गिरधर (शब्द॰) । होता है । फलो मे बहुत मा लसदार गूदा होता है। इसका लटापोटg+-वि० [हिं० लोटपोट ] लोटपोट । मोहित । मुग्ध । फल औषध के काम मे पाता है और सूखी खांसी को ढीली करने के लिये दिया जाता है। फारसी मे इसे 'मपिरता' कहते उ०-अटकि मुबारक मति गई लूटि मुखन की मोट । लटापोट ह लपटि गो लटकत लट की प्रोट । --मुवारक (शब्द०)। है, और हकीम लोग मिस्री मिलाकर इसका 'लऊक मपिस्ता' नामक अवलेह बनाते हैं और खांसी मे चाटने के लिये देते हैं । लटिया सज्ञा स्त्री० [हिं० लट] सूत आदि का लच्छा । लज्यो । प्रांटी। सस्कृत मे भी इसे 'श्लेष्मातक' कहते है। मुहा०-लटिया करना= सुत को लपेटकर आटी या लच्छे के रूप लटोरा -सशा पुं० [देश॰] दस इच के करीब लबा एक भारतीय पक्षी । मे करना। विशप-इसकी गरदन और मुंह काला, डैने नीलापन लिए हुए भूरे लटियासन-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लट + मन ] पटसन । ओर दुम काली होती है। इसकी लवाई दस इच होतो है । लटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लटा ( = बुरा)] १ वुरी वात । २ झूठी यह भारत मे स्थायी रूप से रहता है और प्राय मैदानो मे ही बात । गप । पाया जाता है। यह तीन से छह तक अडे देता है। इसके मुहा०-लटी मारना = गप हॉकना । सीटना । झूठी बात कहना । कई भेद होते है । जैसे,—मटिया, कजला, खरखला । ३. साधुनी । भक्तिन । ४ वेश्या । रडी। लट्ट - सज्ञा पु० [सं० ] दुष्ट आदमी । दुर्जन । लटी-वि० [सं० लट्ट ] दे० 'लटा' । लट्ट पट्ट -वि॰ [ अनु० ] दे० 'लयपय' । उ०-प्रेम रग लट्ट पट्ट पावै लटुआ - सज्ञा पुं० [सं० लुठन या लुण्ठन] दे० 'लट्ट'। उ०- नटुआ जाय झट्ट पट्ट देववृ द देखे परै मानो नट्ट वट्ट है।-रघुराज लौ प्रभु कर गहै निगुनी गुन लपटाय । वहै गुनी कर ते छुटै निगुनीय ह जाय ।-बिहारी (शब्द॰) । -सञ्ज्ञा पुं० [ स० लुठन (= लुढकना) ] गोल ब? के प्राकार का लटुक-सञ्ज्ञा पु० [ स० लकुच ] लकुट नाम का पेड और उसका फल । एक खिलौना जिसे लपेटे हुए सूत के द्वारा जमीन पर फेंककर लडके नचाते हैं। विशेष दे० 'लकुट' या 'लुकाट' । विशेष-इसके बीच मे लोहे को एक कोल जडी होती है, जिसे लटुरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लट + उरी (प्रत्य॰) ] दे० 'लटूरी' । उ०- 'गूंज' कहते हैं। इसमे डोरी लपेटकर विशेप ढग से जोर से लटकन ललित लटुरियाँ मसि विदु गोरोचन । —सूर (शब्द०)। फेंकते है, जिससे यह बहुत देर तक चक्कर खाता हुआ घूमता लटू-सज्ञा पुं० [सं० लुठन ] दे० 'लट्टू' । उ०—(क) चार चकई त रहता है। घुनघुना लटू कचन को खेलि घरे लाल बाल ससन नुलाय रे । कि० प्र०-नचाना ।-फिराना। -दीनदयाल (शब्द०)। (ख) रन औरत रटू को करम रथ, होत छट्को सत्रु उर ।- गोपाल (शब्द॰) । मुहा० - (किसी पर) लट्ट होना = दे० 'लटू' शब्द का मुहावरा । मुहा०- (किसी पर) लटू होना = (१) मोहित होना । प्रामक्त यौ०-लटूदार = (१) लट्टू के आकार के समान । लट्टू जमा । होना । लुभाना । अाशिक होना । उ०—(क) हम तो रीझि लटू (२) लट्टू से युक्त । उ०-कतीदार, लटूदार या.. भई लालन महाप्रेम तिय जाति ।-मूर (शब्द॰) । (ख) रही -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २०७ । लह ह लाल ही लखि वह वाल अनूप । -विहारी (शब्द०)। लटूदार पगड़ी-सज्ञा स्त्री० [हिं० लदार+पगडी ] एक प्रकार (ग) ब्याह ही ते भए कान्ह लटू तब ह है कहा जब होयगो की पगडी जिसके ऊपर एक गोला सा बना होता है और गौना ?-पद्माकर (शब्द॰) । (२) चाह मे हैरान होना । प्राप्ति श्राो छज्जा सा भी निकला होता है। इसे छज्जेदार पगडी के लिये उत्कठित होना । उ०-जा सुख की लालमा लहू सिव भी कहते है। सनकादि उदासी ।-तुलसी (शब्द०)। लठ्ठ-सशा पु० [सं० यष्ठि, प्रा० लट्ठ] वडी लाठी । मोटा लगा दडा । लटूरा -सचा पुं० [हिं० लट्टू ] कुप्पा । क्रि० प्र०-चलाना 1-मारना। लदरी-सञ्चा स्त्री० [हिं० लट ] सर के बालो का लटकता हुग्रा यौ०- लट्ठर्गवार । लट्ठवद । लट्ठवाज । लट्ठपाजी । लट्ठमार । गुच्छा । केश । अलक । उ०-लटकन लसत ललाट लटूरी। मुहा०-किसी व्यक्त या वस्तु के पीछे लट्ठ लए फिरना = किमी दमकति द्वंद्व दंतुरेयां रूरी। -तुलसी (शब्द॰) । का बरावर विरोच करना। किमी वस्तु के प्रतिकूल प्राचरण लटेरा-सञ्ज्ञा पुं० [हि० लटजीरा या दश० ] एक प्रकार का धान करना । जैसे,-तुम तो अक्ल के पीछ लट्ठ लिए फिरते हा । जिसका स्वाद बहुत अच्छा होता है। लठ्ठ गॅवार-वि० [हिं० लट्ठ + गंवार ] महामूर्ख। उजह । उ० - आज विनय ने जितनी वातें की, उतनी शायद और कभी न की लटोरा'-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लट(= चिपचिपाहट)] एक प्रकार का थी, और भी नायकराम जैसे लट्ठगवार से ।-रगभूमि, भा० छोटा पेड़ । श्लेष्मातक । सपिस्तां । लिटोरा । लिसोड़ा। २.१० ६५४ ।