पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४९३

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1 O लताकुंज ४२३४ लतामाधन लताकुज-पशा पुं० [सं० लताकुन्ज ] लतानो से छाया हुप्रा म्यान । नजाकत । २ शोभा । लालित्य । मुदग्ना। उ-जन्ही एक उ०-लताकुज मे ग्धुप पुज के 'गुन गुन गुन' गुजन मे ।- महसूच महतार ने, लताफन मे तिमन निधन प्राब मे।- अनामिका, पृ० २६ । दक्खिनी, पृ० ७.। ३ बारीका। नूमता (को०)। ४ लतागण-सज्ञा पुं० [स०] वैद्यक मे सूत या डोरी के रुप म फलने स्वच्छना । शुद्धता (को०)। " नवीनता (को०)। ६ भाय यी वाले पौवो का वर्ग गभीरता (को०)। विशेप इस वर्ग के प्रतर्गत ये पौने है-पान, गुर्च, सोमवल्ली, लताफल-शा ० [ म.] पटोल । परम। विष्णुकाता, स्वर्णवल्ली हडसहारी, ब्रह्मदडी, श्राकाशवेल, लतोभद्रा-सा पुं० म० ] भद्रा या मद्राली नाम की एक वटपत्री, हिंगुपत्री, वशपत्री, बृहनला, अर्कपुष्पी, सर्पाक्षी, गूमा, लता [को०] । मूसाकानी, पोई, मोरणिग्वा, वववल्लो, क-कलता (नागकेमर), लताभवन-पज्ञा पुं० [सं०] नताप्रा रा युज । लतागृह । उ०- जाती और माधवी। लताभवन तें प्रगट नए तेहि अबसर दाउ भार । निकने जनु जुग लतागुल्म सना पुं० [सं० ] लतानो का झुरमुट । उ०—पेड, पौदे, विमल पिधु जलद पटल विलगाइ ।--तुनमी (गन्द०)। लतागुल्म आदि भी इसी प्रकार कुछ भावो या तथ्यो की व्यजना लतामटप-मज्ञा पुं० [ से० लतामण्डप ] छाई हुई लतानी से बना करते हैं।-रस०, पृ० १६ । हुप्रा मडप या घर। लतागृह-सञ्ज्ञा सज्ञा [ सं० ] नतानो मे महप की तरह छाया हुआ लतामडल-सका पु[ १० लतामएट छाई हुई नतामों का घेरा स्थान । लताकुज। या कुज। लताजिह्व-सज्ञा पुं॰ [ .] सर्प । सांप। लतामणि-सहा ० [सं० ] प्रवाल । मूंगा। लताड-सशा स्त्री॰ [हिं० लथाड ] दे० लथाढ' । लतामरत्-राग पुं० [सं०] पृथा। मुहा०-लताड बताना = भर्त्सना करना । झिड पियाँ सुनाना । लतामृग-सरा पुं० [सं० ] शाखामृग । वानर । वदर (को०) । उ०-प्रलकार प्रेमियो को लताड वताकर शुक्ल जी ने उन्हे लतायष्टि-सज्ञा पी० [सं०] मजिठा । मजीठ । सावधान कर दिया है कि हैमियत से वाहर न बोला करें। लतायावक-मपा पुं० [ मं०] १ प्रवाल । मूंगा। २ फनसा । -प्राचार्य०, पृ० १३५ । अकुर [को०)। लताड़ना-क्रि० स० [हिं० लात ] १ पैरो से कुचलना। रांदना । लतारद-सग पुं० [सं० ] हस्ती। हाथी [को०] । २ लातो से मारना। ३ हंगन करना। श्रम में शिथिल लतारसन-सरा मुं० [स० ] लताजिह्न । सर्प (को०] । करना । यकाना । ४ फटकारना। झिडकी सुनाना। ५ लेटे लता-सरा पुं० [ मं० ] प्याज का पौधा । हरा प्याज । हुए आदमी के शरीर पर खड़े होकर घोरे धीरे इधर उधर चलना, जिससे उसके बदन की थकावट दूर होती है। लतालक-सा पुं० [ म० ] हाथी । (पश्चिम)। लतावलय-सरा पुं० [सं० ] लता ज । लतागृह [को०] । लतातरु-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ नार गी का पेड । २ ताड का पेड। लतावृक्ष-सशश पुं० [सं०] १ शल्लको । सलई का पेड। २ नारियल ३ शाल या साखू का पेड़। का वृक्ष (को०)। लताताल-सशा पुं० [ स० ] हिताल वृक्ष । लतावष्ट-सज्ञा पुं० [सं०] १ कागशाब मे मोलह प्रकार के रति- लताम-मञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] दे० 'लतानह' । बंधो मे से तीमरा । २ एक पर्वत जो द्वारकापुरी से दक्षिण को पोर पडता है । ( हरिवश )। लतानन-सज्ञा पुं० [ सं० ] नाचने मे हाथ हिलाने का एक ढग । लतावेष्टन-सा पु० [स० ] एक प्रकार का प्रालिंगन । बैठे हुए प्रिय लतापती-सक्षा पु० [सं० लतापत्र ] १ लता और पत्त । पेह पत्ते। का लेटी हुई प्रिया द्वारा प्रानिंगन । पेहो और पौधों का समूह । २ पौधो की हरियाली । ३ जडी बूटी । जैसे,—गांव के लोग लतापता से दवा कर लेते हैं। लतावेष्टित-वि० [सं०] लताओं से घिरा हुप्रा या पाच्छादित [को०] । लतावेतक-II सं० [सं० ] दे० 'लतानेटन' [को०] । लतापनस-सा पुं० [ ] तरवूज । कलीदा। लताप-समा पुं० [सं०] विष्णु । लत शकुतरु-सज्ञा पुं॰ [ सं० लताशझुनरु ] लताशख वृक्ष (को०] । लतापर्णी -सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ तालमूला । २ मरिका । मेउडी। लताशख-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लताशङ्ख ] शाल या माखू का पेड। लतासाधन-सा पुं० [सं०] तत्र या वाममार्ग को एक सायना लतापाश-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] लता का झापस या समूह । लतानो का जिसका प्रवान अधिकरण लता या स्त्री है। जाल। विशेप-समे महारामि (शिवरात्रि ) के दिन एक रजस्वला सी लताप्रवान-सशा पुं० [सं० ] लता के रेशे या ततु किो०] । को लेकर उसके योनिदेश पर इष्टदेव का पूजन और जप लताफत-सज्ञा स्त्री० [अ० लताफ्त ] १. कोमलता । २ मृदुलता। करते है। स० स० .