पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०

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३८० २ मर्दुमी मर्मवि वालो का नाम, प्रायु, धर्म, जाति, शिक्षा, भाषा, व्यापार उ०-(क) कुद इंदु मम देह उमारमण करना अयन । जाहि दीन प्रादि का विवरण लिसा जाता है। पर नेह करहु कृपा मन मयन । - तु नसी (शब्द०)। पिन २. किसी स्थान मे रहनेवाले मनुष्यो की मम्या। जनमल्या । गजपति मईन प्रवल सिंह पीजरा दीन । -हरिश्चद्र (शब्द॰) । मावादी। मई ल-मज्ञा पु० [सं० ] प्राचीन काल का मृदग की तरह का एक मर्दुमी-सक्षा स्त्री॰ [फा०] १ मरदानगी । पौम्प । वीरता । २ पुसत्व । प्रकार का वाजा। क्रि० प्र०-दिखलाना । -रसन।। विशेप- इस वाजे का उल्लेख महाभारत में है और प्राजान मर्दूद-वि० [फा० ] दे॰ 'मरदूद' । उ०-कान मद कह सकता इसका प्रचार बंगाल में पाया जाता है, जहा यह विभपकर है। -सैर कु०, पृ० १२ । मृतको की अर्थी के माय मथवा हारकीर्तन प्रादि के समय मर्द आदमो- वजाया जाता है । -मज्ञा पु० [फा० ] शरीफ वा सज्जन व्यक्ति । मर्देखुदा-सज्ञा पु० [ फा० मर्देखुदा ] पवित्रात्मा । भक्त । उ०-- मदित-वि० [सं०] १ जो मन किया गया हो । मनापा मगना नाम अपना जब मुने मसुदा । किए दिल मे यहाँ तो में रुसवा हुआ । २ टुकड टुकड़े किया हुआ । ३ नष्ट किया हुआ । हुआ।-दक्खिनी०, पृ० २०३ । मर्म-सज्ञा पु० [ म० मर्म या मम्मन् ] १. स्वरूप । २ रहस्य । तत्व । भद। मर्दे पीर- वि० [ फा० मर्द + पीर ] पवित्रात्मा । फकीर । उ०- राह मे एक बुजुर्ग म पीर मियाँ साहब मिले ।-प्रेमधन०, भा० २, क्रि० प्र०-देना ।-पाना ।-लेना। पृ० २०३। यो०-मर्मज्ञ । मई -सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] दे० 'मर्द। ३. सविस्थान । '४ प्राणिया के शरीर में वह स्थान जहाँ मईक-वि० [सं०] १. मर्दन करनेवाला । मर्दनकारक । आघात पहुचने से प्राधक वदना हाता है। दवानेवाला । तिरोभावक । विशप-वंद्यक मे माम, शिरा, स्नायु, पास्य मार माप के मईन'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [ वि० मर्दित ] १. कुचलना। रीदना । सान्नपात स्थान का मर्म माना गया ह भोर वहा प्राणा का उ०--भगवान कर, इस दरवार मे तुझे वहा मिल जो महादेव निवासस्थान निखा गया है। प्रति, स्थान पार परिणाम जो के सिर पर है और तुझे वह शास्त्र पढाया जाय जो भेद से मर्म पाच प्रकार के हाते है और कुल मर्मा का गरया काँटो को मन करता है।-हरिश्चद्र (शब्द०)। २. दूसरे १०७ मानो गई है। प्रकृति के विचार में मर्ग का मल्या इस के अगो पर अपने हाथो से बलपूर्वक रगडना । मलना । जमे,- प्रकार है-मास मम ११, अस्थि मर्म ८, सपि मम २०, तेल मर्दन करना । उ०—(क) तेल लगाइ कियो रुचि मईन स्नायु मर्म २७ पौर शिरा मर्म ४१ । स्थान के विचार से वस्त्रादिक रुचि रुचि धाए । तिलक बनाइ चले स्वामी ह्र ममा की सख्या इस प्रकार है--साकय (मक्य ) या परी विषयनि के मुख जोए ।—सूर (शब्द०)। (ख) हरि मिलन मे २२, भुजामा म २२ उर और वृक्ष म १२, पृष्ठ म सुदामा प्रायो। विधि कार अरघ पावड़े दीन्ह अतर प्रेम १४ तथा ग्रावा और ऊध्र्व भाग मे ३७ । पारणामक निचार त बढायो। पादर बहुत कियो यादवपति मन करि अन्हवायो। ममा का मख्या इस प्रकार है-सद्य. प्राणहा १६, कानातर चोवा चदन और कुमकुमा परिमल भग चढायो ।—सूर मारक ३., वैकल्पकारक ४४, रजाकारक मौर विशल्पन। (शब्द०)। (ग) पादपद्य निति मन करई । तन छाया मम यो-ममच्छेदन । मर्मप्रहार । ममभेदक । मर्मभेदी । मर्मवचन । निति भनुमरई ।-श. दि० (शब्द०)। ३. तेल, उबटन मर्मस्पर्शी। आदि शरीर मे लगाना। मलना । उ०-भाव दियो पावेंगे मर्मकील-सा पु० [ ] स्वामी । गोहर । पति [फे०] । श्याम । मग मग भाभूषण माजति राजति भपन धाम । राते ममग-वि० [स० ] मत्यत तीक्ष्ण वा ताव । ममभेदा । परतुद । रण जानि अनग नृपात मो पाप नृपति राजति बल जोरति । ममघाती-० [३० मर्मघातिन् ] मर्म पर घाट पहचानवाना। अति सुगध मद्दन अंग अंग ठनि वान वान भूपन भेपात । मत्यत पाडादनवाला (०। -सूर (शब्द०)। ४ दद्व युद्ध में एक मल्ल का दूसरे मल्ल मर्मन-वि० [ म० ] अत्याधक कष्टकर [को०] । की गर्दन प्रादि पर हाथा से घस्सा लगाना। घस्सा। उ०- प्राकर्पण मन भुजवधन । दाव करत भे कर धार कधन । ममचर-नशा पु० [ म० ] हृदय । -गोपाल (शब्द०)। ५ व्वस । नाश । उ०-जेहि शर ममाच्छद-वि० [१०] ८० 'ममन्दी'। मधुमद मद्दि महामुर मद्दन कीन्हो । मारघो कर्कश नरक शख मर्मच्छदक-वि० [ 10 ] गगनदक । मर्म माना। हान शख मुलान्हा । -पशव (शब्द०)। ६. रमेश्वरदशन ममन्ददन-सरा पुं० [मु.] १. प्राणघातन । जान ना। २. के अनुसार अठारह प्रकार के समस्कारा म दूसरा सस्कार । प्राधक कष्ट देना । वत नताना । इसमे पारे प्रादि का प्रापथियो क साथ खरल करते या घोटते मर्मच्छेदी-वि० [ है. ममलेदिन् ] प्राणघातक । मन्यंत यष्ट- है। घोटना । ७. पाटना । रगरना । पर हो०)। मान-वि० [वि. मा. मनी ] नाशक । विनायक । महारपः । मर्मछवि-51 स. [ म• मर्म+चि ] नुदर म। वह पिया . म०