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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०६

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प्रेमिका। ललीतिका ४२६७ लवण जनक लली। ३ नायिका के लिये प्यार का शब्द । प्रेयसी। की एक बंगला मिठाई जिसमे ऊपर से एक लौंग खोसा हुआ होता है और जिसके अंदर कुछ मेवे और मसाले आदि भरे होते है। ललीतका-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] एक प्राचीन तीर्थ । ( महाभारत )। ललौहॉ-वि० [हिं० लाल +ौहाँ (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० ललीही ] लवंगादि चूर्ण-सज्ञा पुं० [ स० लवङ्गादि चूर्ण ] वंद्यक मे ए प्रसिद्ध सुर्यो मायल । ललाई लए हुए । उ०-लाल लिलार लला को चूर्ण जो सग्रहणी, अतिसार प्रादि मे दिया जाता है । लखे गए लोचन हललना के ललो है।-(शब्द०)। विशेष-लौंग, मोथा, मोचरस, जीरा, धाय के फूल, लोध, इद्रजौ, लल्लर-वि० [सं०] हकला हकलाकर वोलनवाला [को०] । सुगधवाला, जवाखार, सेंधा नमक और रसाजन वरावर लेकर पीम डाला जाता है। इसकी मात्रा दस रत्ती से बीस रत्ती लल्ला सभा पु० [हिं० लाल, लला ] [ मालल्ला ] १ लहके या वेटे के लिये प्यार का शब्द । (पाश्चम)। २. दुलारा लड़का । तक है। लल्लो-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ल ना] जीभ । जिह्वा । जवान । लवगादि वटी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० लवङ्गादि वटी ] वैद्यक मे लवग के योग के निर्मित एक गोली । लल्लो चप्पो-संज्ञा स्त्रा० [सं० लल (= जीभ इधर उधर डोलना)+ लव-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ बहुत थोडी मात्रा । बहुत छोटी मिकदार । अनु० चप ] चिकना चुपड़ी बात जो कवल किसी का प्रसन्न अत्यत अल्प परिमाण । करने के लिये कही जाय । ठकुरसुहाती। मुहा०-लवभर थोडा सा नाम मात्र को क्रि० प्र०- करना । —होना । जैसे,—उसे लव भर भी डर नहीं है। लल्लो पत्तो- सज्ञा स्त्री० [सं० लल + पत ] दे० 'लल्लो चप्पो' । २ काल का एक मान । दो काष्ठा अर्थात् छत्तीस निमेप का अल्प उ०—(क) तुमको हमारे कार कुछ शक है, तो इसमे लल्लो समय । (कुछ लोग एक निमेष के आठवें भाग को लव मानते पत्तो काहे का है ? -बालकृष्ण भट्ट (शब्द०)। (ख) लल्ला हैं )। उ०-लव निमेष परिमान जुग वर्ष कल्पसत चड। - पत्तो और जाहिरदारी इसे पाती हा न थी।-बालकृष्ण भट्ट तुलसी (शब्द०)। ३ लवा नाम की चिडिया। ४ जातीफल । (शब्द०)। ५. लवग। ६ लामज्जक। ज्वराकुश नाम का तृण। ७. लल्लू लाल-सच्चा पुं० [हिं० ] हिंदी गद्य के प्रारभिक लेखको मे काटना । छेदना । कटाई । ८ विनाश । ६. ऊन, बाल या पर प्रमुख लेखक । इनका समय सन् १८२० से १८८५ तक है। जो पशु पक्षियो के शरीर से कतर कर निकाले जाते हैं। १० हिंदी गद्य मे प्रेमसागर, बंताल पचीसी, माधवविलास, सिंहासन सुरागाय की पूंछ के बाल, जो चवर बनाने के लिये कतरे जाते वतीसी आदि इनकी रचनाएं है। हैं । ११. श्रीरामचद्र के दो यमज पुत्रो मे से एक । लल्हरा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक पौधा या घास जिसका साग खाया बिशष-जब लोकापवाद के कारण राम ने सीता जी को गर्भा- जाता है। वस्था मे वन मे भेजवा दिया था, तब वही वाल्माकि के अाश्रम लवंक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लवङ्क ] एक प्रकार का वृक्ष [को०] । 'मे लव और कुश इन दो जोड् एं पुत्रो की उत्पत्ति हुई थी। लवग-सञ्ज्ञा पु० [ स० लवङ्ग १ मलक्का द्वीप, जजिबार तथा वाल्मीकि ऋपि ने इन्हे रामायण का गान सिखा दिया था। दक्षिण भारत मे होनेवाला एक पेड जिसकी सूखी कलियाँ जब इन्होने रामचद्र को सभा मे जाकर वह गान सुनाया, तव मसाले और दवा के काम में आती हैं। विशेप-दे० 'लौंग' । राम ने उन्हे पहचाना । २. उक्त वृक्ष की सूखी कली। लवक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १. लोनी या लवाई करनेवाला। फसल लवगक-सज्ञा पुं० [सं० लवङ्गक ] लौंग [को॰] । काटनेवाला किसान । २ एक द्रव्यविशेष [को॰] । लवगकलिका-सज्ञा स्त्री० [स० लवङ्गकलिका ] लांग का फूल । लवकना-क्रि० अ० [स० अवलोकन ] लोकना। दिखाई पडना । लांग को०] । झलकना। लवगपुष्प-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० लवङ्गपुष्प ] देवकुसुम । लौंग । लबढ़ना-क्रि० स० [हिं० लिपटना ] लिपटना । उ०—ज्यो मैं खाले किवार त्या ही आनि लवढि गो गरे ।-धनानद, लवगलवा- सज्ञा स्त्री॰ [ स० लवङ्गलता ] १ लौंग का पेड या उसकी पृ० २६९। शाखा। लवण-सक्षा पुं० [सं०] १ नमक । लोन । विशेष-दे० 'नमक' । विशेष-यद्यपि 'लौंग' के बडे बडे पेड होते हैं जो बीस बरस तक २ काटना। काटने की क्रिया। लवना (को०) । ३ खड्ग- खडे रहते हैं, तथापि भारतीय कविसप्रदाय मे 'चूत लता' आदि युद्ध का एक प्रकार (को०)। ४ वस्तु जिससे लवाई की जाय । के समान 'लवगलता' शब्द का भी व्यवहार होता है। ऐसे काटने की वस्तु हँसिया आदि (को०)। ५ एक असुर जो मधु स्थलो मे लता का अर्थ शाखा या टहनी ही लेना चाहिए। दानव का पुत्र था और जिसे शत्रु न ने मारा था। विशेष दे० २. राधिका की एक सखी का नाम । ३ प्राय समोसे के श्राकार 'लवणासुर' । ६ एक नरक का नाम (को०)। ७. पुराणोक्त