पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०५

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ललितई ४२६६ लली सुधाकर लिखि गा राहूँ। इसी प्रकार 'जिसे ब्रह्मा अच्छा ३ एक रागिनी जो सगीतदामोदर और हनुमत के मत से बनाना चाहते थे, उमे बुरा बना दिया' इसके स्थान पर यह मेघ राग की और सोमेश्वर के मत से बमत राग की पत्नी कहना-(ख) विरचत हस काक किय जेही। ४ पाडव जाति है। इसका स्वरग्राम इस प्रकार है. स ग म ध नि म अथवा का एक राग जो भैरव राग का पुत्र माना जाता है और स रे ग म प ध नि स ( प्रथम ), ध नि स ग म घ (द्वितीय) जिसमे निषाद स्वर नहीं लगता, तथा घंवत और गाधार के ४ कस्तूरी । ५. पुराणोक्त एक नदी । अतिरिक्त और सब स्वर कोमल लगते हैं। इसके गाने का विशेप-कालिका पुराण मे लिखा है कि जब नि म राजा के समय रात्रि के तीम दइ वीत जाने पर अर्थात् प्रात काल शाप से वशिष्ठ देहहीन हो गए, तब उन्होंने कामरूप देश में है । ५ नृत्य मे हाथो की एक विशेष मुद्रा (को ) । ६ क्रीडा । संध्याचल पर्वत पर घोर तप किया, जिससे प्रमन्न होकर विनोद (को ) । ७ सौंदर्य । लावण्य । सुंदरता (का०) । विष्णु ने उन्हें वर दिया। वर के प्रभाव से वशिष्ठ ने एक ललितईए-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ललित + ई ( प्रत्य० ) ] सौंदर्य । अमृतकुड बनाया। उसी अमृतकु ड के पूर्व ललिता नाम की दे० 'ललिताई। उ०- लाल ललाई ललितई कलित नई एक मनोहर नदी है, जिसे शिव जी ले पाए थे। वैशाख शुक्न दरसाय । दरसो सारस रस भरे हग प्रादरस मंगाय । ३ को इसमे नहाने का वडा फल है । -रामसहाय (शब्द०)। ६ महिला । कामिनी । सु दरी सी (को०)। ७ दुर्गा का एक ललितक - सञ्चा पुं० [सं०] प्राचीन काल के एक तीर्थ का नाम । नाम (को०)। ललित कला-सज्ञा स्त्री॰ [स० ललित + कला] वे कलाएं या विद्याएं यौ०-ललितापचमी । ललितापष्ठी । ललितासप्तमी। जिनके व्यक्त करने में किसी प्रकार के सौंदर्य को अपेक्षा हो । जैसे, सगीत, चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला इत्यादि । ललिताई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ललित+याई (प्रत्य॰)] मुंदरता । विशेप दे० 'कला'। सौंदर्य । उ०—(क) दक्षभाग अनुगग सहित इदिरा अधिक ललितकाता-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ललितकान्ता ] दुर्गा । ललिताई । —तुलसी (शब्द०)। ( ख ) सुरुवि लली के यो ललिताई लहलहात तन ।-सुकपि (शब्द०)। ललितपद'-वि० [सं० ] जिसमे सु दर पद या शब्द हो । ललितपद -सञ्ज्ञा पुं० एक मात्रिक छद जिसके प्रत्येक चरण मे १६ ललितापंचमी-सज्ञा स्त्री० [स० ललितापञ्चमी ] पाश्विन महीने की और १२ के हिसाब से २८ मात्राएं होती हैं। इसे सार, नरेंद्र शुक्ला पचमी जिसमे ललिता देवी (पार्वती ) की पूजा होती है। और दौवे भी कहते हैं। जैसे,-प्रात समय उठि जनक नदिनी त्रिभुवननाथ जगावै । ललिताभिनय-वि० [सं०] उत्तम या उत्प्ष्ट अभिनय करनेवाला [को०] । ललितपुराण-सज्ञा पु० [ स० ] वौद्धो का 'ललितविस्तर' नामक ललितार्थ-वि० [सं०] ललित अर्थ से युक्त या सुदर (काव्य) । ग्रथ जिसमे बुद्ध का चरित्र वरिणत है । (रवना) जो शृ गार रसात्मक हा (को०] । ललितप्रहार-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] हलका या मृदु प्राघात । प्यार से ललिताषष्ठो-सक्षा स्रो॰ [सं०] भाद्र कृष्ण पष्ठी। भादो बदी छछ, मारना (को०] । जिस तिथि को स्त्रियां पुत्र की कामना से या पुत्र के हितार्थ ललितप्रिय-सज्ञा ० [सं० ] सगोत मे एक ताल (को०] । लालतादेवी ( पार्वती) का पूजन करती हैं और व्रत रहती ललितललित-वि० [सं०] अति सु दर । सुदरतम । हैं । पूजन कुश और पलाश टहनी पर सिंदूर आदि चढाकर होता है। ललित लुलित-वि० [सं० ] कंपित, हतोत्साह या दुर्बल होने पर भी सु दर (को०] । ललिवासप्तमी-सच्चा स्री० [सं०] भादो सुदी सप्तमी। भाद्र शुक्ल ललितलोचन-वि० [सं०] सुदर आँखोवाला। प्रिय नेत्रो- वाला [को०] । ललितोपमा-मञ्ज्ञा स्त्री० [०] एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान की समता जताने के लिये सम, समान, तुल्य, लो, इव ललितवनिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] सुदरी स्त्री। रूपवती स्त्री [को०] । " भादि के वाचक पद न रखकर ऐसे पद लाए जाते हैं, जिनसे ललितविस्तर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ ] दे० 'ललितपुराण'। बरावरी, मुकाबला, मित्रता, निरादर, ईर्ष्या इत्यादि भाव प्रकट ललिवव्यूह -सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ बौद्ध शास्त्र के अनुसार एक होते हैं। जैसे, - साहि तनै सरजा सिवा की सभा जामधि समाधि। २ एक बोधिसत्व का नाम । है मेरुवारी सुर की सभा को निदरति है। ऐसो ऊंचो दुरग ललिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण महावली को जामे नखतावली सो वहस दीपावली करति है।- में तगण, भगण, जगण और रगण होते हैं। जैसे-तै भूपण (शब्द०)। भाजिरी अलि छिपी फिर कहाँ । तूही बता थल ललिया -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लाल+इया (प्रत्य॰)] लाल रग का वैल । हरी नही जहाँ । २ पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण लली-सशा स्त्री॰ [हिं० लला ] १ लड़की के लिये प्यार का शब्द । आदि के अनुसार राधिका की प्रधान भाठ सखियो में से एक । 1 २. दुलारी लडकी । लाली लडकी । जैसे,- वृषभानु लली, . सप्तमी। स० HO ma