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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१०

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४२७१ लहकना लसलसा 1 लसलसा-वि० [हिं० लस] [वि० स्त्री० लसलसी] लसदार । चिपचिपा । तरह ने । अच्छी तरह या पूरे सामान के साथ नहीं। जैसे,- जो गोद की तरह चिपकनेवाला हो। लस्टम पस्टम काम चला जाता है। लसलसाना-क्रि • अ० [अनु० ] गोद या लसदार चीज की तरह लस्त'-वि० [सं०] १ क्रीडित । २ शोभायुक्त । मजावट मे भरा । चिपकना । चिचिपाना। ३ प्रवीण । कुशल । दक्ष । चतुर (को०)। ४ थालिगित । लसलसाहट-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लसलसा लसदार होने का भाव । आलिंगनबद्ध (को०)। चिपक । चिपचिपाह। लरत'-वि० [हिं० लटना] १. थका हुआ। शिथिल । श्रम या थकावट से ढीला । जैसे,-चलते चनते शरीर लस्त हो गया है। २ लसा - सन्ना स्त्री० [सं०] १ हल्दी । २ केशर (को॰) । जिसमे कुछ करने की शक्ति या साहम न रह गया हो । अशक्त । लसिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] लाला । थूक । उ०-वारी सुकुमारी जर्जर लस्त को व्याह दी जावे । लसित-वि० [स०] १ लसता हुआ। शोभित । २ व्यक्त । स्थित । प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० १८७ । प्रकट । ३ जो क्रीडा कर रहा हो । क्रीडाशील [को०] । क्रि० प्र०—करना ।—होना । लसी-मज्ञा स्त्री० [हिं० लस] १ लम। चिपचिपाहट । २ दिल लगने की वस्तु । श्राकर्षण । जैसे,—वह कुछ लसी पाकर वहाँ जाता लस्तक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] धनुष का मध्य भाग । मूठ । है। ३ लाभ का योग। फायदे का डौल । जैसे,—विना लसी लस्तकी-सशा पुं० [सं० लस्तकिन्] धनुप [को०] । के पाप क्यो कहीं जाने लगे। ४ सबध । लगाव । मेलजोल । लस्तगा-सशा पुं० [?] १ परस्पर सबध या लगाय । २ शृखला । जैसे,—ऐसे आदमी से लमी लगाना ठीक नहीं। २ सिललिला । ३ शुरुवात । प्रारभ । क्रि० प्र०-लगाना। लस्सान-वि० [अ०] वातूनी । वाचाल । वावदूक (को०] । ५ दूध और पानी मिला शरवत । लस्सानी-सज्ञा स्त्री० [अ०] वाचालना। बानूनीपन । उ०—बात लसीका-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. मॉम और चमड़े के बीच मे रहनेवाला फरोशी हाय हाय । वह नस्सानो हाय हाय ।-भारतेंदु ग्र०, रस या पानी । २ लाला । ३ पीव (को०)। ४, मांसपेशी भा० १, पृ० ६७८ । (को०) । ५ ऊख का रस । इक्षुरस (को॰) । लस्सी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लम] १ लम। चिपचिपाहट । वि० दे० लसीला-वि० [हिं० लस + ईला (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० लसीली ] १ 'लसा' । २ छांछ । मठा । तक। (पच्छिम)। ३ दही को लसदार । जिसमे लस हो । जिसके लगाने से कोई वस्तु दूसरी चीनी के साथ मथकर वर्फ मिला या हुआ शर्वत । वस्तु से चिपक जाय । चिपचिपा । २ सु दर | शोभायुक्त । यौ० ०-कच्ची लस्सी = अधिक पानी मिला हुश्रा दूध । उ.-लाड लड़ोली रस वरसीली लसीली हंसीली सनेहसगमगी। लहँगा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लक (= कमर)+अगा] कमर के नीचे का सारा -नानद, पृ० ४४७ । अग ढोकने के लिये स्त्रियो का एक घेरदार पहनावा । उ०-छुद्र घटका कटि लहंगा रंग तन तनसुख की सारी।-सूर (शब्द०)। लसुन-सज्ञा पु० [मं० लशन] दे० 'लहसुन' । विशेप-यह मूत की डीरी या नाले (इजारबद) मे कमर मे कम- लसुनिया-सशा पुं० [हिं० लहसुन ] दे० 'लहसुनिया' । कर पहना जाता है और इसमे बहुत सी चुनटें पड़ी रहती है। लसुप - वि० [स०] चमकदार । दीप्त । चमकीला [को०] । इसमे नालो के आकार का घेरेदार नाला पडा रहता है, जिने लसोड़ा-सज्ञा पु० [हिं० लम (= चिपचिपाहट) ] एक प्रकार का नेफा कहते हैं । लहँग मे केवल कटि के नीचे का भाग ढंकता छोटा पेड । सपिस्ताँ । नेप्मातक । लसोढ़ा। है, इससे इसके साथ प्रोढ़नी भी पोड़ी जाती है। विशेष - इसकी पत्तियां गोल गोल और फल वेर के से होते हैं । लहक-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लहकना] १ लहकने की क्रिया या भाव । २ यह वमत मे पत्तियां झाडता है, और हिंदुस्तान में प्राय सर्वत्र प्राग की लपट । ३ चमक । छुति । ५ शोभा । छवि । ५. पाया जाता है । फल मे बहुत ही लसदार गूदा होता है। यह उमग । उत्साह । जोश । उ०-देशभक्ति की लहक उनके अग फल प्रौपध के काम मे आता है और सूखी खांसी को ढीली करने प्रत्यग मे व्याप्त है । -सुनीता, पृ० ११ । के लिये दिया जाता है। फारमी मे इसे सपिस्ता कहते हैं। हकीम लोग मिस्री मिलाकर इसका अवलेह ( चटनी ) बनाने लहकना-क्रि० प्र० [स० लता (= हिलना डोलना) या अनु० ] १ है, जो सांसी मे चाटने के लिये दिया जाता है। संस्कृत में हवा मे इधर उधर डोलना । झोके खाना । लहराना । उ०- भी इरो श्लेष्मातक कहते है। इसका अचार भी बनता है। (क) सकपकाहिं विप भरे पमारे । लहर भरे, लहकहिं प्रति कारे । —जायमी (शब्द॰) । (ख) व्यो मसि कार मंभारि न लसोढा-सा पुं० [हिं०] दे० 'लसोडा' । सकति भार वेली मानो लहक नवेली सोनजुही की । - रघुनाथ लसोटा-मज्ञा पु० [हिं० लासा+ोटा (प्रत्य॰)] यांस वा चागा (शब्द॰) । (ग) नव मालती चहूं दिमि महकत । जमुन नहर जिसमे बहेलिए चिटिया फैमाने का लामा रखते है। तट लह लह लहकत । -गोपाल (गव्द०)। (घ) लात लाल लस्टम पस्टमो-क्रि० वि० [देश०) १ धीरे धीरे । २ किमी न किमी की लर लटकाए लहकति छन न ।- (शब्द॰) । ८-६३