पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१७

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लोकुटिक' ४२७5 लाखपती ao लाकुटिक'-सञ्ज्ञा पुं० [ ] अनुचर । सेवक । पहरेदार (को०] । को भीर से अखि वही चल जाहिं । ( शन्द०)। २ लाकेट-सञ्ज्ञा पु० [अ० ] वह लटकन जो घडी की या और किसी ( लक्षणा से ) बहुत अधिक । गिनती मे बहुत ज्यादा । प्रकार की पहनने की जजीर मे शोभा के लिये लगाया जाता मुहा०-लाख टके की बान = अत्यत उपयोगी वात । है और नीचे की ओर लटकता रहता है। लाख–सना पु० सौ हजार की मख्या जो इस प्रकार लिखी जाती लाक्षकी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] सीता का एक नाम । लाक्षण-वि० [ स० ] १ लक्षण सवधी । लक्षण का । २ लक्षणो लाख-hि० वि० बहुत | अधिक । जैसे,—तुप लाख कहो, मैं एक न का जानकार। मानूंगा। लाक्षणिक'- वि० [सं०] १ जिससे लक्षण प्रकट हो। २ लक्षण मुहा०-लाख से लोख होना = अत्यधिक से अत्यल्प हो जाना। सबधी। ३ शब्द की लक्षणा शक्ति द्वारा गम्य वा प्राप्त सब कुछ से कुछ न रह जाना। उ०-बहुतक भुवन सोह (को०)। ४ जो मुख्य न हो। अप्रधान । गौण (को०)। ५ अंतरीखा । रहे जो ल ख भए ते लीखा ।—जायसी (शब्द॰) । पारिभापिक (को०)। लाख का घर राख होना = लाख रुपए का घर या खानदान लाक्षणिक २- सज्ञा पुं० १ वह छद जिसके प्रत्येक चरण मे ३२ मात्राएं नाश होना। हो । २ वह जो लक्षणो का ज्ञाता हो। लक्षण जाननेवाला। लाख-सशा स्त्री० [सं० लाक्षा] १ एक प्रकार का प्रसिद्ध लाल ३ वह अर्थ जो शब्द की अभिधा शक्ति द्वारा व्यक्त न हो अपितु पदार्थ जो पलाम, पीपल, कुसुम, वेर, अरहर प्रादि अनेक शक्ति द्वारा व्यक्त हो (को०)। ५ पारिभाषिक शब्द लक्षणा प्रकार के वृक्षो की टहनियो पर कई प्रकार के कीडो से बनता (को०)। है । लाह। लाक्षण्य-वि० [स०] १ लक्षणो का जानकार । लक्षण बतानेवाला । विशेष एक प्रकार के बहुत छोटे कीडे होते है, जिनकी कई २. लक्षण सवधी (को०)। जातियां होती हैं । ये कीडे या तो कुछ वृक्षो पर आपसे आप लाक्षा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] लाख । लाह । हो जाते हैं या इमी लाल पदार्थ के लिये पाले जाते हैं। वृक्षा लाक्षागृह-सज्ञा पुं० [ ] लाख का वह घर जिसे दुर्योधन ने पर ये कीडे अपने शरीर से एक प्रकार का लसदार पदार्थ निकाल- वारणावत मे पाडवो को जला देने की इच्छा से वनवाया था। कर उससे घर बनाते हैं और उसी मे बहुत अधिक अडे देते हैं । विशेप - दुर्योधन की इस दुर्भावना की सूचना पाकर आग लगने कीडे पालनेवाले वैसाख और अगहन मे वृक्षो की शाखाप्रो पर से पहले ही पांडव लोग इस घर से निकल गए थे। से खुरचकर यह लाल द्रव्य निकाल लेते हैं और तव इसे कई तरह से साफ करके काम मे लाने हैं। इसमे कई प्रकार के रग, लाक्षातरु-सहा पुं० [सं० पलास का वृक्ष । तेल, वारनिश और चूड़ियाँ, कुमकुमे आदि द्रव्य बनते हैं। लाक्षातैल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] वैद्यक मे एक प्रकार का तेल जो चपडा भी इसी से तैयार होता है। लाख केवल भारत मे ही सागरण तेल, हल्दी और मर्ज ठ आदि डालकर पकाने से बनता होती है, और कही नही होती। यही से यह सारे संसार मे है । यह दाह और ज्वर का नाशक माना जाता है। जाती है । यहाँ इसका व्यवहार बहुत प्राचीन काल से, सभवत लाक्षादि तेल- -सञ्चा पुं० [ सं० ] वैद्यक मे एक प्रकार का तेल | वैदिक काल से, होता आया है। पहले यहाँ इगमे कपडे और विशेप कारण तेल मे लाख, दूध या दही, लाल चदन, चमडे आदि रंगते थे और पर मे लगाने के लिये अलता या असगव, हलदी, दारु हलदी, मुलेठी, कुटकी, रेणुका आदि महावर बनाते थे । वैद्यक मे इसे कटु, स्निग्ध, कपाय, हलकी, प्रोपधियां पकाने से लक्षादि तैल बनना है। यह जीर्णज्वर शीतल, बलकारक और कफ, रक्तपित्त, हिचकी, खांसी, ज्वर, और राज्यक्षमा प्रादि रोगों को दूर करनेवाला और बलवधक विसर्प, कुष्ठ, रुधिरविकार आदि को दूर करनेवाली माना है । माना जा । है। पर्या-कीटजा । रक्तमातृका । अलक्तक । जतुका । लाक्षाप्रस द-सज्ञा पुं० [सं०] पठानी लोध । २ लाल रंग के वे बहुत छोटे छोटे कोडे जिनसे उक्त द्रव्य निकलता लाक्षाप्रसादन-सशा पु० [सं० ] लाल लोध । है। इनकी कई जातियां होती हैं। लाक्षाभवन-सक्षा पुं० 1 सं० ] दे० 'लाक्षागृह' [को०] । लाखना-क्रि० अ० [हिं० लाख+ना ( प्रत्य. )] लाख लगाकर लाक्षारक्त - वि० [स०] लाक्षा मे रजित । लाक्षा से रंगा हुआ [को॰] । बरतन या और किमी चीज मे का छेद बंद करना । उ०-शील लाक्षारस-सञ्चा पुं० [सं० ] महावर, जो पानी मे लाख प्रौटाकर तो सिधारयो तव सग न सिधारी जब तक भलो आजहू ली बनाते हैं। फूगे घट लाम्वनो। हृदयराम (णब्द०)। लाक्षावृक्ष-सज्ञा पुं॰ [स०] १ ढाक । पलास । २ कोशाम्र । कोसम | लाखनाल-क्रि० स० [सं० लक्षण) लख लेना । जान लेना । लाक्षिक-वि० [सं०] १ लाक्षा मवधी । लाख का। २ लाख का समझ लेना । उ०-सुनि के महादेव के भाखा । सिद्ध पुरुष बना हुआ । लाखी । राजै मन लाखा ।—जायसी (शन्द०)। लाख-वि० [स० लक्ष, प्रा० लवख] १ सौ हजार । उ०-लाखन हू लाखपती-सञ्ज्ञा पुं० [स० लक्षपति] दे० 'लखपती' ।