पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५२

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मर्माभिघातज ३६११ भर्राना BO 9 - भेदभरे तथ्य की झलक । उ०—योग भोग, जप तप, धन सचय मर्यादामार्गी-वि० [सं० मर्यादा + मार्गिन् ] मर्यादा का अनुगमन गार्हस्थाश्रम, दृढ सन्यास । त्याग तपस्या, व्रत सब देखा पाया करनेवाला । मर्यादावादी । उ०-वहाँ कृष्णदास को एक है जो मर्माभाम |-अनामिका, पृ० १६६ । मर्यादामार्गो वैष्णव को सग भयो।-दो सो बावन०, भा० १, मर्माभिधातज-मज्ञा पुं॰ [ मै० मर्म + अभिघातज ] एक प्रकार का पृ० २३४। दाह । उ०—इसमे मर्मस्थान मे मर्मामिघातज दाह होय मर्यादावादी-वि० [ स० मर्यादा + वादिन् ] मर्यादा को माननेवाला । सो सातवां असाध्य है। -माधव०, पृ० १२० । मर्यादानुयायी। उ०—पर शुक्ला जी, जैसा मैंने निवेदन किया, मर्माविद्-वि० [ ] मर्म भेदनेवाला । ममभेदी । मर्यादावादी थे। प्राचार्य, पृ० १३६ । मर्माविध-वि० [ म० मर्म + माविध ] मर्म भेदनेवाला । मर्मभेदी । मर्यादाव्यतिक्रम-संशा पु० [ H० ] सीमा पार करना । मीमोल्लघन करना [को०] । मर्माहत-वि० [ मै० मर्म + पाहत ] जिसके मर्म को वहुत अधिक चोट पहुंची हो। जिसके हृदय को बहुत अधिक पीडा मिली हो । मर्यादित--वि० [ स० ] मीमित । सीमाबद्ध । उ०-मर्या।दत रहता उ०-मर्माहत स्वर भर ।-अपरा, पृ० ६३ । है इनका जीवन पारावार । अपने छोटे से जग मे है मीमित म मिक-वि० [ ] मर्मविद् । ममज्ञ । इनका प्यार । —प्रामिका, पृ० ८८ । मर्मी-वि• [हिं० मर्म ] रहस्य जाननेवाला । तत्वज्ञ। मर्मज्ञ । मर्यादी'-वि० [ स० मर्यादिन् ] १ मीमा मे रहनवाला। मीमोल्ल- उ०—(क) ममा मूल गहल मन माना। मर्मी होय सो मर्महिं धन न करनेवाला । २ मर्यादावादो। मर्यादा को माननेवाला । जाना । —कबीर (शब्द॰) । (ख) मर्मी सजन सुमति कुदारी। उ०-नाके पाम तीन तूंबा, काँधे पर तो खासा की, पीछे ज्ञान विराग नयन उरगारी । —तुलसी (शब्द॰) । कटि पर मर्यादी मेबकी की, पागे कटि पर बाहिर की, या भांति मो रहै पावें ।—दो सौ बावन०, भा॰ २, पृ० ४३ । मर्मोद्घाटन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रहस्योद्घाटन । रहस्य का प्रकट होना (को०] । मर्यादी --सञ्चा पु० पडोसी । सीमा के निकट रहनेवाला (को०] । मर्मोपघाती-वि० [सं० मर्मोपघातिन् ] २० 'मर्माविध्' [को०] । मर्या-सञ्ज्ञा मी० [ स० ] मीमा मर्य'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. मनुष्य । २ युवक व्यक्ति (को०)। ३ मर्यादा-सक्षा स्त्री॰ [ म० मर्यादा ] १ ० 'मर्यादा' । उ०- नर । मादा का विलोम (को०)। ४ प्रेमी पुरुष (को०)। ५ भो मर्याद बहुत सुख लागा। यहि लेखे सब सशय भागा। उष्ट्र । ऊंट (को०) । ५ वीजाश्व । दे० 'सांड' (को॰) । —कबीर (शब्द०)। २ रीति । रसम । प्रया। ३ चाल । मर्यः-वि० मरणशील । मर्त्य [को०] । ढग । ४ विवाह मे वर पक्षवालो का वह भोज जो उन्हे विवाह के तीसरे दिन कन्यापक्ष की ओर से दिया जाता है। मर्यक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १. छोटा या ठिगना व्यक्ति । २ नर । वडहार । बढार। मादा का विलोम (को०)। मर्या-सज्ञा पुं॰ [ स०] सीमा (को॰) । मुहा०—मर्यादा रहना = वरात का विवाह के तीसरे दिन ठहरकर भोज मे समिलित होना। मर्याद-सञ्ज्ञा म्ली० [ स० मर्यादा ] दे० 'मर्याद' । उ०—रोक रहजन को प्रगति का, फेर से, बाधक जो हो । दर वदर भटका मर्यादा-सज्ञा स्त्री० [स० ] १. सीमा। हद। २ कूल । नदो उसे, मर्याद तू जव तक न कर ।-बेला, पृ० ६८ । या समुद्र का किनारा । ३ दो या दो स अधिक मनुष्यो के वीच की प्रतिज्ञा । मुसाद्दिा। करार । ४ नियम । ५ मर्यादा-सज्ञा स्त्री० [ ] दे० 'मर्यादा'। सदाचार । ६ मान प्रतिष्ठा । गौरव । मर्यादाधावन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] सीमारेखा या चिह्न की ओर क्रि० प्र०-खना। दौडना [को०)। मर्यादाधुर्य-सज्ञा पुं० [सं० मर्यादा+धुर्य] ३० 'कोटपाल' । उ०- मुहा०-मर्यादा नाना = माख खत्म होना। विश्वास जाता प्रतिहार साम्राज्य मे सीमा का रक्षक कोटपाल ही 'मर्यादा- रहना । मर्यादा लेना= लज्जा उतारना । लज्जित करना । ७ धर्म। धुर्य' कहा गया है। पू० म० भा०, पृ० १०४ । मर्यादागिरि--सधा पु० [सं० ] सीमा पर का पहाड । वह पहाड मर्यादापर्वत-सज्ञा पु० [ स०] दे० 'मर्यादागिरि'। उ०—पूरब जो सीमा का निर्धारण करे (को०] । और पच्छिम तरफ की जमीन का उठाव दीखता है, जो हिमालय के साथ के मीमात के पहाडो या मर्यादापर्वतो को मूचित मर्यादाबध-सज्ञा पुं० [सं० मर्यादावन्ध ] १ अधिकार को रक्षा । २ नजरवदी। करता है ।-भारत०नि०, पृ० २५ । मर्यादापुरुपोत्तम-सज्ञा पुं० [स० मर्यादा + पुरुषोत्तम ] भगवान् मर्यादी-वि० [ स० मर्यादिन् ] सीमावान । मीमायुक्त । रामचद्र । उ०-मर्यादापुरुपोत्तम के सर्वोत्तम अनन्य, लीला मर्राना-क्रि० अ० [हिं० मरमराना अनु०] मर मर की ध्वनि करते सहचर, दिव्य भावधर इनपर प्रहार करने पर होगी देवि गिरना। चरमराकर गिरना। उ०-पीना भा समार जाठि तुम्हारी विषम हार ।-अपरा, पृ० ४३ । ऊपर मर्रानी।-पलटू०, पृ० ५६ । RO