पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५३

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3 क्षमा किया मेरी भलाग्यम मर्रा-सज्ञा स्त्री० [हिं० मरना ] वह भूमि जो कर्ज लेनेवाले ने सूद मल-०१ गदा । अगुद्ध । २ नीच । दुष्ट । ३ नास्तिक (को०) । के बदले मे महाजन को दी है। मल'-[श० ] फीलवाना का एक मार्केतिक गन्द जो हाथियो को मश -सज्ञा पुं० [सं०] १ गभीर विचार । २ गय। ममति । उठाने के लिये कहा जाता है। ३ नस्य । मुघनी [को०)। मलऊन-० [अ० मऊन ] तिरस्कृत। दुष्ट । विगत । उ०- मर्शन-मज्ञा पुं० मं०] १ रगडना। २ परीक्षा। जाँच। ३ यह लश्कर लेकर वह मलकन । मका की तरफ फीता है विचार । ४ राय देना। ५ अलग करना। हटाना । ६ मुं।-दपियनी०, पृ० २२१ । व्याख्या करना [को०] । मलक'-मजा प० । अ० ] देवता । फरिश्ता (को०] । मर्ष-मञ्शा पु० [ म० ] क्षाति । मलक'-मज्ञा पुं० [हिं० मलकाना] १. भान्या के खोनन बद करने की मर्पण'-सज्ञा पुं० [सं०] १ क्षमा । माफी । २ घर्पण । रगढ क्रिया । दृष्टि को स्यिर न रम्बना । २ हितना डोलना । 30- मर्पण—वि० १ नाशक । ध्वमक । २ दूर करनेवाला । रोकने या लागत पनक मता नहि लावं । -कवीर मा०, पृ० १५८६ । हटानेवाला। उ०-लहरा भव पादप, मर्पण मन मोडेगी। मलकना-क्रि० भ० [हिं० मलफना] १ हिनना डोलना। २ अपरा, पृ० २०७१ इतराना । इठलाना । उ०-कूमत चलि मद मत्त गर्यद ज्यों, मर्पणीय-वि० [ ] क्षमा करने के योग्य । क्षम्य । मलकत बौह दुगइ।-नद० ग्र०, पृ० ३८६ । मर्पित-वि० [सं०] १ महन किया हुआ । मलकनियु-सका स्त्री० [हि० मलफना ] मलकने की ग्रिन्या । हिलने डातन या इठलाने की क्रिया । उ०-मोहन पिय की मलकान हुमा [को०] । मी-वि० [ स० मर्पिन् ] सहन करनेवाला । क्षमाशील (को॰] । ढलकनि मार मुकुट की। सदा बमो मन मर फरकनि पियरे पट की। नद० ग्र०, पृ० २२ । मर्सियाखाँ-सज्ञा पु० [म. मरसिया+फा० ख्वा] २० 'मरगियास्वा । उ०—कई मसियाखां और कई गजल सुनाते हैं -प्रमघन०, मलकरना-मा पु० [२०] वरतन पर नकाणी करनेवालो का एक भा० २, पृ० ८७ ॥ मौजार जिसने खादने पर दोहरी लकीर बनतो है। मलग-सज्ञा पु० [ फा० ( मलग = मापसे वाहर ) ] १. एक प्रकार मलकर्पण-वि० [म०] माफ करनेवाला । गदगी दूर करनवाला (फो०] । के मुसलमान साधु । ये मदारशाह के अनुयायी होते हैं तथा मलफलमीत-मज्ञा पुं० [म० मलकुलमीत ] दे० मलकुनमौत'। सिर के बाल बढाते भौर नगे मिर तथा नगे पर अकेले भीख उ० जेहि विधि पारा मर न मारा। मतकतमौत मो कर माँगते फिरते हैं। उ०—(क) कोडा बूद, करि मांकर विचारा।-मत० दरिया, पृ० २३ । बरुनी सजल । कोने वदन न मूद, दृग मलग हारे रहे। मलका-मज्ञा मा [म० मलिकह ] वादशाह या महाराज की -विहारी (शब्द०)। (ख) किधौं मैन मलग चढ्यो थल पटरानी। महारानी। उ०-मेरी मनका । नुवन, कल जैसा तु ग अंजीर भरी न पर झटकी । -मुकुदलाल (शब्द॰) । २ दिन दुश्मन की किम्मत मे भो न पाए ।—पिंजरे०, पृ० १२२ । एक प्रकार का बडा बगुला जो स्वच्छ, मफेद रंग का होता है। यह भारतवर्ष मौर वरमा में होता है, और प्राय एकात मलकाछ-मचा पुं० [हिं० मल्ल + काछ ] ठाकुरो के शृगार के लिये में और अकेला रहता है। एक प्रकार का कछनी जिसमें तीन झन्वे लग होते है । मलकाना'-क्रि० म० [ मनु०] १ हिताना। डोलाना । विचलित मलगा-मज्ञा पुं॰ [ हि० ] दे० 'मलग' । करना । जमे, माख मलकाना । मल'–सझा पुं० [ ] १ मैल । कीट । जैसे, धातुप्रो का मल । मलकाना-क्रि० म० वना बनाकर बातें करना । उ०-लीला सगुन जो कहहिं वखानी। सोई स्वच्छता करइ मल हानी ।—तुलसी (शब्द०)। २. शरीर से निकलनेवाली मलकुलमीत-सज्ञा पुं० [ म० ] मुसलमानो के अनुसार वह फरिश्ता मैल या विकार। जो प्रत समय य प्राण लेन के लिये माता है। विशेष—ये मल बारह प्रकार के माने गए हैं। -(१) वसा, (२) मलकूत'–वि० [अ० ] पवित्र । फरिश्ता से मवाघत । उ०—जिन शुक्र, (३) रक्त, (४) मजा, (५) मूत्र, (६) विष्ठा, (७) फर्णमल ताकू नादार झकारे तो मजिल मलकूत तूज ।-दक्खिनी०, या खूट, (८) नख, (६) श्लेष्मा या कफ, (१०) आँसू, (११) पृ०५६ । शरीर के ऊपर जमी हुई मैल और (१२) पसीना । मलकूत'-सज्ञा पु० १ शासन । राज्य । २ स्वर्ग । देवलोक । ३ ३ विष्ठा । पुरीप । ४ दूपण । विकार । ५ शुद्धतानाशक पदार्थ । फरिश्ता । दवगण (को०] । ६ पाप । ७ दोष । बुराई । ऐव । ८ हीरे का एक दोप । मलखभ-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मलखम' । ६ जैन शास्त्रानुसार प्रात्माश्रित दुष्ट भाव । यह पांच प्रकार मलखम-सज्ञा पुं० [सं० मन्त+हिं० खभा] १ लकडी का एक का माना गया है—(१) मिथ्या ज्ञान, (२) अधर्म, (३) शक्ति, प्रकार का खभा जिसपर कपरत करनेवाले फुरती से चढ मौर (४) हेतु और (५) च्युति । १० कपूर । ११ प्रकृतिदाप । उतरकर कसरत करते है। मालखभ । जैसे, वात, पित्त, कफ। विशेष-मलखम तीन प्रकार के होते हैं-गडा मलखम, लटका HO 1