पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५२४

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उ०- लार ४३८५ लाल लार'-सज्ञा स्त्री० [सं० लाला ] १. वह पतला लसदार थूक जो कोई विशेप-इस शब्द का प्रयोग प्रायः कविता और बोलचाल में बहुत कडु ई खट्टी श्रादि चीज खाने या मुंह मे कोई दवा आदि किसी प्रिय व्यक्ति के लिये सबोधन के रूप में होता है। लगाने पर तार के रूप मे निकलता है। ४ श्री रण चद्र का एक नाम । उ०-नुमन कुज बिहरत सदा दै मुहा०-मुंह में लार पाना = दे० 'मुंह से लार टपफना' । मुंह से गलवाँहा मान। बदौं चरन सरोज निन जुगुन माहिली लार टपकना = किसी चीज को देखकर उसके पाने की परम लाल --मनालाल (गन्द०)। लालसा होना । मुंह में पानी भर पाना । लाल-राश पुं० [ भ० लालन ] दुलार । लाड । प्यार । २ कतार । पक्ति । ३ लासा । लुग्राव | उ.---सो मुख चूमनि जो बन सायर मुझो रमिया लाल फराय । अब कपीर महरि यशोदा दूध लार लपटानी हो।—सूर (शब्द॰) । पांजी परे पयी प्रावहिं जाय |--कबीर (शब्द॰) । लार२-क्रि० वि० [ ? मि० मरा० लैर (=पीछे ) ] साथ । पीछे । लाल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० लाला ] पतला थूक जो प्राय बच्चो और वृद्धो उ०—(क) सत्ती जरि कोइला भई मूए मरे की लार । जउँ के मुंह मे बहा करता है । लाला । लार । वह जरती राम सों सांचे संग भरतार ।-दादू (शब्द०)। लाल-सा झी० [सं० लालना] लालसा । इच्छा । अभिलापा । (ख) अर्धे अधा मिल चले दादू वाधि कतार । कूप पडे हम चाह । उ०—(क) सुभ्र कलाई अति बनी सुभ्रजघ गज चाल | देखना अघे अधा लार ।-दादू (शब्द०)। (ग) जो निर्गुण सोरह शृगार वरन के करहिं देवता लाल।-जायसी (शब्द०) सुमिरन कर दिन में सौ सौ वार । नगर नायका सत कर जर (ख) सुर नर गधर लाल कराही । उलटे चलहिं स्वर्ग यह कौन की लार -कवीर (शब्द॰) । जाही।जायसी (शब्द )। मुहा०--लार लगाना = फंसाना । बझाना। उ०—(क) पट लाल-सशा पुं० [फा०] मानिक या माणिक्य नाम का रल। दरसन पाखड न्यावने भरमि परयो समार। वेद पुरान सर्व विशेप दे० 'मानिक' । उ7-(क) कचन के सभ मयारि मग्या- मिलि गावं कर्म लगायो लार ।-कवीर (शब्द॰) । (ख) जन्म डाँडी खचि हीरा विच लाल प्रवाल ।-सूर (शब्द०)। (ख) जन्म के दूत तिरोवन कोनहिं लार लगाए । —सूर (शब्द॰) । यह ललित लाल कधी लसत दिग्भामिनि के भाल को।- लारी-सज्ञा स्त्री॰ [प. लॉरी ] यात्रियों के आवागमन के काम आने केशव (पाब्द०)। (ग) कुदन सी यह वाल की हीरा लाल वाली बडी मोटरगाडी। बस [को०] । लगाइ । रतन जटित की दुति तब लीला दृग मरसाह ।- लारूg+-सज्ञा पुं० [हिं० लाडू ] लड्डू । रसनिधि (शब्द०) । (घ) नख नग जाल लाल अगुलि प्रवाल लार्ड-सदा पुं० [अं०] १. परमेश्वर । ईश्वर । २ मालिक | माल नूपुर मराल ये अनूप रव नांउडे -देव (शब्द॰) । स्वामी । ३ भूभ्यधिकारी। जमींदार । ४. इग्लैंड के बड़े बड़े मुहाल-लाल उगलना = बहुत अच्छी और प्यारी बातें फहना । जमीदारों और रईसों आदि को मिलनेवाली कतिपय बडी मीठी और सुदर बातें कहना । उपाधियो का सूचक शब्द, जो उनके नाम के पहले लगाया लाल-वि० १ मानिक, वीरबहुटी या लह प्रादि के रग का। रक्त जाता है । जैसे,-लार्ड कर्जन, लार्ड रीडिंग । वर्ण । सुर्ख । उ---(क) लोचन लाल विसात चारु मंदार लार्ड सभा-सच्या सी० [अ० हाउस प्राव लाई स ] ब्रिटिश पार्लमेट माल गर ।- गोपानचद्र (शब्द॰) । (ख) फूल फूते है क्या ही रगीले । कोई ऊजरो कोई लाल पीले-सं० शा० की वह शाखा या सभा जिसमे बडे बडे तालुकेदारो और अमीरों के प्रतिनिधि होते है। इनकी सख्या लगभग ७०० है। इसे (शब्द॰) । (ग) कौन दियो यह भाल में लाल गुलाब को फूल हा उस श्राव लार्डस् कहते हैं । कही कह पायौ ।~ माश्वमेघ (शब्द॰) । लाल'-सा पुं० [ स० लालक ] १. छोटा और प्रिय वालक । प्यारा यो०-लाल अगारा या लाल भभूका - जो जनने प्रादि के कारण वच्चा । २ वेटा । पुन । लडका । उ॰—(क) जसुमति माय अगारो की तरह लाल रग का हो गया हो। ताप के पारण लाल अपने को शुभ दिन डोल झुलायो। फगुवा दियो सकल बहुत अधिक लाल । लाल विव-बहुत अधिक लाल । गोपिन को भयो सबन मन भायो ।- सूर (शब्द॰) । (ख) २ जिसका नेहग क्रोध के मारे तमतमा गया हो। जिससे चेहरे केहि अब मैं शरण जावो । बोली लाल बहुत दुख पावो।- ते गुस्ना मालूम होता हो। बहुत अधिक कुद । जने, यातो विश्राम (शब्द॰) । ३. प्रिय व्यक्ति । प्यारा श्रादमी। उ०- बातो मे लान क्या होते हो। (क) शाणु यासो बोलि चालि हंसि खेलि लेहु लाल काहि मुहा० - लाग्न प्रा निकालना या दिखाता = झोप रो अनि सान ऐसी ग्वारि लाऊ काम की कुमारी मी। केशव (शब्द॰) । करना । गुस्से में देखना । लान पटना वा हाना होना । (स) वरनत कवि जोहै मुग्धा के भेदन मे ललिता ललित मो नाराज हाना । उ०-दशरय लाल ह कगल यदु नाल परि, प्रघट लाल लखि लेहु ।-रघुनाथ (शब्द०)। ४ प्रणयी। भापत भयोई ननु राव न गनी-पाकर (गन्द०)। प्रेमी। 30-(क देत जताए प्रगट जो जावक लागो भाल । लाल पीले होना= गुम्मा हाना । ग्रोव वरना । 3०-१है। नव नागरि के नेह मो भले बने हो लाल ,-रसनिधि (शब्द॰) । एक बारगी इतने लाल पाले हो गए। हरिश्चन्द्र (गन्द०)। (घ) मेरई उर गहि गए तेरेई दृग लाल । जनि पतियाउ लसो लाल हो जाना- प्रोष मे भर जाना । गुस्से में होता। लान इन्हे दरपन लेक लाल ।-रसनिधि (शब्द०)। होना = शुद्ध होना । नाराण होना ।