पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५३१

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1 लाह ४२६२ लिग लाह-सशा पुं० [ स० लोम, हि० लाख ] लाभ। फायदा । नफा । लाहौर-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] भारत के पश्चिम पजाव का एक प्रयत उ०-(क) दावा वरि पाहरू को पावागौन मिसि ताके भानु एव प्राचीन नगर जो अब पाकिस्तान में है। ससि अभिमति लाहा मे फिरत है ।-चरण (जन्द०)। (ख) लाहौरी नमक-सशा पु० [हिं० लाहौरी+ नमक] सैधव लवण । रोंघा सारहि सन्द विचारिए सोइ सब्द सुख देव । अनसमझा सन्देक है नमक । विशेप, 'नमक'। कछू न लाहा लेय |-कवीर (शब्द०)। (ग) लहि जीवनमूरि लाहौल -सज्ञा पुं० [अ०] एक अरवी वाक्य का पहला शब्द जिमका को लाह अली बै भले जुग चारि ली जीवो करै ।-द्विजदेव व्यवहार प्राय भूत, प्रेत आदि को भगाने या घृणा प्रकट करने (शब्द॰) । (घ) मैं तुपमो कहि गखत ही यह मान किए कछु के लिये किया जाता है। पूरा वाक्य यह ह - 'लाहोल बला ह्व है न लाहे । -रघुनाथ (शन्द०)। कूब्बत इल्ला विल्लाह ।' इसका अर्थ है-ईश्वर के सिवा और लाह-सज्ञा स्त्री॰ [ ? या स० लाभ] चमक । प्राभा । काति । दीप्ति । किसी मे कोई सामर्थ्य नहीं। उ० - सीस फूल वेनी बेंदी वेमरि और वीरनि मैं हीरनि की लाह मुहा०-लाहौल पढ़ना = मे हंसनि छवि छहरी ।-देव (शब्द॰) । (१) उक्त वाक्य का उच्चारण करना । (२) बहुत अधिक घृणा प्रकट करना । लाहन-सज्ञा पुं॰ [दश०] १ वह महुआ जो मद्य खीचने के उपरात लाहा-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] उल्लू पक्षी । देग मे वच रहता है। यह प्राय पशुप्रो को खिलाया जाता है । २ जूमी और महुए को मिलाकर उठाया हुअा खमीर । लिंग-सक्षा पु० [स० लिङ्ग] १ वह जिससे किसी वस्तु की पहचान ३ किमी प्रकार के पदार्थ का खमीर । ४ वे पेय श्रोपधियां हो। चिह्न । लक्षण । निशान । २ न्याय शास्त्र में वह जिससे जो गोमो को बच्चा होने पर दी जाती हैं। ५ अनाज ढोने किमो का अनुमान हो । माधकहेतु । जैसे,—पर्वत मे आग है, की मजदूरी। वहाँ धूम होन के कारण-यहाँ धूम अग्नि का लिंग है, अर्थात् लाहल-सज्ञा पुं० [अ० लाहौल] दे॰ 'लाहौल' । उ०-लाहल पारख धूम से अग्नि के होने का अनुमान होता है। शब्द के जो परखे सो पाक । तामे जो हल्ला कर सोई होइ विशेप-लिंग चार प्रकार के होते हैं-(क) सबद्ध, ज,-यूम हलाक ।-कवीर (शब्द॰) । अग्नि के साथ सवद्ध है। (ख) न्यस्त, जैसे,—नीग गाय के लाहिक-वि० [अ० लाहिक] युक्त होनेवाला । मिलनेवाला [को०] । साथ है । (ग) सहवर्ती, जमे,-भापा मनुष्य के माय है । और लाहीक-सञ्ज्ञा पुं० [अ० लाहिकह ] किसी शब्द के अंत मे लगनेवाला (घ) विपरीत, जैसे भला बुरे के साथ है। अक्षर या शब्द । प्रत्यय (को०] । ३ साख्य के अनुसार मूल प्रकृति । लाही-सज्ञा स्त्री॰ [म० लाक्षा, हिं० लाख, लाह] १ लाल रग का विशेष-विकृति फिर प्रकृति मे लय को प्राप्त होती है, इसी से वह छोटा कीडा जो वृक्षो पर लाख उत्पन्न करता है। विशेप प्रकृति को लिंग कहते हैं। दे० 'लाख'। २ इससे मिलता जुलता एक प्रकार का कीडा ४ पुरुष का चिह्न वशेष जिमके कारण स्त्री से उसका भेद जाना जो प्राय माघ फागुन मे पुरवा हवा चलने पर उत्पन्न होता जाता है। पुरुप की गुप्त इद्रिय । शिश्न । है और फसल को बहुत हानि पहुंचाता है। पर्या०-उपस्थ । मदनाकुश । मोहन । दर्पमुपल । शेफम् । मेढ़ । लाही-वि० लाह के रंग का। मटमैलापन लिए लाल । उ० - ध्वज । साधन । तनसुख सारी, लाही गया, अतलस अंतरौटा, छवि, चारि ५ शिव की एक विशेष प्रकार की मूर्ति । एक पुराण का चारि चूरी पहुंचीनि पहुंची पमकि वनी नकफूल जेब मुख वीरा नाम। चोका कौवें सभ्रम भूली।-स्वा० हरिदास (शब्द०)। विशेष-लिंग पुराण मे लिखा है कि शिव के दो रूप हैं । निक्रिय लाही-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लावा] धान, वाजरे आदि के भूने हुए दाने । और निर्गुण शिव अलिंग है और जगत्कारण रूप शिव लिंग लावा। लाजा । खील । हैं । अलिंग शिव मे ही लिंग शिव की उत्पत्ति हुई है । शिव को यौर लाही का सत्त = धान की खीलों को पासकर बनाया हुआ लिंगी भी कहते है, और वह इसलिये कि लिंग या प्रकृति सत्त जो बहुत हलका होता है और प्रायः रोगयो को पथ्य के शिव की ही है । इस प्रकार लिग जगत्कारण रूप शिव का रूप मे दिया जाता है। प्रतीक है। पद्मपुराण मे शिव के इस रूप के सवध मे यह कया लाही-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ सरसो । २ काली मरसो। ३ तीसरी है-एक बार मंदराचल पर ऋपिया ने वडा भारी यज्ञ किया। बार का साफ किया हुआ शोरा । वहां उन्होने यह चर्चा छेडी कि ऋपियों का पूज्य देवता किसे लाहुल-सज्ञा पुं॰ [ सं० लाभ ] नफा। फायदा । प्राप्ति । लाभ । वनाना चाहिए। अत मे यह निश्चय हुआ कि शिव, विष्णु -(क) हानि कुसग सुमगति लाहू । लोकहु, वेद विदित मब और ब्रह्मा तीनो के पास चलकर इसका निर्णय करना चाहिए। काहू ।- तुलसी (शब्द॰) । (ख) मूनि वचन लाहु मानो सव ऋषि पहले शिव के पास गए। पर उस समय वे पार्वती के अधनि लहे हैं विलोचन तारे । —तुलसी (शब्द॰) । साथ क्रीडा कर रहे थे, इससे नदी ने द्वार पर उन्हें रोक लाहूत-सशा पु० [अ०] १ ससार । दुनिया। जगत् । मर्त्य लोक । दिया । ऋपियो का प्रतीक्षा करते बहुत काल बीत गया । इस- २. समाधि । ब्रह्मलीनता की अवस्था (को०] । पर भृगु ऋषि ने कोर करके शाप दिया-'हे शिव ! तुमने 1