पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५३०

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लो BO HO - स० ४२६१ लाह लावु-सञ्ज्ञा पुं॰ [ ] लोप्रा । यद् । घिया। वचन फहि व्याध ज्यो विषय विगनि बझायो।-तुलनी लाव्य-वि० [ ] लवाई के लायक । काटने योग्य [को०) । (शब्द॰) । (ख) चितवनि ललित नकुट लासा लटकनि पिय लाश-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] किमी प्राणी का मृतक देह । लोथ । कापं अलक तरंग ।—सूर (शब्द०)। २ एक विशेष प्रकार का चिपचिपा पदार्थ जो बहेलिए लोग चिडियो को फंसाने के लिये मुरदा । शव। बरगद और गृलर के दूध मे तीसी का तेल पकाकर बनाते हैं। मुहा०-लाश उठना = मुर्दा उठना । मौत होना। लाश पर लाश विशेप-इस लाने को प्राय वे लोग वृक्षो की डालियो पर लगा गिरना = लोथ पर लोथ गिरना। लडाई मे शवो का ढेर देते है, और जब पी उनपर पाकर बैठने है, तब उनके परो लग जाना। मे यह लग जाता है, जिससे वे उड नहीं सकते। उस समय लाशा-वि० [फा० लाशह.] दुर्बल । क्षण । कृशकाय [को०] । बहेलिए उन्हे पकड लेते है। लाशा-सञ्ज्ञा पु० मुरदा । लोथ । शव [को०] । मुहा०-लासा लगाना = किमी को फैमान के लिये किसी प्रकार लाप-संज्ञा पुं० [स० लक्ष लाख को सख्या वा अक । दे० 'लाख' । का लालच या धोखा देना । फदे में फंसाना । लामा होना = लापर-सज्ञा पुं॰ [सं० लाक्षा ] लाख नामक लाल द्रत्य । लाह । हरदम साथ लगे रहना । पीछा न छोटना । उ०-लाप भवन बैठार दृष्ट ने भोजन मे विप दीन्हो । लासोनी-वि० [अ० ] जिसका काई सानो या जोड न हो । अनुपम । (शब्द॰) । विशेष दे० 'लाख"। अद्वितीय । वेजोड । यौ०–लापभवन = लखावर । लाक्षागृह । लासि-सज्ञा पुं० [सं० लास्य ] दे० 'लास्य' । उ०-ताडव लासि लापना ५।-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'लखना'। ओर अग को गर्ने जे जे रुचि उपजत जा के ।-स्वा० हरिदाम लापुक-सज्ञा पुं० [सं० ] लोभी। लालची। (शब्द०)। लास'-सज्ञा पुं० [सं० लास्य] १ एक प्रकार का नाच । दे० 'लास्य' । लासिक-वि० [सं० ] नर्तक । नाचनेवाला (को०] । ललित नृत्य । २ मटक । उ.-लास भरी भौंहन विलास भरे लासिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. नर्तकी। २ पुश्चली। दुश्चारया । भाल मृदु हास भरे अधर सुधारस घुरे परं ।-देव (श- ०)। वेश्या । ३ एक नाट्यभेद । एक उपरूपक [को०] । लास-सञ्ज्ञा पु०' [ ] १ जूम । रसा । शोरबा। २ उछलकूद । लासी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] जू की तरह का एक प्रकार का काला स्वच्छद क्रीडा (को०)। ३ लास्य । एक नृत्य, विशेषत स्त्रियो कीड़ा जो गेहूँ के पेडो से लगकर उन्हे निकम्मा कर देता है। का (को०)। लासी-सञ्ज्ञा सी० [हिं०] दे० 'लसी' या 'लस्सी' । लोस- सज्ञा पु० [? J उस छह के दोनो कोने जिसे पाल बांधने के मे लटकाते हैं । (लश.)। लोसु-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० लास्य ] दे० 'लास्य' । मुहा० -- लास करना = चलती हुई नाव को रोकने के लिये डांटो लास्फोटनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] छेदन का प्रौजार । गिल मिट | को बहते हुए पानी मे वेडे वल मे ठहराना । (लश०) । वरमा (को०)। लासक-सज्ञा पुं० [सं०] १ मयूर। मोर। २ नाचनेवाला। लास्य-सा पु० [सं० । १ नृत्य । नाच । २ नाच या नृत्य के दो नचनिया । नतक । ३ मटका । घडा। ४ शिव का एक नाम । भेदो में स एक । वह नृत्य जा भाव और ताल प्रादि क सहित (को०)। ५ थालिंगन करना (को०)। ६. इमारत की सबसे हो, कोमल अगा के द्वारा हो और जिसके द्वारा शृगार मादि ऊँची मजिल पर बना हुआ कक्ष (को०)। ७ एक अस्त्र का कोमल रसो का उद्दीपन हाता हो । नाम (को०)। विशेप-साधरणत स्त्रियो का नृत्य ही लास्य कहलाता है । कहते लासक-वि० १. चमकानेवाला । दीप्तिकारक । २ इधर उधर करता है, शिव और पर्वता ने पहले पहल मिलकर नृत्य किया था। हुआ । क्रीडारत (को० । शिव का नृत्य तादव कहलाया और पार्वती का 'लास्य' । यह लासकी-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] नटी । नाचनेवाली स्त्री । नर्तकी । लास्य दो प्रकार का कहा गया है-छुरित और यौवत । लासन-सा पुं० [सं०] १ नाचना । क्रीडा करना । २ इधर उवर साहित्यदर्पण में इसके दस अग बतलाए गए हैं, जिनके नाम इस सचालन करना [को०)। प्रकार हैं-गेयपद, स्थितपाठ, प्रामीन, पुष्पगडिका, प्रच्देदक, लासन - सज्ञा पुं० [ २० लशिंग ] जहाज बांधने का मोटा रस्सा। त्रिगूढ, सैंधवाख्य, द्विगूढ़क, उत्तमोत्तमक और युक्तप्रयुक्त । लहासी। ३ नट । अभिनेता । नर्तक (को०) । क्रि० प्र०-खोलना ।-बांधना । - लगाना। लास्यक-सज्ञा पु० [सं०] नृत्य । नाच (को०] । मुहा० - लासन देना = मस्तूल के चारो ओर रस्सी लपेटना । लास्या-सशा खौ० [सं० ] नाचनेवाली । नर्तको [को०] । कोडी लेना । (लश०)। लाइ@-सहा स्त्री॰ [ स० लाक्षा ] लास । चपठा । लाही । उ०- लासा-सग पुं० [हिं० लस ] १. कोई लसदार या चिपचिपी चीज । जाकी वांकी वीरता सुनत सहमत धीर जाको मात्र मजहु लसत चेप। लुप्राय । उ०-(क) नाम लगि ल्याय लासा ललित लक लाह सी। -तुलसी (शब्द॰) । लिये मस्तूल 1