पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५३४

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लिखंत ४२६५ लिख्या HO 1 लिखत-सज्ञा पुं० [ स० लेख ] भाग्य का लिखा । विधाता का ४ लिखने की मजदूरी। लिखा। विधाता का लेख । भाग्य की बात । उ०-~तजी है लिखाना-क्रि० स० [सं० लिखन ] अकित कराना । लिपिवद्ध पीतम ने प्रीति मेरी, सखी ये लीला लिखत की है ।-पोद्दार कराना । दूसरे के द्वारा लिखने का काम कराना। अभि० न०, पृ० ८थ८ । सयो० कि०-डालना।—देना ।- लेना। लिखा-मज्ञा पुं० [सं० ] लेखक [को०] । मुहा०-लिखाना पढाना = (१) शिक्षा देना। तालीम देना। लिखत-संज्ञा सी० [स० लिखित | १ लिखी हुई बात । लेख । लिपिवद्ध विषय । (२) लेखबद्ध कराना। लिखापढ़ी- यौ०-लिखन पढत । -सक्षा स्त्री० [हिं० लिखना + पढना ] १ पत्रव्यवहार । चिट्ठियो का आना जाना । परस्पर लेतो द्वारा व्यवहार होना। मुहा०-लिखत पढत होना = लिखा पढ़ी होना । लेख के रूप मे जैसे,—(क) लिखापढी करके उनसे यह वात ते कर लो। पक्का होना। (ख) इसके बारे मे बहुत दिनो तक लिखापढी होती रही। २ लिखित पत्र । ३ दस्तावेज । २ किसी विषय को कागज पर लिखकर निश्चित या पक्का लिखधार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लिखना+धार (प्रत्य॰)] लिखने करना । जैसे,—पहले लिखापढी करके तव रुपए दीजिए। वाला। मुहरिर या मुशी । उ०-साँचो सो लिखधार कहावै । क्रि० प्र०—करना ।-होना। काया ग्राम मसाहत करिक जमा बाँधि ठहरावै । —सूर (शब्द०) लिखा-सज्ञा पु० [हि० लिखना ] दे० 'लिक्खाड' | २ लिखन-सज्ञा स्त्री० [ ] १ लिपि या लेख । लिखावट । २ 'लिखवार'। लिखित पत्र । दस्तावेज (को०)। ३ चित्राकन । चित्रकारी (को०)। ४ कर्म की रेखा । भाग्य मे निश्चित बात । लिखारी -सज्ञा स्त्री॰ [हि० लिखना ] दे० 'लिखना' । लिखावट-सञ्ज्ञा सी० [हि० लिखना + प्रावट (प्रत्य॰)] १ लिखे लिखना-क्रि० स० [ म० लिखन ] १. किसी नुकाली वस्तु से रेखा के रूप मे चिह्न करना । अकित करना। २ स्याही मे डूबी हुई हुए अक्षर प्रादि । लेख । लिपि । जैसे,—तुम्हारी लिखावट तो किसी से पढी ही नहीं जाती। २ लिखने का ढंग। लेख- कलम से अक्षरो की प्राकृति वनाना । अक्षर अकित करना। लिपिवद्ध करना। प्रणाली। यौ०-लिखना पढ़ना । लिखापढ़ी । लिखालिखी = दे० 'लिखापढी' । लिखास-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लिखना+पास (प्रत्य॰)] लिग्वने की उ०-लिखालिखी की है नही, देखा देखि की बात ।-कबीर उतावली । उ०-तब एक सज्जन ने मेरी लिखास और युग की सा०,१०८५। धारणा की दूरी को इन शब्दो मे मुझे लिखा था-प्रादमी बडे भले हो । - हिम० ( दो शब्द ), पृ० ५। मुद्दा-किसी के नाम लिखना = यह लिखना कि अमुक वस्तु किमी के जिम्मे है । जैसे,-१००) तुम्हारे नाम निखे हैं । लिखना लिखित-वि० [ स० ] लिखा हुआ । लिपिबद्ध किया हुया । अकिन । पढना-विद्योपार्जन करना। विद्या का अभ्यास करना। लिखित' सज्ञा पुं० १ लिखी हुई बात । लेख । जैसे,—वह लडका कुछ लिखता पढता नही। लिखा पढ़ा = विशेष-व्यवहार (मामले, मुकदमे) मे 'लिखित' चार प्रकार के प्रमाणो मे से एक है। साक्षियो मे भी एक लिखित' साक्षी ३. रंग से प्राकृति अकित करना । चित्रित करना । चित्र बनाना । होते है। अर्थी जिसे लाकर लिखा दे, वह लिखित माक्षो होगा। तसबीर खीचना । जैसे,—चित्र लिखना । उ०-देखी चित्र (मिताक्षरा)। लिखी सी टाढी । —सूर (शब्द॰). ४ पुस्तक, लेख या काव्य २ रचना, लेख या पुस्तक प्रादि । ३ लिखी हुई सनद । प्रमाण- आदि की रचना करना । जैसे,—यह पुस्तक किसकी लिखी है ? पत्र । ४ एफ स्मृतिकार ऋपि । ४ चित्र । तसवीर (को॰) । सयो० कि०-डालना ।-देगा--लेना। लिखितक-सञ्ज्ञा पु० [ भ० लि.सत ] एक प्रकार के प्राचीन चौखूटे लिखनी-सशा स्त्री॰ [ स० लेखनी] १ कलम । २ भाग्यलिपि । अक्षर जो खुतन (मध्य एशिया) मे पाए गए शिलालेखो मे प्रारब्ध । होनी । ३ लिखन की क्रिया या भाव [को०] । लिखवाई-सज्ञा स्त्री० [हि० लिखना ] दे० लिखाई' । लिखितव्य-वि० [सं० ] पालेखन के योग्य । लिखने योग्य [को०) । लिखवाना-क्रि० स० [हि० लिखाना] दे० 'लिखाना' । लिखता-सक्षा पुं० [सं० लि सितृ ] चित्रकार । चितेरा [को०] । लिखवार, लिखहार-सञ्ज्ञा पु० [हि० लिखना] दे॰ 'लिखधार' । लिखेरा सच्चा पुं० [हिं० लिसना ] लिस नेवाला । लेखक । लिखाई-सज्ञा स्त्री॰ [ हि० लिखना] १ लेख । लिपि । २. लिखने लिख्य- सज्ञा पु० [ स० ] दे० 'लिख्या' को०] । का कार्य । ३ लिखने का ढग । लिखावट । लिख्या - सशा स्त्री॰ [स०] १ जूं का अडा। लीख । १ एक परि- यौ०-लिखाई पढाई = विद्याभ्यास । मारा । विशेप दे० 'लिक्षा'। । शिक्षित। मिलते हैं।