पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५४९

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लूकी ४३०८ लतापट्ट लूकी -सञ्ज्ञा पी० [हिं० लूकी ] १ आग को चिनगारी । स्फुलिंग । २ वरवाद करना । तबाह करना। ३. घोसे से या अन्यायपूर्वक उ०—-हिया फाट वह जव ही कूकी। परै आँसु सब होइ किमी का वन हरण करना । अनुचित रीति से किसी का माल होइ लूको । —जायसी (शब्द०)। २ पतली लकडी या तिनके लेना । जैसे,—कचहरी मे जानो, तो अमले लूटते हैं । का टुकडा जिसका सिरा जलता हो । लूका । मुहा० (किमी को) लूट खाना = किसी का धन अनुचित रीति से मुहा०-लूकी लगाना = आग लगाना । जलाना । ले लना । किसी का माल मारना। लून-वि० [सं० ] रूक्ष। रूखा [को०] । ४ बहुत अधिक मूत्य लना । वाजिब से बहुत ज्यादा कीमत लेना । लूखा-वि० [ सं० लुक्ष या (लूक्ष = रूक्ष, रूखा) ] बिना चिकनाहट ठगना। जैसे,—वह दूकानदार गाहको को खूब लूटता है। का । रूखा । उ०—मना मनोरथ छांडि दे तेरा किया न होय । ५ मोहित करना । मुग्ध करना । वशीभूत करना । मन हाथ में पानी मे घी नीकस लूखा खाइ न कोय ।-कबीर (शब्द॰) । करना । उ० छूटो घुघरारी लट, लूटी हैं वधूटी वट, टूटी चट लाज तें न जूटी परी कह । दीनदयाल (शब्द०)। ५ लूगडा-सज्ञा पु० [हिं० लूगा ] १ वस्त्र । कपडा। २ अोढनी। भोग करना। भोगना । जैसे,—सुस लूटना, पानद लूटना । चादर । लूगा-मञ्चा पु० [ दश० ] १ वस्त्र । कपड़ा । उ०-रोटो लूगा नीके विशेप-इस क्रिया का प्रयोग सुख या आनद का भोग करने के राखें पागहु की वेद भाष भलो है तेरो ताते भानंद लहत अथ मे भी मुख, प्रानद, मौज प्रादि कुछ शब्दो के साथ होता हो । -तुलसी (शब्द॰) । २ पोता। है। जैसे,--पानद लूटना, मुख लूटना। लूघर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लूका] जलती हुई लकडी । लुकारी। लूटि -सज्ञा स्त्री० [हिं० लूटना ] दे॰ 'लूट'। उ०-गए कचुकि लूबा-सशा पुं० [ दश० ] कन्न खोदनेवाला । गोरकन । (ठग) । बंद टूटि लूटि हिरदय सो पाई। करति मनहि मन सेव निकट रय दयो देखाई।—सूर (शब्द०)। लूट-सञ्ज्ञा स्रो॰ [ हि० लूटना ] १ बलात् अपहरण । किसी के माल का जबरदस्ती छीना जाना। किसी की धन सपत्ति या वस्तु लून'--सशा पुं० [ इवरानी ] यहूदियो के एक पुराने पंगवर का का बलपूर्वक लिया जाना । डकैती । जैसे,—(क) दगे मे बाजार नाम । को लूट हुई । (ख) सिपाहियो को लूट का माल खूब मिला । लूत' -सशा स्त्री० [सं० लूता ] मकडी । कर्णनाभ । उ०-लगे लूत क्रि० प्र०—करना ।-पडना ।-मचना । —होना । के जाल ए, लखो लमत रहि भौन । मतिराम (शब्द॰) । यौ०-लूट खमोट = (१) छीना झपटी । लूटमार । (२) शोपण। लूत' -वि० [फा० ] नग्न । नगा (को॰] । लूटखूद, लूटमार, लूटपाट = लोगो को मारने पाटने और लूत - वि० [ ] छिन्न । सहित । टूटा हुआ । विभक्त । उनका धन छीनने का व्यापार । डकैती और दगा। लूता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ मकडी । कर्णनाभ । २. फफोले की २ लूटने से मिला हुप्रा माल । अपहृत धन । जैसे,-लूट मे सव तरह की फुमो जो, कहते हैं, मकडा के मूतने से निकलती सिपाहियो का हिस्सा लगा। है। वृक्का । ममवरण। लूट क-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लूट + क (प्रत्य॰)] १ जवरदस्ती छीनने- वाला । लूटनवाला । २ डाकू । लुटेरा । ३ काति हरनेवाला । विशेप-वैद्यक के ग्रथो मे 'लूता' रोग कई प्रकार का कहा गया शोभा मे बढ जानवाला । उ०-प्रसनि सरासन लसत, सुचि है और कई प्रकार की विपली मकडियो की चर्चा है। जैसे,- सर कर, तून कटि मुनिपट लूटक बसन के । —तुलसी (शब्द॰) । त्रिमडला, श्वेता, कपिला, रक्तलूता इत्या द । विप के सवघ मे कहा गया है कि मकडी के थूक, नख, मूत्र, रज, शुक्र -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लूटना+ खूदना ] लोगो को मारने और उनका वन छीनने का व्यापार । डाका और दगा । लूटमार । और पुरीष के द्वारा विष का सचार होता है। लूता रोग यदि अच्छा न हो, तो यादमी मर जाता है लूटना-क्रि० स० [स० लुट् (= लूटना)] १ बलात् अपहरण करना । ३ पिपीलिका । च्यूटो। जबरदस्ती छीनना । भय दिखाकर, मार पीटकर या छीन झपट- कर ले लेना। जैस,-रास्ते में डाकुओ ने सारा माल लूट लूता-सशा पुं० [हिं० लूका ] [ सी० अल्पा० लूती ] लकही लिया । उ०—(क) केशव फूलि नचै भ्रकुटी, काट लूटि नितव जिसका एक सिरा जलता हो । लू का । लुपाठा । उ०—सोवत मनसिज प्रानि जगायो पठं संदेस स्याम के दूते । बिरह समुद्र लई बहु काली ।-कशव (शब्द॰) । (ख) जानी न ऐसी चढा सुखाय कौन विधि किरचक योग भाग्न के लूते । सूर चढी मे केहि धौ कटि वीच ही लूटि लई सी। पद्माकर (शब्द॰) । (ग) चोर चख चोरिन चलाक चित चोरी भयो, (शब्द०)। लूटि गई लाज, कुल कानि को कटा भयो।-पद्माकर (शब्द०)। मुहा०—लूता लगाना = प्राग लगाना। सयो॰ क्रि—लेना। लूताततु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लूतातन्तु ] मकही का जाला [को०] । यौ०-लूटना पाटना । लूटना मारना । लूतात-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] चीटा [को०] । , मुहा०-लूट खाना = दूसरे का धन किसी न किसी प्रकार ले लेना। लूतापट्ट-सज्ञा पुं० [सं] मकडी का असा [को०] । स० लूटखूद-