पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५५८

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लेहना ४३१७ जाती है। yo लेहना - सचा पुं० [सं० लेह ( आहार) ] पशुओ का चारा । का ज्ञान लैंगिक ज्ञान कहलाता है। इसी को न्याय मे लेहना -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लहना ] १ खेत मे कटे हुए शस्य या अनुमान कहते हैं। फसिल की वह डाँठ जो काटनेवाले मजदूरो को काटने की २ मूर्तिकार । शिल्पी । भास्कर । कारीगर (को०) । मदूजरी मे दी जाती है। २ कटी हुई फसिल का वह बाल लैंगिक-वि० [ वि० सी० लैगिकी ] १ चिह्नो या लक्षणो पर सहित डठल जो नाई, धोवी आदि को दिया जाता है। ३ अाधारित । अनुमित (को०) । २. लिंग सववी । जननेंद्रिय सबवी । डठल या बयाल आदि की वह मात्रा जो उठानेवाले के दोनो ३ मूर्तिकार (को०)। हाथो के वीच मे पा सके । ४ दे० 'लहना' । लैंगी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० लैंड गी ] लिंगिनी नाम फी बूटी [को०] । लेहसुआ-सज्ञा पुं० [हिं० लेस ] एक प्रकार को घास । कनकौवा । लैंगोद्भव- [-मञ्ज्ञा पुं॰ [ स० लङ गोद्भव ] लिंग की उत्पत्ति को कया विशेष—इसकी पत्तियाँ चार अगुल लबी, तीन अगुल चौडी, या पाख्यान [को०)। ऊपर को नुकीली और धारीदार होती है। यह घास वरसात ले डों-सज्ञा स्त्री॰ [ अ० ] एक प्रकार की घोड'गाडी । मे उत्पन्न होती है और बहुत कोमल तथा लमीली होती है। विशेप-इस घोडागाडी मे कार को योर टप होता है । यह टप इसका साग भी बनाया जाता है और इसे पशु भी खाते हैं । बीच मे से इस प्रकार खुलता है कि पिछला अश पीछे की ओर इसके फूल नीले रंग के और छोटे छोटे होते हैं। इसकी पत्तियाँ और अगला आगे की ओर सिकुडकर दव और नीचे बैठ जाता वेसन मे लपेटकर तेल आदि मे तलने से रोटी की भांति फूल है। इससे आमने सामने दोनो ओर बैठने की चौकियां होती है। लप- सज्ञा पुं० [ ] दीपक । चिराग। लेहसुर-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] कुम्हारो का एक अौजार जिससे वे मिट्टी लैंसर -सझा पुं० [अ० परिसाले के सवारो के तीन भेदो मे से एक को मिलाते हैं । पाँम् । जो माला लिए रहते है और जिनके घोडे भारी होते हैं । लेहाजा-क्रि० वि० [अ० लिहाजा] इसलिये । इस वास्ते । इस कारण । लैल-अव्य [ हिं० लगना ] तक । पर्यंत । लेहाड़ा-वि० [ देश० दे० 'लिहाडा' । लैकुची -सशा पुं० [सं०] विशेष प्रकार के रेशो, ततुनो या सूत्रो से लेहाडापन-सशा पुं० [ देश० ] दे० लिहाडापन' । निर्मित एक परिधान [को०) । लेहाड़ी 1- सञ्चा स्त्री० [हिं० लिहाडी] अप्रतिष्ठा । अपमान । (दलाल)। लैटिन-सचा स्त्री० एक भाषा जो पूर्व काल मे इटली देश मे बोली जाती थी। क्रि० प्र०—करना ।—लेना।- होना। लहाफ-सचा पु० [अ० लिहाफ ] दे० 'लिहाफ' । विशेष-किसी समय मे सारे यूरोप मे यह विद्वानो और पादरियो लेहिन-सशा पु० [ स० ] सुहागा [को०] । की भाषा थी। इस भाषा का साहित्य बहुत उन्नत था, और इसीलिये अब भी कुछ लोग इसका अध्ययन करते हैं। लेही -सक्षा स्री० [सं० ] कान के अग्रभाग मे या ऊपर होनेवाला एक रोग को०] 1 लैतोलाल 1-सज्ञा पुं० [अ० ] हीला हवाला । टाल मटूल (को०] । लही-वि॰ [स० लेहिन्] आस्वादन करनेवाला। चाटनेवाला [को॰] । लैन - सज्ञा स्त्री० [अ० लाइन ] १ सीघो लकीर जिसमे लबाई मात्र हो। २ सीमा की लकीर । ३ कतार । पक्ति । ४ पंदल लह्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह पदार्थ जो चाटने के लिये हो। वह सिणहियो की सेना। जो चाटा जाय । यह भोजन के छह प्रकारो मे से एक है। चटनी । उ०—विविध भांति के रुचिर प्रचारा। लेह्य चोप्य यो०-लैनडोरी- पेशखेमा। वर पेय प्रकारा ।- रघुराज ( शब्द०)। २ अवलेह । ५ मिपाहियो के रहने की जगह । वारक । लेह्य-वि० चाटने के योग्य । जो चाटा जाय । लैया-सज्ञा पुं० [हिं० लपना ?] वह वान जो अगहन मे कटता है। जडहन । शाली। लवक। लैग'-वि० [ स० लैंड ग ] व्याकरण में लिंग से सबधित (को॰) । लैरू-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० लेह ] दे० 'लेरुवा' । उ०-उद्विग्ना और विपुल लैग-सचा पु० अठारह पुराणो मे एक पुराण । विकला क्यो न सो धेनु होगी । प्यारा लैरू अलग जिसकी आंख लै गधूम-सज्ञा पु० [ स० लंड गधूम ] भज्ञ पुरोहित । मूर्ख पुरो- से हो गया है।-प्रिय०, पृ० १३१ । हित (को०] । लैल-सशा स्त्री॰ [फा०] रात्रि । निशा । यामिनी । लै गिफ-सज्ञा पुं० [ स० लंड गिक ] १ वैशेषिक दर्शन के अनुसार लैला-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ 'कैस' की प्रेमिमा, जिसके प्रेम मे वढ् अनुमान प्रमाण । वह ज्ञान जो लिंग द्वारा प्राप्त हो । पागल हो गया था । अत सब उसे 'मजनू', 'मज्नून' (पागल) विशेप-इसका स्पष्ट लक्षण सूत्र मे न कहकर इसे उदाहरण कहने लगे थे । 'लैलामजनू' की प्रेम कथा की नायिका । द्वारा इस प्रकार लक्षित किया गया है कि यह इसका यौ०-लैला मजनू = (१) लैला और मजनू' का प्रेमाख्यान । कार्य है, यह इसका कारण है, यह इसका सयोगी है, इस नाम की प्रेमकथा । (२) प्रेमी प्रेमिका । यह इसका विरोधी है, यह इसका समवाची है, आदि, इस प्रकार २. प्रिया । प्रेयसी । ३. सुंदरी । श्यामा (को०)।