1 लोपा। लकडी। लोपामुद्रा लोभना लोपामुद्रा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [नं०] १. अगस्त्य ऋपि की स्त्री का नाम । किए जाते हैं। जो पीले रंग की वू'दो के रूप के साफ याने होते हैं, वे कौडिया कहलाते हैं। उनको छाँटकर युरोप भेज विशेष-पुराणो मे लिखा है कि अगस्त्य ने बहुत दीर्घ काल तक देते है तथा मिला जुला और चूरा भारतवर्ष और चीन के ब्रह्मचर्य धारण किया था और वे विवाह नहीं करते थे। लिये रख लेते हैं। एक और प्रकार का लोबान जावा, सुमाया एक नार उन्होने स्वप्न मे देखा कि हमारे पितर गड्ढे प्रादि स्थानो से आता है, जिसे जावी लोबान कहते है। मे उलटे लटके हुए हैं। अगस्त्य ने उन्हे इस प्रकार युरोप मे इससे एक प्रकार का क्षार बनाया जाता है जिसे अधोमुख लटका देखकर उनसे कारण पूछा। पितरो ने कहा वैजोइक एसिड कहते हैं। लोबान प्राय. जलाने के काम मे कि यदि तुम विवाह करके सतान उत्पन्न करो, तो हम लोगा लाया जाता है, जिससे सुगधित धूआँ निकलता है । वैद्यक मे को इस यातना से छुट्टी मिले। अगस्त्य ने बहुत हूँढा, पर कुहुरलोवान का प्रयोग सुजाक मे और जावी लोबान का प्रयाग उनको सर्वलक्षणो से युक्त कोई कन्या विवाह करने योग्य खाँसी मे होता है। यह अधिकतर मरहम के काम मे लाया नही मिली। निदान उन्होने मव प्राणियो के उत्तम उत्तम जाता है। अग लेकर एक कन्या वनाई। उस समय विदर्भ देश का राजा लोबानी-वि० [अ०] १ लोबान से युक्त । लोबानवाला । लोबान जैसा । पुत्र के लिये तप कर रहा था। अगस्त्य जी ने लोपामुद्रा उमी यौ०-लोवानी कद = एक प्रकार का सफेद कद या सुगवित विदर्भराज को प्रदान की। जब वह बडी हुई, तब अगस्त्य जी ने विदर्भराज से कन्या की याचना को। विदर्भराज ने लोपामुद्रा लोविया-सशा पुं० [सं० लोम्य, मि० अ० ] एक प्रकार का बोडा । अगस्त्य जी को सौंप दी और अगम्त्य जी ने उसका पाणिग्रहण कर उसे अपनी पत्नी बनाया । विशेप-यह सफेद रंग का और बहुत बडा होता है। इसके फल एक हाथ तक लंबे और तीन अगुल तक चौडे और बहुत पर्या०-लोपा । कोशीतकी । वरप्रदा । कोमल होते हैं और पकाकर खाए जाते है । बीजो से दाल और २ एक तारे का नाम जो दक्षिण में अगस्त्य मंडल के पास उदय दालमोट बनाते हैं । इसकी और भी जातियां है, पर लोबिया होता है। सबसे उत्तम माना जाता है। इसकी पत्तियां उर्द के सदृश पर लोपायक -सरा पुं० [सं० ] दे० 'लोपाक' । उससे बडी और चिकनी होती हैं। पौवा शोभा और भाजी लोपायिका-सा स्री० [ ] एक प्रकार की चिहिया। के लिये वागो मे बोया जाता है और बहुमूल्य होता है । उ०- ल पाश, लोपाशक-सज्ञा पुं० [सं० ] गीदड । सियार | कचन के धाम कहि काम जहाँ ये उपाधि, राम राज भलो लोपिका-सन्चा रसी० [ स०] एक प्रकार की मिठाई (को०] । जहा सबै खाय लोबिया । हनुमन्नाटक ( शब्द०)। लोपी- वि० [ स० लोपिन् ] १ भंग करनेवाला । नष्ट करनेवाला । लोविया कजई-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लोबिया+कंजई ] एक रग जो २ हानि पहुंचानेवाला । ३ वह जो लुप्त हो सके को०] । गहरा हरा होता है। लोप्ता-वि० [सं० लोप्त ] भग करनेवाला । तोडनेवाला । नाशक लोभ-मश पुं० [सं० [ वि० लुब्ध, लोभी ] १ दूसरे के पदार्य को (को०] । लेने की कामना। लोन-गक्षा पु० [सं० ] लूट का माल । चोरी की संपत्ति [को०] । -तृष्णा । लिप्सा । स्पृहापर्या० । काक्षा । शस। गर्द्ध । इच्छा । लोवत -सज्ञा स्त्री० [अ०] १ पुतली । गुडिया । २ खिलौना [को०] । वाछा । अभिलापा। यो०-लोवतबाज = कठपुतली का खेल करनेवाला । २ जैन दर्शन के अनुसार वह मोहनीय कर्म जिसके कारण मनुष्य किसी पदार्थ को त्याग नहीं सकता। अर्थात् यह त्याग लोवा-सज्ञा स्त्री० [ स० लोमाश या हिं० लोमडी ] लोमडी । उ०- का बाधक होता है। अधैर्यता । अधीरता (को०)। ४ कृप- कीन्हेमि लोवा इदुर चांटी। कीन्हेसि बहुत रहहिं खनि माटी।- णता । कजूसी। जायसी (शब्द०)। लोवान- लोभन'-वि० [सं०] [ वि० स्त्री० लोभनी] लुभानेवाला। उलझाने -सशा पुं० [अ० ] एक वृक्ष का सुगधित गोद । या फंसानेवाला (को०] । विशेप-यह वृक्ष अफ्रिका के पूर्वी किनारे पर, सुमालीलैंड मे प्रलोभन । लालच । श्राकर्पण । अरव के दक्षिणी समुद्रतट पर होता है और वही से लोबान लोभन:-सज्ञा पुं० [सं०] १ अनेक रूपी में भारतवर्ष मे पाता है । कुहुर जकर, कुहुर उनस, उलझन । २ सुवर्ण । सोना (फो०] । कुहर शफ, कुहु कशफा आदि इसी के भेद है। इनमे से कई लोभनाg+ -क्रि० अ० [हिं० लोभ ] लुब्ध होना। मुग्ध होना। दवा के काम मे पाते हैं। इनमें लोबानकशफा, जिसे धूप उ०-(क) करनफूल नासिक अति सोभा। ससि मुख प्राइ सूक भी कहते है, भारतवर्ष में लोबान के नाम से बिकता है। जनु लोभा । —जायसी (शब्द०)। (ख) सोहत सुबरन सुरय यह गोद वृक्ष की छाल के साथ लगा रहता है। अरब फनद मदिर सम प्रोभा। जिनमे रतन विहग बने जेहि लखि से लोबान बबई पाता है। वहाँ छांट छांटकर उसके भेद जग लोभा । जरासघबघ (शब्द॰) । RO ८-७०
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५६८
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