पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५६७

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होना। लोना' ४५२६ लोपापिका लोना-वि० [हिं० लोन ] [ भाव० सशा लोनाई ] १ नमकीन । लोनी' - मग मी० [हिं० लवण, लोन ] १ फुलफे की जाति का एक प्रकार का माग । सलोना । २ सुदर । उ०--(क) लालन जोग लखन प्रति लोने। भे न भाइ अस अहहिं न होने ।—तुलसी (शब्द०)। (स) विशेप-इसकी पत्तियां रहत छोटी छोटी होती हैं। यह ठढी नाउन प्रति गुन खानि तो बेगि बोलाइहो। करि सिंगार अति जगह पर, जहा मीट होती है, उत्पन्न होती है। यह म्वाद में लोनि तो विहंसत्ति पाइहो ।--तु सी (शब्द॰) । पटाम लिए होती है। इसमे रग विरग रे फूल लगते है। लोना–सक्षा पु० [हि० लोन } १ एक प्रकार का रोग जो ईंट, इमे गोग गमलो मे बोते हैं और वितायती गोनी कहते है। पत्थर और मिट्टी की दीवारो मे लगता है । नोना । हमके वीज विलायन से पाते है। विशप- इसने दीवार झडने लगती और कमजोर हो जाती है, २ वह क्षार जो चने की पत्तियो पर बैठता है। ३. एक प्रकार थोडे दिनो मे उसमे गड्ढे पड जाते हैं, और वह कटकर गिर की मिट्टी जिससे लोनियां लोग शोग और नमक बनाते हैं। पडती है। यह रोग प्राय नीव के पास के भ ग में प्रारभ होता ४ दे० 'लोना। है और ऊपर की ओर बढता है। लोनी-कि० मी० [हिं० लोना ] लावण्यमयी । सुदरी क्रि० प्र०-लगना । लोनाला पुं० सं० नवनीत लौनी। मक्खन । नवनीत । २ वह धून या मिट्टी जो लोना लगने पर दीवार से झटकर गिरती लोप-मक्षा पुं० [सं०] [ नशा लोपन ] [ वि० गुप्त, नोरफ, लोप्ता, है। यह खेत मे डाली जाती है और खाद का काम दती है। लोप्य ] १ नाश । क्षय। २ विन्चेर । जैसे, - फर्म का लोप ३ नमकीन मिट्टी, जिससे शोरा बनाया ज ता है । ४ वह क्षार प्रदर्ग। अभाव । ४ व्याकरगा के चार प्रधान जो चने की पत्तियो पर इकट्ठा होता है और जिसके कारण नियमा मे से एक, जिसके अनुसार शब्द के साधन में किसी उसकी पत्तियां चाटने मे खट्टी जान पडनी है। ५ एक प्रकार वरण को उठा दो है। जो,-अपिधान में प्रका लाप करके का कोडा जो धोये की जाति का होता है और प्राय, नाव के पिधान शब्द बनाया जाता है। ५ छिरना । अतन होना । पेंदे में चपका हुआ मिलता है। ६ भमलोनो नाम की घाम उ०--यहु बरपि प्रायुध वारिधर सम दियो पटरय लोप फै। जिसे रसायनी घातु सिद्ध करने के काम मे लाते है। उ०—(क) गिरिधर (शब्द०)। ६ तोढना । भग (को०)। ७ प्रति- कहाँ सो खोण्हु बिरवा लोना । जेहि तें होइ म्प प्रो सोना । क्रमण। उल्लघन (को०)। ८. मवहे नना । उपेक्षा (को०)। जायसी (शब्द॰) । (ख) जहँ लोना विरवा के जाती। कहि के ६ व्याकुलता । पालता को०)। संदेस पान को पाती।—जायसी (शब्द०)। लोप-वि० [म.] पायक । नाशक [को०] । लोना' क्रि० स० [स० लवण] फसल काटना । उ -बीज बोई जोई लोप- अत लोनिए सोइ समुझ यह बात नहिं चित्त परई ।-पूर लोपन--मा पु० [म०] १ तुत करना । तिरोहित करना। २ नष्ट -सरा पं० [सं०] भग । उड [को०) । (शब्द०)। व ना। भग करना । विनागन । - सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक कल्पित स्त्री जो जाति की चमार और जादू टोने मे बहुत प्रवीण कही जाती है। नोना चमाइन ! लोग्ना ५--क्रि० स० [सं० लोग्न ] १ लुप्त करना। मिटाना । उ.-तू काँवरू परा बस टोना। भूला जोग छरा तोहि लोना - (फ) पलि राकोा लोपो सुचालि निज कठिन कुचालि —जायसी (णन्द०)। चलाई।-तुनसी (शब्द०) । (ख) नब ते परम मनोहर गोपी । लोनाई -सक्षा स्त्री० [हिं० लोना+ई (प्रत्य॰)] लावण्य । सुदरता। नंद नदन के नेह मेह जिनि लोक लीक लोपी।-मूर (शब्द०)। उ०- हृदय सराहत सीय लोनाई। गुरु समीप गवने दोउ (ग) लोपे कोपे इद्र ली रोपे प्रलय अकाल । गिरिधारी राखे भाई । —तुलसी (गब्द०)। म गो, गोगी, गोपाल ।-विहारी (शब्द०)। २ छिपाना । लोनार-सज्ञा पुं० [हिं० लून (= नमक)+पार (प्रत्य०) या सं० ३ भग काना (को०)। लोन + हिं० पार (प्रत्य॰) ] वह स्थान जहां ने नमक पाता लोपना--कि० प्र० १ लुप्त होना । मिटना । उ०-राय दसरत्य के हो। जैसे,-नमक की सान, झील या क्यारी। समर्थ राम राय मनि तेरे हेरे लोपै लिपि विधिह गनक की। लोनिका-सज्ञा स्त्री० [हिं० लवण, लोन ] लोनी नामक साग । —तुलसी (शब्द०)। २ छिना । (क्क०)। विशेष दे० 'लोनी'। उ०-रुचितल जानि लोनिका फांगी। लोपाजन--सशा पुं० [सं० लोपाजन ] वह कल्पित अजन जिमके कढी कृपालु दूसरी मांगी।—सूर (शब्द॰) । विषय मे यह प्रसिद्ध है कि इसके लगाने से लगानेवाला अदृश्य लोनिया-सज्ञा पुं० [हिं० लवण, लोन + इया (प्रत्य॰)] एक जाति हो जाता है। जो लोन या नमक बनाने का व्यवसाय करती है। यह जाति लोपा-मज्ञा स्त्री॰ [म०] १ एक प्रकार की चिहिया । २ दे० शूद्रो के अतर्गत मानी जाती है। नोनियाँ । (अब ये लोग अपने 'लोपामुद्रा'। को पौहान कहते है)। लोपापक-सजा पुं० [स०] गीदड । सियार । लोनिया-सच्चा स्त्री॰ [ हिं० लोन ] लानी नामक साग । लोपापिका-सशा स्त्री० [सं०] शृगाली । मादा सियार [को०] । लोना लोक,