पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मल पृ०४०। मलारी ३१२ मलिनाना मलारी-सज्ञा स्त्री॰ [ म० मल्लारी ] वमत राग मी एक गगिनी मलिन्छ-वि० [ म० म्लन्छ या मलिष्ट (= गक्षिन)] मग्ग । गदा । मलिक का नाम । -मसा पुं० [सं० ग्लन्छ, हि० मलिच्छ ] 1. मलिन'। मलाल-मज्ञा पुं० [अ० ] १ दुख । रज । उ.-मरे मलिछ विमवामी दया । पत में ग्राड कोन्दि तौरि मुहा०--मलाल श्राना या मलाल पैदा होना = (१) रंज होना। मेगा ।-जायमी ग्र० ( गुप्त ), पृ० २५६ । मन मे दु ख होना । (२) मन मे मैल उत्पन होना । मलाल मलित-महा पुं० [ 10 ] एक प्रकार का छोटी कूची जिगस मनार निकलना = मन मे दवा हुमा दुख कुछ बक झककर दूर नक्काशी के गहनो को माफ करत है। करना। मलिन'-वि० [ मं०] [वि० मी. मरिना, मलिना ] " मनयुक्त। २ उदासीनता । उदामी । मैना। गंदना । म्वन का उनटा । 30-~चाह न चपवनी मलावरोध-मज्ञा पु० [ म० ] मल का झकना । कब्जियत (को०] । को थलो मलिनी ननिनी फि निशान मिवार-रणव मलावह-मक्षा पुं० [ मै० ] मनु के अनुमार पापों की एक कोटि । (णब्द०)। २ पिन । बगा। जिमका ग मगर विशेष- इसमे कृमिकीटो और पक्षियो की हत्या, मद्य के माथ हा। मटमला। धूमिन । बदरग। 50--मलिन भा ग्म एक पात्र में लाए हुए पदार्थों को खाना, फल, ईंधन और माल मगेवर मुनिजन मानम ग। ---गुर (गद०)। फूल की चोरी और अधैर्य ममिलित है। पापात्मा। पापी। " धीमा। फीरा । जैन, ज्योति मनिन मलाशय-भक्षा पुं० [ ] १ पेट । २ अंतड़ियाँ (को०] । होना। ६. म्नान । विपरागण । उदासीन । जमे, मलिन- मलाह--सज्ञा पु० [हिं० मल्लाह ] द० 'मल्लाह' । उ.--रूप मन, मलिनमुस। कहर दरियाव मे तरिवो है न मलाह । नैनन ममुझावत रहे यौ०-मलिनप्रभ । मलिनमस । मलिनाकाश = धूमिल पाकाम । निसि दिन ज्ञान मलाह ।-रसनिमि (अन्द०)। उ.-भूलि धूम पर मेण करि दीग मनिनाकाश --गुदर मलाहत--सज्ञा स्त्री० [अ० ] चेहरे पर का नमक । मौदर्य । उ०- ग्र०, भा०२, पृ०७४८ । शोर दरिया तक मलाहत का तेरी पहुंचा है शोर । बेनगा मलिन'-मसा पु० १ एक प्रकार के माधु जो मंना गुचना कपडा भागे तेरे लव के नमकदा हो गया ।--कविता० को०, भा० ४, पहनते है। पाशुपत । २ मट्टा। ३. मोहागा। ४ काला अगर या अगर नदन । ५ गो का ताजा दूध । ६ हम। मलिंग-सज्ञा पु० [फा० मलग] द० 'मलग' । ७. दस्ता। मू। ८ दोप। हरलो की चमक और रग मलिद-सज्ञा पुं० [ म० मिलिन्द ] भ्रमर । भीरा । उ०—(क) का फीका और धुंधला होना। रत्नों के लिये यह एक दाप मल्लिकान मजुल मलिंद मतवारे मिले, मद मद मारुत ममझा जाता है। मुहीम मनसा की है ।-पद्माकर (शब्द॰) । (ख) नेह मरीखी मलिनता-मज्ञा मी॰ [ म० ] मलिन होने ा भाव । मनापन । रज्जु नहि, कविवर कर विचार । वारिज वांध्यो मलिंद लखि, मलिनत्व-सहा पु० [ म० ] मलिन होन का भाव। मलिनता । दार बिदारन हार ।-दीनदयाल (शब्द०)। (ग) मजुन मैनापन मालिन्य। मजरी पं हो मलिद विचारि के भार सम्हारि के दीजियो। -व्यग्यार्थ (शब्द०)। मलिनप्रभ-वि० [सं०] जिमको काति मलिन हो। धूलिघूमर । मलिक-मज्ञा पुं० [अ० । मं० ] [स्त्री० मलिका] १ राजा । धुंधला है। तव्ये चितइ मनिक असलान, सव्व सेन मह पलइ पातिमाह। मलिनमुख' '-सज्ञा पुं० [ म०] १ अग्नि । प्राग । २चन की --कीर्ति०, पृ० ११० । २ अधीश्वर । ३ मुसलमानो की एक पूछ । ३ प्रेत । ४ एक प्रकार का बदर (फो०) । जाति का नाम जो प्राय कृपि कर्म करती है। ये लोग मध्यम मलिनमुख-वि० १ जिमका मुंह उदास हो। उदानीन वदन । श्रेणी के माने जाते हैं। ४ किन्नरो और कथको के एक वर्ग २ क्रूर । ३. सन। की उपाधि। मलिनाघु-सझा पुं० [ सं० मलिनाम्बु ] ममी । म्याही । मलिकजादा-तज्ञा पुं० [अ० मलिक+फा० जादह, ] वादशाह का मलिना-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ रजस्वला स्त्री। २ साल माँट । लडका । शाहजादा [को०] । ३ छोटी भटकटया। मलिका-सज्ञा स्त्री० [अ० मलिकह, ] १ रानी। २ अधीश्वरी। मलिनाई-मझा स्त्री० [हिं० मखिन+श्राई (प्रत्य॰)] मैलापन । मलिका-सशा मा० [हिं० ] द० 'मल्लिका' । मनिनता। उ०—(क) मुसी भए मुरमत भूमिमुर खलगन मलिक्ष-सज्ञा पु० [ म० म्लेच्छ ] द० 'म्लेच्छ' । उ०—तवही मन मलिनाई । सबै मुमन विकसत रवि निकसत कुमुद विपिन विश्वामित्र तह विविध मुग्रायुध वाहि । व्याकुल कीन्ह मलिक्ष विलखाई । —तुलसी (शब्द०)। (स) होम हुताशन धूम दल सब शक यवन विदाहि ।-पद्माकर (शब्द॰) । नगर एक मलिनाइय।-केशव (शब्द॰) । मलिन्छ-सक्षा पुं० [ म० म्लेच्छ ] २० 'म्लेच्छ' । उ०—तेज मलिनाना-क्रि० प्र० [हिं० मलिन से नामिक धातु] मैला होना। तम श्रश पर, कान्ह जिमि वस पर, त्यों मलिच्छ वस पर उ०-भर नेह सोहैं खरे निपट रहे मलिनाय । शृ० स० सेर सिवराज है।-भूपण ग्र०, पृ० ३७ । (शब्द०)। 30-