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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/६१

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HO मलूक' ३८२० मलूक' '-सज्ञा पु० [सं० ] १ एक प्रकार का कीडा। २. एक प्रकार मलैगिरि- सज्ञा पु० -[ म० मलयगिरि ] २० 'मलयगिरि'। उ०- का पक्षो । उ०—मैन। मलूक कोइल कपोत । बगहस और वेना नाग मलागारे पीठो । सास माय होइ दुइजि बईठी । कलहस गोत ।-सूदन (शब्द०)। ३ बौद्ध शास्त्रानुसार एक -जायमी ग्र० ( गुप्त ), पृ० १५६ । सख्यास्थान । ४ द० 'अमलूक' । मलैया -सञ्ज्ञा मा [हि मलाई ] एक प्रकार का दूध का झाग मलूक '-वि० [दश०] मुदर । मनोहर । उ०—प्यारी प्यारी वे मलूक जो जाड के दिनो मे रात भर दूध को पोस में रखकर मथने हारयाला कुणे। शामा छबि आनद भरी सब सुख की पुजे । से तैयार होता है । -श्रीधर (शब्द॰) । मलोत्सर्ग-सज्ञा पुं० [ ] मलत्याग । गौच को०) । मलूकदास-सञ्ज्ञा पु० [ दश०] एक सत कवि । उ० –तेरोइ एक भरोसः मलोल-मक्षा पुं० [अ० मलूल ] ८० 'मलाला। मलूक को तेरे ममान न दूजो जी है। एहो मुरार पुकार मलोलना-क्रि० अ० [अ. मलूल, हि० मलोन ] दुखी होना । कहीं अब मरी हसी नाह तेरी हमी है। -कविता कौ०, पछताना। भा०२, पृ० १६७ । मलोला-मज्ञा पुं० [अ० मलूल या पलवला ] १ मानसिक व्यथा । विशेप-ये इलाहाबाद के कडा गाँव के लाला सुदरदास कक्कड दुख । रज । उ०-राध अहो हरि भावते का भरिक भुज (खत्री ) के पुत्र थ। इनका जन्म सवत् १६३१ वैशाख भेटिए मेटि मलोले । - देव (शब्द॰) । कृष्ण ५ को हुआ और १०८ वर्ष की अवस्था में सवत् मुहा.-मलाला या मलोले श्राना- दु ख होना। पछतावा होना १७३६ मे इन्होने अपना शरीर त्याग किया था। पश्चात्ताप होना । मलोले खाना = मानसिक व्यथा सहना । मलून-सञ्ज्ञा पु० [सं० मल ] पक्वाशय मे विष्ठा से उत्पन्न एक दुख उठना । उ०-उन्हाने ममोम के मलोले खा के कहा । प्रकार के काडे । उ०—-इन ( कृमियो ) के पांच नाम है- -इ शाअल्लाह (गन्द०)। दिल के मलोले निकालना = भडास ककेरुक, मकेरुक, सौसुराद, मलून जौर लेलिह । -माघव०, निकालना । कुछ वक झककर मन का दुख दूर करना । पृ०७१। २ वह इच्छा- जो उमड उमडकर मानामक व्याकुलता उत्पन्न मलूल-वि० [अ० ] दुखी। रजीदा। उदास। उ०-भला अपने करे । अरमान । जैसे,—मेर मन का मलाला कब होगा। दिल कू करी मत मलूल, रखो उस कतै खोल मानिद फूल | (गीत )। -दक्खिनी०, पृ० २३६ । क्रि० प्र०-श्राना ।-उठना-निकालना। -सक्षा पु० [ स० म्लेच्छ ] द० 'म्लेच्छ' । मल्यागिर -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मलयागिर ] ८० मलयगिरि' उ०- मलेच्छ-सका। पु० [ स० म्लेच्छ ] दे० 'म्लेच्छ' । उ०-पाछे एक नाम अमर मल्यागेर भाई। पीवता विष अमृत हो जाई । मलेच्छ वा गाम ऊपर चढ़ि के (प्रायो ), वो लराई मे -कवीर सा०, पृ० ८६२ । कृष्णदास देह छोरी ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २३८ । मल्ल-सज्ञा पु० [सं०] १ एक प्राचीन जाति का नाम । मलेछ - सज्ञा पुं॰ [ स० म्लेच्छ, हिं० मलेच्छ, मलेछ.] दे॰ विशेप - इस जाति के लोग द्वद्वयुद्ध में वडे निपुण होते थे, 'म्लेच्छ' । उ०-मलेछ सोई जा मल के खावे सो मल, कवहि इसीलिये द्व द्वयुद्ध का नाम मल्लयुद्ध और कुश्ता लडनवाले ना धोवै ।-सत० दरिया, पृ०६७ । का नाम मल्ल पड गया है।। महाभारत म मल्ल जाति, उनके मलेटरी-सञ्ज्ञा सी० [अ० मिलिटरी ] सेना । फौज । उ०-मलेटरी राजा और उनके दश का उल्लख है। भारतवर्ष के अनेक ने बहुरा चेथरू को गिरफ्फ कर लिया है। -मैला०, पृ० १ । स्थान जम मुलतान ( मल्लस्थान ) मालव, मालभूमि आदि मे मल्ल शब्द विकृत रूप मे मिलता है। त्रिपिटक मे कुशनगर मलेपज-पहा पु? [ दश० ] अधिक अवस्था का घोडा । बुवा घोडा । मे मल्लो के राज्य का होना पाया जाता है। मनुस्मृति मे मलेयाल - - - सशा पु० [ स० मलय ] मल यागरि चदन । श्वेत मल्ला को लिछिवी (लाच्छाव ) आदि के साथ सस्कारच्युत उ०- पवन भर्छ सा हाए भुअगा। करहि जोग मलेया के या वात्य क्ष त्रय लिखा है। पर मल्ल यादि क्षत्रिय जातियां सगा।-सत० दरिया, पृ० १४ । बौद्ध मतावलवी ही गई थी। इसका उल्लेख स्थान स्थान पर मलेरिया-सज्ञा पु० [ प्र० ] एक प्रकार का ज्वर जो वर्षा ऋतु मे- त्रिापटक म मिलता है जिसस ब्राह्मणा | आधकार से उनका फैलता है। निकल जाना- और व्रात्य होना ठाक जान पडता है और विशेप-यह जाडा देकर पाता है। पहले डाक्टरो का विश्वास - कदाचित् इसीलिये स्मृतिया म य व्रात्य कहे गए है। था कि वस्तुप्रो के मडने या किसी अन्य कारण से, वायु मे. २ द्वद्वयुद्ध करनवाल।। पहलवान । पट्टा। उ०-के निसिपति विप फैलता है जिसमे सविराम, अर्थात् अंतरिया, तिजरा, मल्ल अनक बाध उठ बठत कसरत करत ।-भारतेंदु ग्र०, चौथिया यादि ज्वर, जो मलेरिया के अतर्गत है, फैलते हैं। भा० १, पृ. ४५६ । ३ मनुस्मृति के अनुसार एक व्रात्य पर अव उन्हान यह निश्चय किया है कि मच्छही के दश से क्षत्रिय जाति का नाम । ४ ब्रह्मववत क अनुसार लट पिता मलेरिया का विप मनुष्या के रक्त मे पहुंचता है जिससे तीवरी माता से उत्पन्न एक वर्णसार जाति का नाम । ५. सविराम ज्वर का रोग उत्पन्न होता है। पराशर पद्धात के अनुसार कुदकार पिता भीर ततुवाय माता मलेक्ष-