पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३८२७ मसविदा मसनूई देना। (शब्द. )। २ गूंधना। जैसे–नेत्रो के आस पास उर्द के ममे हुए आटे की एक अगुल ऊंची देवार सी बना दो। मसनूई - वि० [अ० मस्नूई ] १ वनावटो। कृत्रिम । २ झूठा । तथ्यरहित। ३ अस्वाभाविक । अप्राकृतिक [को०) । मसपूरज- -सज्ञा स्त्री॰ [ हिं० । अस्थि । हड्डी जिसके आधार पर माम स्थिर रहता है। उ०—नदी सहस नाडियों प्रगट परवत मसपूरज ।-रघु० रू०, पृ० ४५ । मसमुद-वि० [ मस ? + मूंदना ( = बद होना ) कशमकश । ठेलमठेल । धक्कमधक्का । उ-तवही सूरज के मुभट निकट मचायो दुद । निकमि मकै नहिं एकहू कस्यो कटक मसमुद।- मूदन (शब्द०)। मसयारा91-सज्ञा पु० [अ० मशथल । १ मशाल । उ०—(क) जानहुं नखत करहिं उजियारा । छिप गए दोपक प्री ममयारा। ---जायसी (शब्द०)। (ख) बारह अभग्न सोरह सिंगारा । तोहि मोहे पिय ससि ममयारा ।-जायमी (शब्द०)। २ मशालची। मशाल दिखानेदाला। उ०-मूक मुनेटा सिम ममयारा । पवन कर नित वार बोहारा ।—जायसी (शब्द॰) । मसरना-क्रि० स० [हिं० मसलना ] दे० 'मसलना" । उ०- कुंवर कान्ह जमुना मैं न्हात । ममरत मुभग सांवरे गात ।- घनानद, पृ० १८३॥ मसरफ-सज्ञा पुं॰ [अ० मसरफ ] १. व्यवहार मे पाना । काम मे पाना । उपयोग। २ व्यय करने की जगह, मौका वा अवसर (को०) । ३ प्रयोजन । हेतु (को०) । क्रि० प्र०–में थाना । —में लाना । मसरा-गज्ञा स्त्री॰ [ ] मसुर किो०] । मसरू-सञ्चा पु० [अ० मशस्थ ] एक प्रकार का रेशमी कपडा। विशेप दे० 'मशरू'। मसरूका- वि० [अ० मसरुकह ] चोरी किया हुअा। चुराया हुया । जैसे, माल ममरूका । ( कचहरी )। मसरूफ-वि० [अ० मसरूफ काम में लगा हुया । काम करता हुअा। मसल-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ) १ कहावत। कहनूत । लोकोक्ति । उ०-हिंदू हृदय जो आरति पावे । राम नाम के मसल चलावे । -गुलाल०, पृ० १२५ । २ ममान । तुल्य । मिम्ल (को०)। मसलति-मञ्ज्ञा स्त्री । अ० ममलहत ] २० मसलहत' । उ०-योलि खाँन मुलतान तव, ममलति करी जु माहि । -ह. रासो, पृ० १३ मसलन-वि० [अ० ] मिसाल के तौर पर । उदाहरण के रूप मे। उदाहरणार्थ । जिस तरह । यथा । जैसे । मसलन-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मसलना] १ ममलने का कार्य या स्थिति । रगडने का भाव । उ०-चचल किशोर मुदरता की, मैं करती रहती रखवाली । मैं वह हलकी सी मसलन हूँ, जो वनती कानो की लाली ।-कामायनी, पृ० १०३ । २ स्पर्श । मसलना-क्रि० म० [हिं० मलना ) १ हाथ से दबाते हुए रगडना । मलना । २ जोर से दबाना। उ०-प्राज किसी के मसले तारो की वह द्रागत झकार । मुझे बुलाती है सहमी मी झझा के परदों के पार | -यामा, पृ० १४ । स यो० क्रि०-दालना । ३ आटा गूंधना। मसलहत-सज्ञा स्त्री० [अ० ] ऐसी गुप्त युक्ति अथवा छिपी हुई भलाई जो सहमा ऊपर से देखने से जानी न जा सके। अप्रकट शुभ हेतु । जैसे—(क) इसमे एक मसलहत है जो अभी तक अापको समझ मे नही आई। (म) इस समय उसे यहाँ से उठा देने मे एक मसलहत थी। २, परामर्श । मलाह। उ०-घरे ममलहत कर बटुरिक सौ सौ धावै ।-पलटू०, पृ० ७० । यो०-मसलहतप्रदेश=ममझकर कार्य करनेवाला। मसलहत- पसद = (१) शुभकामी । खैरख्वाह । (२) २० 'ममलहतग्रदेश' । मसलहतेवक्त = समय की पुकार । मसलहतिका-वि० [अ० मसलहत ] परामर्श देनव ला। सलाह- देनेवाला। उ०—काम प्रो क्रोध ममलहतिका वे दोऊ । -पलटू०, पृ०४२। मसला सञ्ज्ञा पुं० [अ० मसलह ] कहावत । कहनूत । लोकोक्ति । उ० -आप भतो तो जग भलो यह ममलो जुन गोइ। जो हरि हित करि चित गहो कहो कहा दुख होइ ।-स० मप्तक, पृ० २४६ । मसला-सज्ञा पुं० [अ०] १. ममस्या । विपय । प्रश्न । सवाल [को०) । मुहा० -मसला हल होना= समस्या हल होना । मसवई-सज्ञा स्त्री॰ [ मसोवा द्वीप ] एक प्रकार का वबूल का गोद जो अदन से प्राता है। यह पहले मसोवा द्वीप से आता था, इसी से इसका यह नाम पडा। मसवारा-मज्ञा पु० [हिं० मास+वारा ( प्रत्य० ) ] प्रसूता का वह स्नान जो प्रसव के उपरात एक माम समाप्त होने पर होता है। मसवासो-सञ्ज्ञा पु० [सं० मासवासी ] १ एक स्थान पर केवल एक मास तक निवास करनेवाला विरक्त । वह साधु आदि जो एक मास से अधिक किसी स्थान मे न रहे। उ०-कोई मुरिखेमुर कोइ सनियासी। कोई सुरामजति कोई ममवासी । —जायसी (शब्द०)। २. एक महीने से अधिक किसी पुरुष के पास न रहनेवाला स्त्रो। गरिसका। उ०—तिरिया जो न होइ हरिदासी। जो दासी गणिका मम जानो दुष्ट रांड मसवामी ।-रघुराज (शब्द॰) । मसविदा-मशा पु० [अ० मुसविदा] १. वह लेख जो पहली वार काट छाँट के लिये तैयार किया गया हो और अभी साफ करने को वाकी हो । खर्रा । मसौदा । २. युक्ति । उपाय । तरकीब । क्रि० प्र०-निकालना । मुहा०-मसविदा बांधना = युक्ति रचना । उपाय सोचना । । AO . छुमन ।